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पन्नीरसेल्वम के खिलाफ लड़ाई आगे निकल गई हैं शशिकला

मरीना तट पर ओ. पन्नीरसेल्वम के सनसनीखेज बगावत के सात दिन बाद भी उनको कुछ खास बढ़त मिलती दिखाई नहीं दे रही है.

G Pramod Kumar

मरीना तट पर ओ. पन्नीरसेल्वम के सनसनीखेज बगावत के सात दिन बाद भी उनको कुछ खास बढ़त मिलती दिखाई नहीं दे रही है. न तो पार्टी के कुछ और वरिष्ठ सहयोगियों ने उनके प्रति किसी तरह का समर्थन नहीं दिखाया है, और उनकी प्रतिद्वंद्वी वी.के. शशिकला को साफ तौर पर बढ़त मिलती दिखाई दे रही है.

एक सप्ताह पहले एक दिन आधी रात को अविश्वसनीय तरीके से शशिकला ने बड़ी तेजी से अपने राजनीतिक कायापलट की शुरुआत की, जिसके पीछे कुछ दिन या सालों की नहीं बल्कि तीन दशकों की विरासत का दावा था. साफ तौर पर यह दिखाई दे रहा है कि उनका आत्मविश्वास भी बढ़ा है और उनको लगने लगा है कि जो विधायक उनका समर्थन कर रहे हैं वे उनका साथ नहीं छोड़ने वाले हैं. इसलिए यह कोई हैरानी की बात नहीं होगी कि वह उनको शहर के बाहर के उस रिसोर्ट से अपने घर जाने की इजाजत भी दे दें, जहां वे पिछले कई दिनों से डेरा जमाए बैठे हैं.


जिस तरह से लोगों की भावनाएं उनके खिलाफ हैं उसका जवाब देने की हालत में तो वह फिलहाल नहीं हैं. लेकिन रणनीतिक तौर पर उन्होंने जे जयललिता के  वैध उत्तराधिकारी के रूप में उन्होंने अपने दावे को मजबूत कर लिया है.

एक तरफ उन्होंने अपने आलोचकों के आरोपों का खंडन किया है तो दूसरी तरफ जनता के मन में अपनी देखभाल करने वाली से राजनीतिक वारिस बनने की छवि को भी तोड़ने की कोशिश की है. उनके खिलाफ सबसे बड़ा आरोप यह था कि जया उनको महज घर में कामकाज करने वाली और अपनी देखभाल करने वाली के रूप में ही देखती रहीं और उन्होंने कभी भी शशिकला को किसी तरह की राजनीतिक जिम्मेदारी नहीं दी. इसका सबसे बड़ा सबूत तो यही है कि जब जब जया को अपना पद छोड़ना पड़ा तो उन्होंने ओ. पन्नीरसेलवम के ऊपर ही भरोसा जताया.

सोमवार को अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं और मीडिया के सामने बोलने के पीछे शशिकला का साफ़ मकसद यह था कि इस धारणा को तोड़ते हुए विरासत का दावा किया जाए. इसके साथ इस धारणा को भी बनाये रखा जाए कि सत्ता में आने का उनका किसी तरह का कोई इरादा नहीं था, लेकिन उनको इसलिए आगे बढ़ना पड़ा क्योंकि ओ पन्नीरसेलवम गद्दार निकल गया. उन्होंने कहा कि जया की देखभाल के अलावा, जिसमें उनका बहुत समय जाता था, वह पार्टी के संगठन के लिए बहुत सारे काम करती रहती थी. इन कामों में पार्टी के स्थानीय नेताओं की शिकायतों को देखना और दूसरे दलों से गठजोड़ के लिए बातचीत करने जैसे काम भी शामिल थे.

असल में देखा जाए तो उनका यह कहना कि वह जया के लिए दफ्तरी कामकाज करती थी पूरी तरह गलत भी नहीं है. यह सभी जानते हैं कि पार्टी के अधिकतर नेता सबसे पहले उन्हीं से बात करते थे और विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिए वही उम्मीदवारों का चयन भी करती थी. दूसरी पार्टी के नेताओं को जब चुनाव के समय एआईडीएमके से गठजोड़ करना होता था तब वे भी उनसे मदद मांगते थे और वह उनको माकूल भी लगती थी.

हालाँकि इस बात को लेकर सवाल उठ सकता है कि यह भूमिका उनको उचित तरीके से मिली हुई थी या या इसके पीछे उनकी यह चाल थी कि पार्टी के संगठन को जया से दूर रखा जा सके ताकि वह सत्ता के केंद्र में बनी रह सके.

उसके आलोचकों- चाहे वह ओ. पन्नीरसेल्वम का खेमा हो या जया की भतीजी दीपा जयकुमार हो या फिल्म निर्देशक विसू, जो जया टीवी के लिए कार्यक्रम बनाते थे- का यह कहना है कि उन्होंने बिचौलिए की इस इस भूमिका के माध्यम से खुद को मजबूत बनाने का काम किया.

रविवार के दिन पन्नीरसेल्वम ने यह कहा कि 15 से अधिक सालों से शशिकला के द्वारा उनको प्रताड़ित किया जा रहा था. जब से जया ने उनको अपनी गैर मौजूदगी में काम करने के लिए चुना था तभी से उनको शशिकला के हाथों बुरी तरह से प्रताड़ित होना पड़ रहा था. दूसरी तरफ दीपा का यह आरोप था कि शशिकला ने जानबूझकर उसको उसकी बुआ से दूर रखा. दीपा का यह कहना था कि जब जया अपोलो अस्पताल में भर्ती थीं तब उनको जया को देखने देने के लिए नहीं जाने दिया गया जबकि दूसरे लोग बड़े आराम से आ-जा रहे थे.

परदे के पीछे से शशिकला की जो कहानी चलती रही- सोशल मीडिया, टीवी चैनलों और यूट्यूब पर ट्रेंड करने वाले असंख्य वीडियो के माध्यम से- उसका उद्देश्य आम जनता में उनके इस दावे को मजबूत करना था कि वह सिर्फ जया की वारिस ही नहीं थी बल्कि उनको मुख्यमंत्री के तौर पर भी देखा जाए. इस बात को लोगों के जेहन में मजबूती से स्थापित किया जाए कि न तो वह कोई नौसिखिया हैं न ही अवसरवादी, बल्कि वह एआईडीएमके की वैध सदस्य रही हैं जिन्होंने जया के कहने पर पार्टी के बड़े बड़े मसलों को सुलझाने का काम अंजाम दिया.

और यह कहानी उतनी पुरानी है जितनी कि राजनीति में जयललिता का आगमन. शशिकला के मुताबिक़, जब एमजीआर की मौत के बाद उनके ऊपर हमले हुए थे, जब उनका दिल बुरी तरह से टूटा हुआ था और वह राजनीति छोड़ने का मन बना रही थीं तब उन्होंने ही जयललिता का मनोबल बढ़ाया था. इसलिए ओ. पन्नीरसेल्वम के मुकाबले उनका दावा कहीं अधिक मजबूत है क्योंकि पन्नीरसेलवम ने जया का भरोसा 2001 में जीता था जबकि वह जया के राजनीतिक जीवन में शुरू से ही मौजूद रही हैं.

क्या इससे तमिलनाडु के लोगों का दिल पिघलेगा? क्या वे उनके ऊपर भरोसा करेंगे? फिलहाल तो हो सकता है कि ऐसा नहीं हो; लेकिन अगर वह अपनी इस की छवि को बदल पाने और वर्चस्व के संकट से उबर पाने में कामयाब रहीं तो हो सकता है कि वह तमिलनाडु की जनता का भरोसा जीत लें.

उनकी हालत लगभग उसी तरह की है जिस तरह की हालत का सामना 1987-88 में एमजीआर की मौत के बाद जानकी रामचंद्रन को करना पड़ा था. तब जया को पार्टी में दरकिनार कर दिया गया था. जानकी के साथ सभी नेता थे और पार्टी के अधिकतर विधायकों का समर्थन उसको हासिल था, लेकिन एक साल के अन्दर ही उनका महत्व जाता रहा और जया किसी स्टार की तरह से उभर कर आई और तमिलनाडु की राजनीति अपने जीवन के अंत तक छाई रहीं.

हालांकि दोनों में एक फर्क है, जानकी जया विरोधियों के लिए मुखौटा भर थीं और उनकी राजनीति में न तो किसी तरह की दिलचस्पी थी, न ही उनके अंदर कोई ख्वाहिश थी, न ही उनको उस तरह का प्रशिक्षण हासिल था जिस तरह का शशिकला को है. जानकी का किसी तरह का कोई अपना असर नहीं था, उनको कोई अपनी छवि भी नहीं थी और उन्होंने बड़ी आसानी से हार मान ली.

शशिकला ऐसा नहीं करेंगी. उनकी बनावट साफ़ तौर पर बहुत अलग तरह की है और वह बड़ी निर्ममता से जया के नक़्शे कदम पर चल रही हैं. शशिकला ने जया के कामकाज के तरीके को बहुत करीब से देखा है इसलिए शशिकला बहुत मजबूत विरोधी साबित होंगी. अगर ओ. पन्नीरसेल्वम लड़ाई में शुरूआती जीत हासिल भी कर लेते हैं तब भी वह आसानी से हार नहीं मानेंगी. उनके ‘मन्नारगुडी’ परिवार का जो विस्तार है उसमें उनका साथ देने की भरपूर ताकत भी है.

शशिकला अपने विधायकों के साथ निश्चिन्त भी दिखाई दे रही हैं. वह उनके ठिकाने पर सोमवार को लगातार तीसरी बार गई, जो चेन्नई से दो घंटे की दूरी पर है. साफ तौर पर यह लग रहा है कि उन विधायकों का पूर्ण विश्वास और समर्पण को हासिल करने की उनकी योजना का यह हिस्सा है. वह इस बात को ध्यान में रखते हुए अपने विरोधियों से एक कदम आगे ही रहना चाहती हैं कि अगर राजभवन की तरफ से ओ पन्नीरसेलवम को समर्थन मिल गया तो विधायकों का समर्थन उनके साथ बना रहे. अगर राज्यपाल उनको बिना शपथ दिलाये पहले सदन में विश्वासमत हासिल करने के लिए कहें तो वह यह चाहती हैं कि विरोधी खेमे की तरफ से चाहे कितना भी लालच दिया जाए उनके विधायक उनके साथ बने रहें. यह तभी संभव है अगर वे विधायक शशिकला के प्रति पूरी तरह से समर्पित हो जाएं.

संभवतया, बार बार की यात्राओं से, पिछले तीन दिनों में सभी को निजी तौर पर भरोसा दिलवाने और उनके साथ एकजुटता दिखाने के बाद उन्होंने वह भरोसा हासिल कर लिया है कि अगर वे विधायक खुले माहौल में आ भी गए तो भी इस बात की सम्भावना बहुत कम है कि वे पाला बदल लें, जैसा कि ओ. पन्नीरसेल्वम और उनके समर्थकों को उम्मीद है.

ओ. पन्नीरसेलवम का पक्ष में जो सबसे बड़ी बात है वह है जनता का समर्थन है, जो उसी तरह से है जो एमजीआर की मौत के बाद जया के लिए तब उभर कर आया था जब जया को बेदखल किया गया था. वह अभी तक तमिलनाडु की राजनीति में सबसे लोकतान्त्रिक और प्रिय नेता के रूप में देखे जाते हैं और हर वर्ग के लोगों के साथ उनका जुड़ाव तुरंत हो जाता है. इस बात को पक्का करने का एक ही तरीका है जिससे यह बात साफ हो जाए कि उनकी जमीन कमजोर नहीं है कि वह शशिकला के ऊपर जोरदार जवाबी हमला बोल दें और उनकी कहानी की हवा निकाल दें क्योंकि उनकी विश्वसनीयता अभी भी बहुत कम है.

यह एक ऐसा मौका है जिसको वे खोना नहीं चाहेंगे. अगर वह दौड़ में बने रहना चाहते हैं, तो कम से कम उनको इतने लोगों का समर्थन जुटाना होगा जिससे कि शशिकला को विधानसभा में बहुमत हासिल न हो पाए. ओ. पन्नीरसेल्वम के लिए विधानसभा में बहुमत हासिल कर पाना बहुत मुश्किल है लेकिन वह शशिकला की उम्मीदों में पलीता तो लगा ही सकते हैं. इससे आने वाले समय में होने वाले चुनावों में उनको फायदा होगा.

इस बीच, इस बात की सम्भावना भी है अगर सुप्रीम कोर्ट से शशिकला के खिलाफ फैसला आ जाता है तो सब कुछ गड्डमड्ड हो सकता है. ऐसे में कहानी को फिर से लिखा जाना होगा.