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इन वजहों ने आई करुणानिधि और सुब्रमण्यम स्वामी के रिश्तों में दरार

सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि मैंने लिट्टे की मदद करने पर 1991 में करुणानिधि सरकार को बर्खास्‍त करा दिया और यह सुनिश्चित करवाया कि तमिलनाडु में कोई घटना न हो. इससे वह काफी नाराज हो गए और इसके बाद तो हम शायद ही कभी मिल पाए

FP Staff

बीजेपी के सीनियर नेता और राज्‍यसभा सांसद डॉक्‍टर सुब्रमण्‍यम स्‍वामी और डीएमके प्रमुख एम करुणानिधि के रिश्ते तनातनी भरे ही रहे. स्‍वामी का कहना है कि 1990 तक दोनों के बीच सब ठीक था लेकिन इसके बाद दोनों के रास्‍ते अलग हो गए. न्‍यूज18 से बातचीत में स्‍वामी ने बताया कि करुणानिधि संगठन बनाने में माहिर और शानदार तमिल बोलने वाले नेता थे. लेकिन उनमें विवेक की कमी थी और वह हमेशा डरे हुए रहते थे. बकौल स्‍वामी, 'यह सच है कि वह संगठन के माहिर नेता थे. उनमें एक और काबिलियत थी और वह थी तमिल पर उनकी पकड़. वह खूबसूरत तमिल बोलते थे. इनके अलावा वह बुरी तरह से विवेकहीन और उनमें असुरक्षा का भाव था.'

स्‍वामी ने बताया कि दोनों की पहली मुलाकात 1974 में हुई थी. उस समय स्‍वामी नौजवान थे और संसद में अपने कट्टर आर्थिक विचारों और भाषणों की वजह से चर्चाओं में थे. करुणानिधि जनसंघ से सांसद और हार्वर्ड से पढ़े-लिखे इस युवा के प्रति काफी उत्‍सुक थे. वह उनसे मिलना चाहते थे. स्‍वामी ने जनसंघ के कुछ नेताओं के साथ उनसे मुलाकात की.


इस तरह हुई थी पहली मुलाकात

मुलाकात को याद करते हुए स्‍वामी ने कहा, 'वह उस समय तमिलनाडु के मुख्‍यमंत्री थे. उन दिनों आरएसएस का 'मातृभूमि' नाम से अखबार आता था. मैंने करुणानिधि से पूछा कि क्‍या वे इसके लिए हमें कुछ विज्ञापन दे सकते हैं. यह सुनकर सब हैरान रह गए. आर्यों की पार्टी का सांसद द्रविड़ राजनीति वाली पार्टी से अपने अखबार के लिए विज्ञापन कैसे मांग सकता है. लेकिन करुणानिधि ने मदद की. वह फौरन राजी हो गए और सरकारी विज्ञापनों के जरिए उन्‍होंने काफी मदद की.'

इमरजेंसी के दौरान करुणानिधि डरे हुए थे कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उनकी सरकार को बर्खास्‍त कर देगी. लेकिन उन्‍होंने इमरजेंसी का विरोध करने वाले नेताओं को गिरफ्तार करने से मना कर दिया. जिस तरह की आशंका थी वह सच हुई और इंदिरा ने उनकी सरकार को बर्खास्‍त कर दिया.

स्‍वामी ने बताया, 'इमरजेंसी के बाद मैं उनसे मिला. मैं इमरजेंसी का हीरो था. करुणानिधि मुझसे प्रभावित थे. वह चाहते थे कि मैं 1977 का लोकसभा चुनाव दक्षिण मद्रास सीट से लडूं. मैं इस ऑफर के लिए तैयार था. लेकिन मशहूर गायिका एमएस सुब्‍बुलक्ष्‍मी मेरी पारिवारिक दोस्‍त थीं. वह चाहती थीं कि राजमोहन गांधी वहां से उतरे. उन्‍होंने मुझसे आग्रह किया कि मैं मद्रास दक्षिण से दावेदारी नहीं करूं. मोरारजी देसाई मुझे बॉम्‍बे से चुनाव में उतारना चाहते थे. मैं राजी हो गया और वहां चला गया. जब करुणानिधि को पता चला तो वह गुस्‍सा हो गए. उन्‍होंने कहा कि वह राजमोहन गांधी को टिकट नहीं देने वाले. आखिरकार उन्‍होंने वहां से अपने भतीजे मुरासोली मारन को उतारा और वह कांग्रेस के आर वेंकटरमन से हार गए. वेंकटरमन आगे जाकर राष्‍ट्रपति बने. यदि मैं मद्रास से चुनाव लड़ता तो उनको हरा देता वैसे मैं बॉम्‍बे से भी जीत गया था.'

इस वजह से दोनों के बीच आई दरार 

'स्‍वामी ने बताया, '1980 में श्रीलंका में जब तमिलों का मुद्दा जोरों पर था तब करुणानिधि ने उनकी चेयरमैनशिप में एक कमिटी बनाई थी. तमिल इलम लिबरेशन के भारत समर्थक तमिल नेता सबारत्‍नम को इंदिरा गांधी ने ट्रेनिंग दी और वह भी इसके सदस्‍य थे. मैं, अंबाजगन और वीरामणि भी इसके सदस्‍य थे. एक ब्राह्मण नेता के उनके साथ बैठकर तमिलों की समस्‍याओं पर बात करना काफी अजीब था. बाद में लिट्टे ने सबारत्‍नम की हत्‍या कर दी और मुझे पता चला कि करुणानिधि लिट्टे का समर्थन कर रहे हैं. वी प्रभाकरण और उनके संगठन लिट्टे को सहन नहीं कर सकता था. मैं उनसे दूर हो गया और उसके बाद कभी कभार ही उनसे मिला.'

सुब्रमण्‍यम स्‍वामी ने बताया, 'जब चंद्रशेखर ने 1990 में सरकार बनाई तो मुझे कानून और वाणिज्‍य मंत्रालय दिया गया. मैंने लिट्टे की मदद करने पर करुणानिधि सरकार को बर्खास्‍त करा दिया और यह तय कराया कि तमिलनाडु में कोई घटना न हो. इससे वह काफी नाराज हो गए और इसके बाद तो हम शायद ही कभी मिल पाए.'

स्‍वामी के अनुसार, 1991 से 1996 के बीच जयललिता के भ्रष्‍टाचारी शासन के खिलाफ लड़ाई ने करुणानिधि को डरा दिया था. वह बताते हैं, 'उस समय तक वह ज्‍यादा चिंतित नहीं थे. जब मैंने बिना डरे जयललिता का सामना किया तो उन्‍हें लगा कि मेरा कद काफी बड़ा हो गया है. वह बुरी तरह से इनसिक्‍योर हो गए थे. वह नहीं चाहते थे कि मैं तमिलनाडु में जयललिता का मुख्‍य विपक्षी बनूं. इसके बाद से उनके मन में मेरे प्रति नफरत और बढ़ गई. उन्‍होंने एक बार कांग्रेस के दिवंगत नेता जीके मुपानार को कहा था कि मैं ऐसा ब्राह्मण था जो एक इंच जगह मिलने पर पूरा राज्‍य हथिया सकता था. अचानक से मैं तमिल हस्‍ती बन गया. उन्‍हें ब्राह्मणों से नफरत थी और उन्‍हें यह बात पच नहीं रही थी कि मैंने जयललिता का भंडाफोड़ कर दिया और जेल भिजवा दिया.'

स्‍वामी ने कहा कि सेतु समुद्रम योजना के विरोध और करुणानिधि की पार्टी के नेताओं के भ्रष्‍टाचार के खिलाफ लड़ाई ने रही सही कसर पूरी कर दी.

स्‍वामी ने याद करते हुए कहा, 'उन्‍होंने तमिलनाडु और नई दिल्‍ली में बड़े स्‍तर पर करप्‍शन को बढ़ावा दिया. मुझे ऐसी चीजें बर्दाश्‍त नहीं. स्‍वाभाविक है कि 1990 के बाद से मैं उनसे शायद ही मिला.' बीजेपी सांसद मानते हैं कि करुणानिधि के बेटे एमके स्‍टालिन भी भीड़ जुटाने में माहिर हैं लेकिन वह अपने पिता की तरह बोलने में उस्‍ताद नहीं हैं. उन्‍हें लगता है कि करुणानिधि के बाद तमिलनाडु में जाति की राजनीति का दबदबा रहेगा और थेवर जाति से आने वाले शशिकला और टीटीवी दिनाकरण जैसे नेता बड़ी भूमिका में होंगे. हिंदुत्‍व के जरिए बीजेपी इसे रोक सकती है. दुर्भाग्‍य है कि जो लोग तमिलनाडु में बीजेपी का काम संभाल रहे हैं वे इतने काबिल नहीं हैं.'

(न्यूज18 के लिए डीपी सतीश)