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आखिर जेएनयू में लेफ्ट के जीतने की वजह क्या है?

कैंपस से लेकर सोशल मीडिया तक अफवाहों का दौर जारी था, जिनमें से कई झूठी निकलीं लेकिन जेएनयू के ही छात्रों ने समझदारी दिखाई और आपा नहीं खोया

Jainendra Kumar

जेएनयू के छात्रों ने फिर से अपना फैसला सुना दिया, जेएनयू की सेंट्रल पैनल की चारों सीटों पर लेफ्ट यूनिटी विजयी रही. आइसा के एन.साई बालाजी अब छात्र संघ के नए अध्यक्ष होंगे.

उपाध्यक्ष पद पर डीएसएफ की सारिका चौधरी, सचिव पद पर एजाज अहमद राथेर और संयुक्त सचिव के पद पर एआईएसएफ की अमूथा जयदीप ने जीत दर्ज की.


इस साल के चुनाव की कई खास बातें हैं, जैसे कुल 68% मतदान हुआ जो पिछले कुछ सालों से बहुत ज़्यादा है, जिससे ये साबित हुआ कि कैंपस की छात्र जनता ज्यादा अवेयर हुई है.

इस बार छात्र आरजेडी ने प्रेसिडेंट उम्मीदवार जयंत कुमार के साथ बार जेएनयू में दस्तक दी. सवर्ण छात्र मोर्चा गरीब सवर्ण के मुद्दे को उठाते हुए चुनाव में उतरी. उन्होंने एबीवीपी पर इस मुद्दे को ना उठाने का आरोप लगाया.

देर शाम मतगणना शुरू होने की हुई थी एनाउंसमेंट, यह रहे नतीजे 

मतगणना शुरू होने के ऐन मौके पर उपद्रव जैसी स्थिति बन गई. दरअसल मतगणना के कायदे अनुसार हरेक पार्टी के काउंटिंग एजेंट को अनाउंस करके मतगणना केंद्र में बुलाया जाता है.

यहां एबीवीपी के समर्थकों का आरोप है कि उनकी पार्टी के काउंटिंग एजेंट को बुलाए बिना मतगणना शुरू कर दी गई जबकि इलेक्शन कमेटी का कहना है कि उन्होंने पूरी प्रक्रिया को निभाते हुए काउंटिंग एजेंट को बुलाया था.

तीन बार बुलाए जाने पर नहीं आने पर मतों की गिनती शुरू कर दी गई. लेकिन एबीवीपी ने इस बात को खारिज किया, और इसे लोकतंत्र की हत्या बताया. उसके बाद कुछ छात्रों ने मतदान केंद्र के बाहर तैनात गार्ड के साथ हाथापाई की और अंदर घुस कर तोड़ फोड़ की.

यह घटना देर रात की है. मामले की गंभीरता को देख मतगणना अनिश्चित काल के लिए रोक दी गई और सुबह से लेकर देर शाम तक बाहर की तरफ लेफ्ट और एबीवीपी के बीच जमकर नारेबाजी हुई और हिंसक वारदातें भी हुईं, देर शाम मतगणना शुरू होने की एनाउंसमेंट हुई.

कैंपस की नारेबाजी के शोर में था एक खौफ का सन्नाटा

नारेबाजी और ढफलियों के शोर में एक खौफ का सन्नाटा भी कैंपस में पसर गया. खबर थी कि कैंपस में बाहर से आए कुछ संदिग्ध लोग घूम रहे हैं. छात्र दिन में जिस हिंसा का प्रत्यक्षदर्शी बने थे, देर रात उसका बड़ा रूप होने की आशंका ने सबको डरा रखा था.

कैंपस के अंदर दो पीसीआर भी आकर गईं. दूर कैंपस के बाहर गेट पर पुलिस तैनात थी. इन सबके बीच काउंटिंग जारी थी. कैंपस से लेकर सोशल मीडिया तक अफवाहों का दौर जारी था, जिनमें से कई झूठी निकलीं. लेकिन जेएनयू के ही छात्रों ने समझदारी दिखाई और आपा नहीं खोया.

छात्र लोकतंत्र का मेला पूरी रात लगा रहा, और अगले दिन दोपहर को परिणाम भी घोषित हुए. जहां बहुत बड़ा खेमा लेफ्ट यूनिटी की जीत पर खुश था, वहीं सभी जगह खुशी इस बात की थी कि मतगणना सफलतापूर्वक हो गई और कोई अप्रिय घटना नहीं घटी.

इसका श्रेय इलेक्शन कमीशन को भी जाता है कि इतने हंगामें के बावजूद समय से पहले सभी वोटों की गिनती की और चुनाव रद्द होने की स्थिति नहीं आने दी.

लेफ्ट का गढ़ है जेएनयू, बापसा लगातार दे रही है चुनौती

इस चुनाव ने फिर से साबित किया कि जेएनयू लेफ्ट का गढ़ है. वैसे कुछ सालों से बापसा उन्हें चुनौती देने की कोशिश कर रही है लेकिन उनको सफलता नहीं मिल पा रही.

वैसे लेफ्ट की तमाम विरोधी पार्टी आरोप लगाती है कि लेफ्ट 'हमको वोट दो नहीं तो एबीवीपी जीत जाएगी' जैसे जुमले का इस्तेमाल करके छात्रों से वोट मांगती है. हो सकता है कि यह आरोप सही हो लेकिन सब कुछ जानते हुए भी छात्र लेफ्ट को ही चुनते हैं क्योंकि उनके पास विकल्प नहीं है.

ऐसे लोग जो एबीवीपी को वोट करना नहीं चाहते और लेफ्ट से असंतुष्ट हैं उनको बापसा से एक उम्मीद जगी थी, लेकिन बापसा ने अपना दायरा इतना सीमित कर लिया कि बहुजन भी उससे ढंग से जुड़ नहीं पाए.

वैसे लेफ्ट भी कमजोर हुई है क्योंकि एक जमाने में सिर्फ आइसा ही इतना वोट ले आती थी जितना आज चार लेफ्ट पार्टी ला रही है. लेकिन विकल्पहीनता की यही स्थिति लेफ्ट की जीत का कारण है. अगर आने वाले समय एनएसयूआई, बापसा और छात्र राजद साथ चुनाव लड़े और एक विकल्प पेश करे तो लेफ्ट को कड़ी चुनौती मिल सकती है.