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क्या 'कमल' को 'पंजे' से उखाड़ने की ताकत रखती हैं प्रियंका?

कांग्रेस में इंतजार खत्म हो गया है. राहुल गांधी ने प्रियंका गांधी वाड्रा को महासचिव नियुक्त किया है.

Syed Mojiz Imam

कांग्रेस में इंतजार खत्म हो गया है. राहुल गांधी ने प्रियंका गांधी वाड्रा को महासचिव नियुक्त किया है. प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभार सौंपा गया है. कांग्रेस की तरफ से जारी प्रेस रिलीज में प्रियंका गांधी के फरवरी में कार्यभार ग्रहण करने की बात कही गई है. राहुल गांधी ने कहा कि उनको बहुत खुशी है कि प्रियंका गांधी उनके साथ काम करेंगी. वो बहुत कर्मठ हैं. बीजेपी घबराई हुई है. प्रियंका फिलहाल दिल्ली में नहीं हैं. फरवरी के पहले हफ्ते में दिल्ली लौटने की संभावना है.

माना जा रहा है कि पूर्वी यूपी की 40 लोकसभा सीटों की जिम्मेदारी प्रियंका गांधी के पास होगी. इसके दायरे में अमेठी, रायबरेली के अलावा प्रधानमंत्री की सीट वाराणसी भी आती है. यूपी में कांग्रेस की हालत खस्ता है. पार्टी के पास पूरे प्रदेश में लोकसभा की सिर्फ 2 सीट हैं. 2019 में कांग्रेस को साथियों की तलाश है. यूपी में एसपी-बीएसपी गठबंधन के बीच कांग्रेस के लिए जमीन तैयार करना आसान काम नहीं है.


विरोधियों में मचेगी भगदड़

बीजेपी में इस खबर के बाद खलबली बढ़ गई है. बीजेपी की अगड़ी जाति का वोट कांग्रेस की तरफ शिफ्ट कर सकता है. कांग्रेस की मजबूती का नुकसान बीजेपी को ज्यादा हो सकता है. बीजेपी का पूर्वी यूपी में समीकरण ब्राह्मण पर टिका है. ये वोट अति ठाकुरवाद की वजह से नाराज चल रहा है. बीजेपी के लिए इस वोट को संभालना मुश्किल हो सकता है.

यहीं नहीं सरकार के रवैये से किसान भी नाराज है. कर्ज माफी के ऐलान से ये तबका भी बीजेपी से खिसक सकता है. किसान ऐसा वर्ग है जिसमें हर जाति का समावेश है. पशुपालक भी सरकार से नाराज चल रहा है. आवारा मवेशी यूपी में किसान के लिए समस्या हैं.

कांग्रेस के इस दांव का जवाब ढूंढने के लिए वक्त नहीं है. बीजेपी के बाद सपा-बसपा में हलचल पैदा हो गई है. कांग्रेस के समर्थन में इन पार्टियों में भगदड़ मच सकती है. कई इलाकाई मजबूत नेताओं का कांग्रेस के प्रति रुझान बढ़ सकता है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि प्रियंका की अगुवाई में कांग्रेस को मजबूती मिलेगी. एसपी-बीएसपी के गठबंधन से नाराज इन पार्टियों के नेता कांग्रेस से जुड़ सकते हैं. कांग्रेस की तरफ जनता का भी रुझान बढ़ेगा. एसपी-बीएसपी में बेचैनी बढ़ेगी. कांग्रेस अगर मजबूती से मैदान में उतरती है तो इन दो पार्टियों का नुकसान होगा.

कांग्रेस में जोश

अभी तक अमेठी-रायबरेली की कमान प्रियंका के पास थी. अब आधे यूपी की कमान उनके पास हैं. कांग्रेस के नेताओं में जोश है. इससे ज्यादा कार्यकर्ता खुश है. कांग्रेस ने यूपी के प्रति ध्यान दिया है. पूर्वी यूपी में बीजेपी सबसे मजबूत है. मुख्यमंत्री योगी की सीट गोरखपुर भी पूर्वी यूपी में है. कांग्रेस ने बीजेपी के गढ़ में घेरने की तैयारी कर दी है. इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी की सीट वाराणसी में कांग्रेस मजबूत चुनौती पेश कर सकती है. कांग्रेस के दो बड़े नेता अजय राय और राजेश मिश्रा की पकड़ मजबूत है. प्रियंका गांधी को हर सीट के लिहाज से रणनीति बनाना होगा. जातीय राजनीति में कांग्रेस के लिए जगह बनाना आसान काम नहीं है.

कमजोर कांग्रेस को खड़ा करने की चुनौती

प्रियंका गांधी के नाम का ऐलान ऐसे वक्त पर किया गया है, जब चुनाव सिर पर है. मार्च के पहले सप्ताह में चुनाव की तारीखों का ऐलान होने की संभावना है. चुनाव की तैयारी के लिए सिर्फ एक महीने का वक्त बचा है. कांग्रेस का संगठन कमजोर है, इसलिए कांग्रेस को फिलहाल प्रियंका के नाम का सहारा है. कांग्रेस संगठन में कई साल से परिवर्तन नहीं हुआ है. जिला प्रमुख कई साल से बने हुए हैं. नए लोगों को मौका नहीं मिला है. ऐसे में अभी संगठन पर फोकस करने का वक्त नहीं है. फिलहाल चुनाव पर ही ध्यान देना पड़ेगा, चुनाव में कांग्रेस की जीत ही प्रियंका गांधी की सफलता का पैमाना होगा.

पर्दे के पीछे सक्रिय

प्रियंका गांधी राहुल गांधी से पहले राजनीतिक गतिविधि में शामिल रही हैं. पहले सोनिया गांधी का चुनाव प्रचार देखती थीं बाद में राहुल गांधी का भी प्रचार अभियान देखने लगी थीं. लेकिन सक्रिय राजनीति में पहली बार कदम रखा है. इससे पहले अमेठी, रायबरेली तक अपने को महदूद कर रखा था.

कई बार चुनाव से पहले प्रियंका गांधी को राजनीति में लाने की मांग उठती रही है. यूपी में कई बार पोस्टर भी लगाए गए लेकिन प्रियंका नकारती रही हैं. सोनिया गांधी ने इस साल की शुरुआत में प्रियंका के राजनीति में आने की संभावनाओं पर विराम लगाने की कोशिश की थी. सोनिया ने कहा कि प्रियंका अभी परिवार में व्यस्त हैं.

राहुल बनाम प्रियंका

कांग्रेस के बाहर और भीतर ये बहस आम है कि कौन अच्छा नेता है. किसका इम्पैक्ट ज्यादा है. लेकिन अब ये बहस बेमानी है. राहुल गांधी बतौर पार्टी प्रमुख स्थापित हो गए हैं. तीन राज्यों के नतीजों ने राहुल गांधी को और मजबूत किया है. पार्टी के भीतर सब नतमस्तक हैं. अब दोनों गांधी के बीच कोई प्रतिस्पर्धा नहीं बची है. प्रियंका गांधी को बतौर नेता अपने आप को साबित करना है. हालांकि ज्यादातर लोग उनमें इंदिरा गांधी की छवि देखते हैं. जिसका फायदा कांग्रेस को मिल सकता है.

पार्टी को मिला स्टार प्रचारक

सोनिया गांधी की सेहत अच्छी नहीं हैं. पार्टी के पास राहुल गांधी के अलावा कोई स्टार प्रचारक नही हैं. ऐसे में राहुल गांधी की सहायता बखूबी कर सकती हैं. खासकर उत्तर भारत में प्रियंका कांग्रेस के लिए उपयोगी साबित हो सकती हैं. जिस तरह जनता से कनेक्ट है. वो बेमिसाल है. हिंदी भाषा में मजबूत पकड़ भी है. जो प्रचार अभियान के लिए अत्यंत जरूरी है.

मोदी का जवाब

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अच्छे वक्ता हैं. कांग्रेस में इस बात की कमी अखर रही थी. ये कमी प्रियंका गांधी पूरी कर सकती हैं. यूपी से लेकर सभी हिंदी भाषी राज्यों में प्रियंका असरदार साबित हो सकती हैं. मोदी को जिस लहजे में प्रियंका जवाब दे सकती हैं वैसा राहुल गांधी नहीं दे सकते हैं. 2009 में प्रियंका ने ही मोदी के सवालों का जवाब दिया था. जिसके बाद कांग्रेस दोबारा सत्ताशीन हुई थी.

रायबरेली से चुनाव लड़ने का कयास

2019 के चुनाव में प्रियंका गांधी चुनाव लड़ सकती हैं. सोनिया गांधी की सीट से प्रियंका संसदीय चुनाव में दस्तक दे सकती हैं. हालांकि अभी चुनाव लड़ने पर संशय हैं. लेकिन चुनाव लड़ती हैं तो कांग्रेस के लिए माहौल बनेगा, खासकर रायबरेली से सटी सीटों पर प्रभाव पड़ेगा.