view all

राष्ट्रपति के पद से रिटायर होने के बाद अब क्या करेंगे पोल्टू दा

प्रणब दा का नया आवास 10, राजाजी मार्ग राजनीतिक गतिविधियों से अछूता नहीं रहने वाला है, यह तय है

Kamla Pathak

पांच वर्ष पहले यूपीए सरकार में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति पद के लिए तब कांग्रेस के उम्मीदवार घोषित नहीं हुए थे. दिल्ली में उनके तालकटोरा रोड स्थित सरकारी निवास की गहमागहमी रोज ही राजधानी का राजनीतिक तापमान घटा बढ़ा रही थी.

यह कोई छुपी हुई बात नहीं थी कि मुखर्जी राष्ट्रपति पद के लिए कांग्रेस की पहली पसंद नहीं थे. मुखर्जी खुद भी इससे अनजान नहीं थे. लेकिन उन्हें यह पता था कि उनसे बेहतर विकल्प भी कांग्रेस के पास नहीं है.


इसके पहले 2004 में प्रधानमंत्री पद के लिए पार्टी उनकी ‘योग्यता’ को अनदेखा कर चुकी थी और संवैधानिक तौर पर देश के इस सर्वोच्च पद पर आसीन होने के मौके को मुखर्जी किसी भी तरह हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे.

कांग्रेस पार्टी के बाहर भी और गैर राजनीतिक लोगों में उनके शुभचिंतकों की कमी नहीं थी. हर हाल में राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने की मुखर्जी की अघोषित जिद और बेताबी देखते हुए कांग्रेस में ही कुछ लोगों ने यह सुझाव भी दे डाला था कि मनमोहन सिंह को राष्ट्रपति बनाकर मुखर्जी को उनकी जगह प्रधानमंत्री बना दिया जाए.

यही वह वजह थी जिसके चलते राजधानी का राजनीतिक पारा ऊपर नीचे हो रहा था. अटकलें लगाई जा रही थीं कि पार्टी ने मुखर्जी को यदि उम्मीदवार नहीं बनाया तो वह क्या करेंगे? मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे देंगे? पार्टी छोड़ देंगे? निर्दलीय लड़ेंगे?..वगैरह वगैरह.

ऐसा कुछ नहीं हुआ. मुखर्जी को पार्टी ने उम्मीदवार बनाने की घोषणा की और जैसा कि अक्सर कहा जाता है बाकी सब इतिहास है. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा कर इस सप्ताह रिटायर हो रहे हैं. एक बार फिर अटकलें लगाई जा रही हैं कि रिटायर होने के बाद वह करेंगे क्या?

पश्चिम बंगाल के मिराती गांव में एक स्वतंत्रता सेनानी परिवार में जन्मे प्रणब मुखर्जी की गिनती उन नेताओं में होती है जिनकी खुराक ही राजनीति है. उठते बैठते जागते सोते राजनीति ही जिनके जेहन में होती है.

पिछले करीब करीब पांच दशकों से उन्होंने खुद को चौबीसों घंटे और 365 दिन राजनीति में सक्रिय रखा है. मुखर्जी 34 वर्ष की उम्र में 1969 में पहली बार राज्यसभा में आने के चार वर्ष के भीतर ही केंद्र सरकार में मंत्री बन गए थे.

बाद में राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए कुछ समय की अवधि को छोड़ दें तो जब भी केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनी वह उसका महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रहे. बावजूद इसके वह कभी भी जन-नेता का दर्जा हासिल नहीं कर पाए. लेकिन इसे उनके व्यक्तित्व की विशेषता ही कही जाएगी कि राष्ट्रपति भवन से औपचारिक विदाई के पहले ही 82 साल के प्रणव मुखर्जी की राजनीतिक भूमिका को लेकर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है.

राष्ट्रपति बनने के पहले लगभग तीन दशक तक प्रणब मुखर्जी कांग्रेस के प्रमुख रणनीतिकारों में रहे. खासकर राजीव गांधी के निधन के बाद. पार्टी चाहे विपक्ष में रही हो या सत्ता में मुखर्जी की हमेशा उसे जरूरत पड़ी.

पार्टी की बैठकों का एजेंडा तय करने से लेकर प्रस्ताव तैयार करने तक मुखर्जी की राय जरूरी थी. पिछले पांच वर्षों में आधिकारिक तौर पर उन्होंने खुद को पार्टीगत गतिविधियों से अलग रखा. लेकिन मई 2014 में केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार बनने के पहले कांग्रेस नेतृत्व और सरकार के पदाधिकारियों का राष्ट्रपति भवन आना-जाना लगभग लगा रहता था.

राष्ट्रपति के तौर पर उनके कार्यकाल के दौरान भी कुछ एक मौकों को छोड़ उन्होंने जब जरूरत पड़ी सरकार के तौर तरीकों पर आपत्ति जताने में संकोच नहीं किया. राजनीतिक तौर पर एक विपरीत विचारधारा का प्रतिनिधित्व करने वाली अपनी सरकार के साथ उनका रवैया निश्चित ही झगड़ालू किस्म का नहीं था. पर वह रबर स्टाम्प राष्ट्रपति भी नहीं थे.

अरुणाचल और उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन के विवादास्पद फैसले पर उनकी चुप्पी आलोचना का विषय बनी. मगर शुरुआती दौर में जिस तरह सरकार ने एक के बाद एक अध्यादेशों के जरिए कानून बनाने की कोशिशें की उस पर मुखर्जी ने आगाह करने में कोई कंजूसी भी नहीं की.

इसी तरह देश में लगातार बढ़ रही असहिष्णुता और जातीय व सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं को लेकर भी उन्होंने अपना आक्रोश सार्वजनिक किया.

यह कम लोग जानते हैं कि मुखर्जी का घर का नाम पोल्टू है. बंगाली में पोल्टू का कोई खास अर्थ नहीं है. मगर प्रणब मुखर्जी के व्यक्तित्व का विश्लेषण करें तो इसका एक अर्थ समय के हिसाब से खुद को लचीला रख पाने वाला और अधिक से अधिक लोगों तक पंहुच बनाने वाला हो सकता है.

उनके व्यक्तित्व की इसी खासियत की वजह से पोल्टू से पोल्टू दा फिर प्रणब दा और अब भारतीय राजनीति के एक तरह से के तौर पर स्थापित हो चुके प्रणब मुखर्जी से आगे भी राजनीतिक पारी खेलने की उम्मीदें बनी हुई हैं.

यह माना जा रहा है कि विपक्ष जिस तरह से नेतृत्वहीनता की ओर बढ़ रहा है उसमें मुखर्जी का अनुभव व राजनतिक कौशल उसे उबारने में मदद कर सकता है. कायदे कानून और संवैधानिक मर्यादा को हर स्तर पर पालन करने में यकीन रखने वाले मुखर्जी सर्वोच्च संवैधानिक पद से निवृत्त होने के बाद राजनीतिक तौर पर कितना सक्रिय होंगे या नहीं होंगे इसमें जरूर संदेह है लेकिन राजधानी में उनका नया आवास 10, राजाजी मार्ग राजनीतिक गतिविधियों से अछूता नहीं रहने वाला है, यह तय है.