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अहमद पटेल की जीत से सबक लेकर आगे की जंग लड़े कांग्रेस

अहमद पटेल ने मोदी-शाह की जोड़ी के सरपट भागते सियासी घोड़े को काबू कर कांग्रेस को राहत देने का काम किया है

Manish Kumar

गुजरात राज्यसभा चुनाव ने ये मिथक तोड़ने का काम किया है कि संसद के ऊपरी सदन के चुनाव नीरस और बोरिंग होते हैं. मंगलवार को जिस तरह से राज्यसभा की तीन सीटों के लिए चुनाव लड़ा गया उससे देश को एक अलग तरह की राजनीति देखने को मिली. बागी विधायकों को आगे कर जिस तरह शह और मात देने का खेल खेला गया उससे इसकी तुलना बॉलीवुड के किसी सस्पेंस थ्रिलर से की जा सकती है.

मामूली अंतर से अहमद पटेल को मिली ये जीत कांग्रेस के लिए गैर-मामूली है. कांग्रेस को इसे संजीवनी बूटी की तरह इस्तेमाल करना चाहिए जिससे वो अपनी पार्टी में नई जान फूंक सके और उन्हें लड़ने के लिए फिर तैयार करे. गुजरात में विधानसभा चुनाव होने में तीन महीने का समय शेष है. जीत से सबक लेकर कांग्रेस को ग्रास रूट लेवल पर जाकर काम करना चाहिए. छोटे से छोटा कार्यकर्ता, जो पिछले कुछ बरसों में नाराज होकर दूर हो गया था उसे अहमियत देकर और उसकी बात सुनकर फिर से उसे पार्टी के साथ जोड़ना चाहिए.


राज्यसभा चुनाव में अहमद पटेल को घेरने के लिए नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने बेहद आक्रामक रणनीति तैयार की थी. लेकिन कांटे की टक्कर में अहमद पटेल विजेता बनकर उभरे. अहमद पटेल ने मोदी-शाह की जोड़ी के सरपट भागते सियासी घोड़े को काबू कर कांग्रेस को राहत देने का काम किया है.

जो कांग्रेस अपने विधायकों के टूटने से राज्य में बिखरने के कगार पर थी उसे अहमद पटेल की जीत से काफी मनोवैज्ञानिक लाभ होगा. ये न सिर्फ उनमें यह विश्वास पैदा करेगी कि वो गुजरात की सत्ता में बरसों बाद फिर से लौट सकते हैं बल्कि चुनाव में पूरे दम-खम से जाने के लिए ऊर्जा भरने का भी काम करेगी.

सेंट्रल और स्टेट लीडरशिप को लाट साहबी रवैया छोड़ना होगा

कांग्रेस के सेंट्रल और स्टेट लीडरशिप को भी लाट साहबी रवैया छोड़कर अपने वर्कर्स पर फोकस करना होगा तभी वो बीजेपी के मुकाबले खड़े होंगे और उसे टक्कर दे सकेंगे. बीजेपी का राज्य में बेस मजबूत है. वो पिछले लगभग पच्चीस साल से यहां सत्ता में है. कांग्रेस को इसे ध्यान में रखकर अपनी प्लानिंग करनी होगी.

कहने को अहमद पटेल की जीत सिर्फ संसद के एक सीट की कहानी है लेकिन सियासी तौर पर इसके मायने बड़े हैं. साल के अंत में होने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद अगले साल कर्नाटक के चुनाव होने हैं जो कांग्रेस के शासन वाला इकलौता बड़ा राज्य है. इसके बाद 2019 की सबसे बड़ी लड़ाई लोकसभा का चुनाव है.

कांग्रेस अगर गुजरात में अच्छा प्रदर्शन करती है और विधानसभा में अपने विधायकों की संख्या बढ़ाने में कामयाब रहती है तो राष्ट्रीय स्तर पर इसका अच्छा संकेत जाएगा. इससे कांग्रेस अपने सहयोगियों में ताकतवर बनकर उभरेगी और वो उसकी बात पहले से ज्यादा सुनेंगे. निश्चित तौर पर राज्यसभा की इस एक सीट की जीत कांग्रेस की भावी रणनीति पर असर डालेगी.

अमित शाह और अहमद पटेल के बीच की सियासी अदावत काफी पुरानी है. इस लड़ाई में भले ही अहमद पटेल अभी जीत गए हों लेकिन उन्हें मालूम है कि बीजेपी के 'चाणक्य' आसानी से हार मानने वालों में से नहीं हैं. अमित शाह हार के गम को भुलाकर फिर से राजनीति की नई बिसात बिछाने को तैयार होंगे.