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क्या है राफेल डील जिस पर मचा हुआ है देश से संसद तक में कोहराम

अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि इस डील की वजह से देश को 12,632 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है

FP Staff

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा संसद में दिए गए भाषण ने फिर से एक बार राफेल डील को लेकर विवाद खड़ा कर दिया है. राहुल गांधी ने कहा कि रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने राफेल फाइटर जेट्स का मूल्य बताने से यह कहकर मना कर दिया था कि इसकी वजह से देश की सुरक्षा को खतरा पहुंच सकता है. लेकिन बाद में दसॉ एविएशन ने अपनी 2016-17 की वार्षिक रिपोर्ट में बताया कि उसने 1,670 करोड़ रुपये प्रति एयरक्राफ्ट की दर से 36 एयरक्राफ्ट बेचे हैं.

कांग्रेस अध्‍यक्ष ने आगे कहा कि यही एयरक्राफ्ट 11 महीने पहले मिस्र और कतर को 1,319 करोड़ रुपये प्रति एयरक्राफ्ट के हिसाब से कंपनी ने बेचा था. इससे पता चलता है कि इस डील की वजह से देश को 12,632 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.


राफेल डबल इंजन वाला मल्टीरोल फाइटर प्लेन है जो कि फ्रांसीसी कंपनी दसॉ बनाती है. 2012 में इंडियन एयरफोर्स ने कहा कि राफेल इसका पसंदीदा एयरक्राफ्ट है. 2015 में पीएम नरेंद्र मोदी के फ्रांस दौरे के समय भारत ने फ्रांस से 36 एयरक्राफ्ट की 'फ्लाईअवे' स्थिति में डिलीवर करने के लिए कहा.

उम्मीद की जा रही है कि राफेल की पहली स्क्वाड्रन इंडियन एयरफोर्स की पहली फ्लीट 2019 में ज्वाइन करेगी. जहां एक तरफ इस डील की वजह से इंडियन एय़रफोर्स की शक्ति बढ़ेगी वहीं इस डील ने तमाम सवाल भी खड़े कर दिए हैं. कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि सरकार ने ज़्यादा पैसे देकर ये डील की है.

वो 'गोपनीयता की शर्त' क्‍या है जिसकी तरफ राहुल गांधी ने इशारा किया था?

राहुल गांधी ने कहा था, 'रक्षा मंत्री ने कहा कि राफेल डील पर फ्रांस के साथ एक गोपनीय संधि हुई है. इस बारे में जानने के लिए मैं फ्रांस के राष्ट्रपति से व्यक्तिगत रूप से मिला और पूछा कि क्या ऐसी कोई संधि हुई है. इस पर राष्ट्रपति ने कहा कि ऐसी कोई संधि नहीं हुई है.' बता दें कि इसी साल फरवरी में राज्‍य सभा सांसद राजीव गौड़ा के राफेल से जुड़े सवालों के लिखित जवाब में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन ने कहा था कि यह सौदा दोनों देशों के बीच हुए सुरक्षा समझौते के तहत आता है. इस जवाब ने काफी सुर्खियां बटोरी थी.

भारत ने राफेल क्‍यों चुना?

केवल राफेल ही भारत की इकलौती पसंद नहीं थी. कई अंतरराष्‍ट्रीय कंपनियों ने लड़ाकू विमान के लिए टेंडर दिए थे. 126 लड़ाकू विमानों के लिए छह कंपनियां दौड़ में थीं. इनमें लॉकहीड मार्टिन, बोइंग, यूरोफाइटर टाइफून, मिग-35, स्‍वीडन की साब और फ्रांस की दशॉ शामिल थी. वायुसेना की जांच परख के बाद यूरोफाइटर और राफेल को शॉटलिस्‍ट किया गया. राफेल को सबसे कम बोली के लिए मौका मिला.

खरीद की प्रकिया कब शुरू हुई?

वायुसेना ने 2001 में फाइटर जेट मांगे थे. लेकिन खरीद के लिए शुरुआत 2007 से हुई. अगस्‍त 2007 में तत्‍कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी ने खरीद प्रक्रिया को मंजूरी दी. इसके बाद बोली की प्रकिया शुरू हुई.

कितने राफेल एयरक्राफ्ट खरीदने थे और इनकी कितनी कीमत थी?

शुरुआत में इसकी कीमत लगभग 54 हजार करोड़ रुपये आंकी गई थी. इसमें 126 विमान खरीदे जाने थे जिनमें से 18 उड़ने लायक और बाकी के भारत में तकनीक के ट्रांसफर के तहत बनाए जाने थे. राफेल के बोली जीतने के बाद 2012 में बातचीत शुरू हुई. यह काम लगभग चार साल तक चला. इस साल जनवरीमें सौदे पर दस्‍तख हुए.

देरी क्‍यों हुई?

भारत और फ्रांस दोनों देशों में राष्‍ट्रीय चुनाव हुए और सरकारें बदलीं. इसके चलते देरी हुई. साथ ही कीमतों को लेकर भी काफी तोलमोल हुआ. सूत्रों के अनुसार एक विमान की कीमत 740 करोड़ रुपये है और भारत इसमें 20 प्रतिशत की कमी चाहता है. भारत अब 36 उड़ने लायक विमान चाहता है.

(साभार न्यूज-18)