वामपंथियों के बारे में सबको पता है कि वो 'सादा जीवन, उच्च विचार' में यकीन रखते हैं. लेकिन सभी लेफ्ट नेता दुनियावी लुत्फों से, तड़क-भड़क भरी जिंदगी से खुद को दूर नहीं रख पाते.
केरल के पूर्व मुख्यमंत्री ईएमएस नंबूदरीपाद का सादा रहन-सहन तो आज किस्से कहानियों की तरह सुनाया जाता है. लेकिन, ऐसा नहीं है कि सिर्फ वामपंथी ही सादगी पसंद हैं. दुनिया में और भी बहुत लोग हैं जो सादगी का जीवन जीते हैं. जैसे अरबपति कारोबारी अजीम प्रेमजी आज भी हवाई यात्रा में इकोनॉमी क्लास में ही सफर करते हैं.
वामपंथियों की सादगी का ये जिक्र हाल की एक घटना से हो रहा है. सीपीएम ने अपने राज्यसभा सांसद रिताब्रता बनर्जी को तीन महीने के लिए सस्पेंड कर दिया है. उन पर आरोप है कि वो वामपंथियों की तरह का नहीं, पूंजीपतियों की तरह की रईसाना जिंदगी जी रहे हैं.
मेड इन अमेरिकी सिगरेट पीते हैं सीताराम येचुरी
सादगी और विनम्रता तो हर इंसान का अपना अलग-अलग गुण होता है. सीपीएम को तड़क-भड़क वाली जिंदगी से ही ऐतराज है. लेकिन वो इस मुद्दे पर अपने एक सांसद और शानदार प्रवक्ता पर ही कार्रवाई कर देगी, इसका अंदाजा नहीं था.
हर पार्टी को अपनी विचारधारा रखने का हक है. शायद अब वक्त है कि हर राजनैतिक दल को अपनी सनक का एक खास कोटा रखने का भी अधिकार दिया जाना चाहिए. लेकिन यहां पर मुद्दा ये नहीं है. यहां हमें सीपीएम के दोहरे रवैये पर सवाल उठाने चाहिए.
अगर रिताब्रता बनर्जी ने पार्टी की विचारधारा के खिलाफ जाकर काम किया है, तो सवाल पार्टी महासचिव सीताराम येचुरी पर भी उठते हैं. येचुरी को भी चाहिए था कि वो अपने बर्ताव से मिसाल कायम करते. येचुरी की शोहरत एक अच्छे वक्ता के तौर पर है. वो जिस तार्किक ढंग अपनी बात रखते हैं, वो काबिले-तारीफ है.
लेकिन येचुरी अपनी मेड इन अमेरिका स्टेट एक्सप्रेस सिगरेट के शौक के लिए भी जाने जाते हैं. अगर रिताब्रता बनर्जी शहाना जिंदगी जीने के गुनहगार हैं. तो सीताराम येचुरी को भी उनकी पार्टी ने अमीरों वाले ऐब के साथ जीने की आजादी दे रखी है. ऐसे में सिद्धांत और विचारधारा पर कार्रवाई सिर्फ एक पर ही क्यों? हो सकता है कि येचुरी ने तंबाकू के खिलाफ मुहिम से प्रभावित होकर अब सिगरेट का शौक छोड़ दिया हो.
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जहां तक आधुनिक तकनीक की बात है, तो, आज की तारीख में कोई भी पार्टी उनके विरोध का जोखिम नहीं ले सकती. आपको याद होगा कि जब राजीव गांधी ने रेलवे रिजर्वेशन और बैंकों का कंप्यूटरीकरण किया था, तो ये वामपंथी इसके खिलाफ मोर्चा बनाकर सड़कों पर उतर आए थे.
आज ये लोग अपनी उस पुरानी सोच को लेकर जरूर शर्मिंदा हो रहे होंगे. वामपंथियों के दोगलेपन की बहुत चर्चा जरूरी नहीं. ये तो जगजाहिर है. क्या आज वो खुद कंप्यूटर, स्मार्टफोन और आज के दौर के दूसरे गैजेट्स नहीं इस्तेमाल करते? क्या वो अस्पतालों में नई मशीनों की मदद से इलाज नहीं कराते?
बीफ समर्थक सीपीएम को रीताब्रत से ही क्यों है परेशानी ?
राजनैतिक दलों के आकाओं का सुझाव असहिष्णुता की तरफ होता है. खास तौर से तब और जब उनके दल का कोई नेता अपना स्वतंत्र खयाल रखता है. जो उनके लिए भविष्य में खतरा बन सकता है. हो सकता है कि रिताब्रता बनर्जी से भी वामपंथी दल सीपीएम के कुछ नेताओं को खतरा महसूस हुआ हो. या फिर रिताब्रता ने किसी बड़े नेता की बात काट दी हो.
हो सकता है कि वो सीपीएम के किसी विरोधी नेता से दोस्ताना ताल्लुक रखते हों. सच क्या है, किसी को नहीं पता? क्या मालूम, रिताब्रता की जीवन-शैली तो महज एक बहाना हो. उनके खिलाफ कार्रवाई की कोई और वजह हो.
रिताब्रता बनर्जी को सस्पेंड करके सीपीएम के आकाओं ने अपनी बेवकूफी को ही उजागर किया है. ऐसी हरकतों के बाद सियासी दल अक्सर इसे पार्टी का अंदरूनी मामला कहकर सच को छुपाने की कोशिश करते हैं. लेकिन अगर किसी नेता के रहन-सहन और आजाद खयाल होने पर पार्टी में चर्चा होने लगे, तो पूरा सच जनता के सामने भी आना चाहिए.
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सीपीएम तो वो पार्टी है जो बोलने की आजादी, खाने की आजादी जैसे मुद्दों को लेकर बड़ी संजीदा है. आजादी की समर्थक सीपीएम की नजर में किसी के खाने की टेबल पर बीफ होना अच्छी बात है, तो, यकीनन लाइफस्टाइल पर भी चर्चा खुलकर होनी चाहिए.
सीपीएम को अपनी उस लिस्ट पर फिर से गौर करने की जरूरत है, जो उसके हिसाब से गलत है. और फिर इस सिद्धांत को ईमानदारी से सभी नेताओं पर लागू करना चाहिए.