view all

बिहार: अब उपराष्ट्रपति चुनाव में क्या कहेगी नीतीश की अंतरआत्मा?

नीतीश कुमार के बारे में कहा जाता है कि वह जो फैसला लेते हैं उसका होने वाला नफा-नुकसान और मोल-भाव पहले से ही कर लेते हैं.

Ravishankar Singh

पिछले दो-तीन दिनों में बिहार के राजनीतिक घटनाक्रम में काफी बदलाव आए हैं. बिहार के सीएम और जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार ने जहां महागठबंधन का त्याग कर एनडीए का दामन थाम लिया. वहीं, बिहार सरकार में शामिल आरजेडी और कांग्रेस पार्टी को नीतीश कुमार के इस फैसले से काफी सदमा लगा.

उपराष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस सहित सभी विपक्षी पार्टियों के उम्मीदवार गोपाल कृष्ण गांधी हैं. वहीं एनडीए ने पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष वेंकैया नायडू को अपना उम्मीदवार बनाया है. नीतीश कुमार ने इस बदले हुए घटनाक्रम से पहले ही गोपाल कृष्ण गांधी को समर्थन दे दिया था.


ऐसे में अफवाहों का बाजार गर्म है कि क्या 5 अगस्त को होने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव में नीतीश कुमार कहीं किसी और घटनाक्रम की पटकथा तो नहीं लिख रहे हैं?

हम आपको बता दें कि राष्ट्रपति चुनाव 2017 में बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार ने एनडीए प्रत्याशी रामनाथ कोविंद को अपना समर्थन दिया था. वहीं, उपराष्ट्रपति चुनाव में नीतीश कुमार ने विपक्ष के उम्मीदवार गोपाल कृष्ण गांधी को समर्थन देने का फैसला किया.

ये परिस्थितियां तब थी जब नीतीश कुमार महागठबंधन के पार्टनर थे. अब, जब नीतीश कुमार एनडीए के पार्टनर हो गए हैं तो, ऐसे में नीतीश की अगले कदम का सभी लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं.

हालांकि नीतीश कुमार अपनी कही बातों से नहीं मुकरते हैं. इसलिए अगर उन्होंने कह दिया है कि वो गोपाल कृष्ण गांधी का समर्थन करेंगे तो बदले हालात में भी वो अपने स्टैंड पर कायम रहेंगे.

लेकिन, कुछ और जानकारों का मानना है कि राजनीति का खेल भी अब क्रिकेट की तरह ही अनिश्चितताओं का बनता जा रहा है. भारतीय राजनीति में नीतीश कुमार के द्वारा किया गया ताजा प्रयोग चौंकाने वाला था. नीतीश कुमार नए-नए प्रयोग करने में माहिर भी माने जाते हैं.

5 अगस्त को है उपराष्ट्रपति का चुनाव

राष्ट्रपति चुनाव में रामनाथ कोविंद को और उपराष्ट्रपति चुनाव में गोपाल कृष्ण गांधी का समर्थन भी नीतीश कुमार का एक प्रयोग का ही हिस्सा है. ये तरीका और अंदाज शायद नीतीश कुमार को दूसरे नेताओं से अलग करता है.

नीतीश कुमार के बारे में कहा जाता है कि वह जो फैसला लेते हैं उसका होने वाला नफा-नुकसान और मोल-भाव पहले से ही कर लेते हैं. राष्ट्रपति चुनाव में रामनाथ कोविंद को समर्थन देकर नीतीश कुमार ने सहयोगी पार्टी कांग्रेस और आरजेडी को जोर का झटका दिया था. नीतीश कुमार के इसी कदम के बाद विपक्षी एकता की कोशिशें तार-तार हो गई थी.

राष्ट्रपति चुनाव में जेडीयू के एनडीए उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को समर्थन देने के फैसले पर काफी घमासान मचा था. आरजेडी और कांग्रेस ने जेडीयू पर कई तीखे वार किए थे, लेकिन नीतीश कुमार टस से मस नहीं हुए थे और अपने फैसले पर अडिग थे.

कुछ दिन पहले ही महागठबंधन में रहते जेडीयू नेता केसी त्यागी ने कहा था कि विपक्ष आम सहमति से जिस किसी को भी उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाएगी जेडीयू उसे समर्थन देगी. ऐसे हुआ भी आम सहमति से विपक्ष ने महात्मा गांधी के पोते गोपाल कृष्ण गांधी को उम्मीदवार बनाया और नीतीश कुमार के तरफ से समर्थन आ गया.

जेडीयू नेता केसी त्यागी ने कहा था कि रामनाथ कोविंद को समर्थन देना वन टाइम अफेयर था. ऐसा माना जाता है कि राष्ट्रपति चुनाव में नीतीश कुमार मीरा कुमार को उम्मीदवारी दिए जाने से खुश नहीं थे. वे उस समय भी गोपाल कृष्ण गांधी को उम्मीदवार बनाना चाहते थे, मगर कांग्रेस ने अपनी पार्टी के नेता की उम्मीदवारी तय कर दी.

देश में उपराष्ट्रपति का चुनाव पांच अगस्त को होने हैं. ऐसे में उम्मीद कम ही है कि नीतीश कुमार गोपाल कृष्ण गांधी को छोड़ कर वेंकैया नायडू के तरफ जाएंगे.

गोपाल कृष्ण गांधी के साथ नीतीश कुमार के मधुर संबंध रहे हैं. बिहार में नीतीश कुमार ने चंपारण आंदोलन के 100 दिन पूरे होने के मौके पर एक कार्यक्रम में भी गोपाल कृष्ण गांधी को बुलाया था.

आपको बता दें कि उपराष्ट्रपति चुनाव में सिर्फ लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य ही वोट करते हैं. एनडीए के पास लोकसभा में 340 और राज्यसभा में 85 सांसद हैं. और अब नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू भी एनडीए का हिस्सा हो गई है.

जेडीयू की लोकसभा में 2 सांसद और राज्यसभा में 10 सांसद हैं. दूसरी ओर कांग्रेस की अगुवाई वाली विपक्षी पार्टियों के पास लोकसभा में स्थिति काफी कमजोर है तो इसके ठीक उलट राज्यसभा में स्थिति काफी अच्छी है.