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यूपी चुनाव: किसके साथ आगे बढ़ेगा बुंदेलखंड

बुंदेलखंड में बीएसपी और सपा के पास बराबर सीटें हैं

Pratima Sharma

बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी है

खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी


बुंदेलखंड की यह पहचान इतिहास में दर्ज हो गई है.अब उसकी पहचान उत्तर प्रदेश के एक ऐसे इलाके के रूप में होती है जहां भूखमरी है और सूखे की मार है. दशकों से यह इलाका पिछड़ेपन की तोहमत के साथ जीत रहा है.यहां पर सड़क, पीने का पानी जैसी बुनियादी चीजों का भी अभाव है.

2012 के विधानसभा चुनावों में समूचे राज्य में समाजवादी पार्टी की लहर थी लेकिन बुंदेलखंड में वह नंबर वन पार्टी नहीं बन पाई थी. बुंदेलखंड में उस वक्त नंबर वन पार्टी बनी थी मायावती की बीएसपी.

किसका होगा बुंदेलखंड

इस बार विधानसभा चुनावों में त्रिकोणीय मुकाबला है. एक तरफ समाजवादी पार्टी, दूसरी तरफ बहुजनसमाजवादी पार्टी और तीसरी तरफ बीजेपी है. पिछड़ेपन का बोझ ढो रहे इस इलाके की एक आम समस्या पीने के पानी की किल्लत है. देश के दूसरे हिस्सों के मुकाबले यहां सिर्फ 75 फीसदी बारिश होती है. पानी की कमी के कारण यहां इंडस्ट्री की पैठ नहीं हो पाई है. यहां काम नहीं मिलने के कारण बड़ी संख्या में पलायन करना पड़ता है. यहां से ज्यादातर मजदूर दिल्ली और कुछेक गुजरात जाते हैं.

नेताओं को चुनाव के दिनों में यहां से पलायन करने वाले मजदूरों की याद आती है. राजनीतिक पार्टियां दिल्ली से बसों में भर-भर कर मजदूरों को वोट देने के लिए लाती हैं. लेकिन चुनाव खत्म होते ही इन मजदूरों की पूछ खत्म हो जाती है और पीछे रह जाती हैं इनकी समस्याएं.

बुंदेलखंड में सबसे ज्यादा 27 से 30 फीसदी दलितों की आबादी है. इसके बाद ब्राह्मणों की 10 से 12 फीसदी और ठाकुरों की आबादी 5 से 7 फीसदी है. बुंदेलखंड में पहले कांग्रेस का दबदबा था, लेकिन उसके बाद यह इलाका बीजेपी की तरफ चला गया. अब यहां बीएसपी की पहुंच ज्यादा है.

समाजवादी पार्टी पर भरोसा

इलाके के लोगों को अखिलेश के काम पर भरोसा है लेकिन रोजगार के मामले में यह इलाका काफी पीछे है. इलाके में चमचमाती सड़कें बन गई हैं और बिजली भी 18 घंटे रहती है. लेकिन रोजगार की कमी के कारण इलाके से लोगों का पलायन हो रहा है.

जलस्तर कम होने के कारण यहां गेहूं और ज्वार, बाजरा जैसे मोटे अनाज उगाए जाते हैं. हालांकि, बाद में कुछ किसानों ने चावल और मेंथा की खेती भी शुरू कर दी, जिसमें ज्यादा सिंचाई की जरूरत होती है. सूखे की समस्या से बचने के लिए यहां बांध भी बनाया गया है. लेकिन दुविधा यह है कि इन बांध के भरोसे किसानों की खेती हर साल नहीं चल सकती. जिस साल बारिश ठीक हो तो बांध में पानी रहता है लेकिन सूखा पड़ने पर बांध से सिर्फ पीने के पानी की जरूरत ही पूरी हो पाती है.

2007 में बुंदेलखंड में 21 सीटें थीं. इनमें से 14 बीएसपी,समाजवादी पार्टी के खाते में 4, कांग्रेस के पास 3 सीटें थीं. तब बीजेपी के पास कोई सीट नहीं थी. 2012 में परिसीमन होने के बाद बुंदेलखंड में कुल सीटें घटकर 19 हो गईं. इसमें बीएसपी के पास 7, समाजवादी पार्टी के पास 5 कांग्रेस को 4 और बीजेपी के पास 3 सीटें थीं. लेकिन उमा भारती और नरेंद्र ज्योति के लोकसभा चुनावों के लिए सीट खाली होने के बाद हुए उपचुनावों में ये दोनों सीटें समाजवादी पार्टी के खाते में चली गईं. इसके बाद यहां बीएसपी और समाजवादी पार्टी के पास 7-7 सीटें हैं. अब इस चुनाव में यह देखना है कि वोटर का पलड़ा किस ओर झुकता है.