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सेंस ऑफ ह्यूमर की गुगली पर बोल्ड हुए सहवाग

शर्मनाक है कि सहवाग ऐसे लोगों के पक्ष में बैटिंग के लिए उतर आए

Sandipan Sharma

धुरंधर बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग का ये कहना बिल्कुल सही है कि, बैट में है दम. बेहतर होता कि वो अपने बल्ले को ही बात करने देते. मगर सहवाग ने ऐसा करने के बजाय अपनी जुबान खोली और एक शहीद की बेटी पर लगे तंज कसने लगे.

हमें पता है कि सहवाग का सेंस ऑफ ह्यूमर शानदार है और वो बड़े मजाकिया ट्वीट भी किया करते हैं. उन्होंने ये कला नजफगढ़ की गलियों में सीखी होगी. फिर दिल्ली के तमाम स्टूडियो में बैठकर अपना ये हुनर और बेहतर किया होगा. लेकिन जब उन्होंने एक शहीद की बीस साल की बेटी गुरमेहर कौर के खिलाफ कमेंट किया, तो वो बेहद असंवेदनशील लगा.


गुरमेहर कौर अपने साथी छात्रों के अधिकारों के लिए आवाज उठा रही थी. वो एबीवीपी के खिलाफ बोल रही थी. मगर सहवाग ने राष्ट्रवाद की वकालत करने के चक्कर में उस पर जो कुछ कहा वो बेहद असंवेदनशील था. साफ है कि राष्ट्रवाद की वकालत करने के लिए सहवाग को अभी बहुत कुछ सीखना होगा.

रविवार को सहवाग ने एक प्लेकार्डहाथ में लिए हुए अपनी तस्वीर ट्विटर पर पोस्ट की. जिसमें उन्होंने लिखा था कि मैंने तिहरा शतक नहीं बनाया, मेरे बैट ने बनाया. साथ ही उनके कमेंट में लिखा था, बैट में है दम. और हैशटैग के साथ लिखा था, भारत जैसा कोई नहीं.

सहवाग का ट्वीट गुरमेहर के पोस्ट का ही जवाब था

सहवाग का ये ट्वीट, दिल्ली यूनिवर्सिटी की छात्रा गुरमेहर कौर के फेसबुक पोस्ट के जवाब में था. शहीद कैप्टन मंदीप सिंह की बेटी गुरमेहर के उस पोस्ट में अपनी एक प्लेकार्ड लिए हुए तस्वीर डाली थी. इसमें गुरमेहर ने लिखा था, 'मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी की छात्रा हूं. मैं एबीवीपी से नहीं डरती हूं. मैं अकेले नहीं हूं. देश का हर छात्र मेरे साथ है. हैशटैग था #STUDENTSAGAINSTABVP'.

एक साल पहले ही गुरमेहर ने एक और प्लेकार्ड वाली अपनी तस्वीर डाली थी, जिसमें लिखा था, 'मेरे पिता को पाकिस्तान ने नहीं मारा, युद्ध ने मारा'.

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बहुत से लोगों के लिए बोलने की आजादी का मंच है. मगर कई चर्चित हस्तियों के लिए ये एक पिंजरा बन जाता है. वो अपनी इमेज, अपने फॉलोवर्स और विचारधारा के कैदी बन जाते हैं. फॉलोवर्स की तारीफ से उत्साहित होकर वो खुद पर ऐसा रोल लाद लेते हैं, जिसमें वो स्वतंत्र होकर बात नहीं कहते, बल्कि इसी कैद में रहकर बोलते हैं. जाने-अनजाने वो किसी खास विचारधारा के समर्थक बन जाते हैं.

यूं तो ज्यादातर स्पोर्ट्स स्टार, ऐसी बहस से दूर रहते हैं. लेकिन सहवाग अलग हैं. वो भारत माता की जय कहने वालों के कट्टर हिमायती हैं. कई बार वो अपने तीखे ट्वीट्स के जरिए खुद को राष्ट्रवाद के समर्थक के तौर पर पेश कर चुके हैं. मगर, जब आप अनजान पिच पर बैटिंग करने उतरते हैं तो कई बार आप गलत शॉट चुन लेते हैं. सहवाग को तो ये बात और बेहतर ढंग से पता होगी. वो कई बार गलत शॉट खेलकर आउट हुए होंगे. गुरमेहर कौर के ट्वीट के जवाब में उन्होंने जो तस्वीर डाली वो गलत शॉट खेलने जैसी ही थी.

बैटिंग करना और जंग में दुश्मन से लड़ना दोनों अलग बातें हैं

सुरक्षा की तमाम चीजें पहनकर बैटिंग के लिए उतरना और जंग में दुश्मन का सामना करना, दो अलग-अलग बातें हैं. गुरमेहर के पिता की शहादत की तुलना अपने तिहरे शतक से करके सहवाग ने सिर्फ गुरमेहर का मजाक नहीं बनाया, बल्कि उनके पिता की शहादत का भी अपमान किया. उनका खेल के मैदान का तजुर्बा अपनी जगह, मगर उसकी तुलना जंग से करना, सैनिक की शहादत से करना बिल्कुल भी ठीक नहीं. खेल के मैदान में विरोधियों का मजाक बनाना या स्लेजिंग करना अलग बात है.

बीस साल की एक लड़की का खुदमुख्तार खयाल रखना, उसे निडर होकर जाहिर करना ऐसी खूबी है जिससे शायद न सहवाग वाकिफ हैं और न ही रणदीप हुड्डा. हुडा ने भी सोशल मीडिया पर गुरमेहर कौर की ट्रॉलिंग की थी. उनके खिलाफ कई ट्वीट किए थे. हमें गुरमेहर कौर की इस बात के लिए तारीफ करनी होगी कि उन्होंने बिना झुके, बिना डरने तमाम तरह के विरोध का सामना किया और अपने पिता जैसी बहादुरी दिखाई. तगड़े विरोध के बावजूद वो विचारों की आजादी के लिए, अपने साथियों के लिए बहादुरी से लड़ीं. साहस वो है. ईमानदारी की मिसाल है. अगर गुरमेहर के पिता जिंदा होते तो वो अपनी बेटी पर गुरूर करते.

कैप्टेन मंदीप सिंह नफरत और जंग के शिकार हुए थे 

गुरमेहर इस बात पर भी सहीं हैं कि उनके पिता को किसने मारा. ये किसी देश, कुछ खास लोगों का काम नहीं था. कैप्टन मंदीप सिंह नफरत और जंग के शिकार हुए. और ये हालात नफरत की सियासत की वजह से पैदा होते हैं. कुछ खास एजेंडा चलाने वाले लोगों के चलते कैप्टन मंदीप सिंह जैसे बहादुर शहीद होते हैं. जो लोग ताकत के बूते, गुरमेहर जैसे लोगों की आवाज को दबाना चाहते हैं, वो एक शहीद की बेटी को परेशान कर रहे हैं. क्योंकि युद्ध हमेशा बातचीत से कोई मसला सुलझाने की नाकामी की वजह से होते हैं.

यूनिवर्सिटी में भय और नफरत का माहौल 

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में भय और साजिश का माहौल बना दिया है. क्योंकि वो बातचीत और बोलने की आजादी के खिलाफ हैं. शहला रशीद और उमर खालिद को रामजस कॉलेज के कार्यक्रम में न बोलने देना, ठीक वैसा ही है जैसा जंग के समर्थक करते हैं. वो बातचीत का विरोध करते हैं. ताकत के बूते मसले सुलझाना चाहते हैं. जिस तरह से एबीवीपी ने एक शहीद की बेटी को धमकाया, वो बेहद शर्मनाक है. खास तौर से तब और जब कैप्टन मंदीप सिंह की शहादत उसी विचारधारा की मिसाल है, जिसकी नुमाइंदगी एबीवीपी करती है.

ये और भी शर्मनाक है कि सहवाग ऐसे लोगों के पक्ष में बैटिंग के लिए उतर आए, जो जंग का शोर मचाते हैं. जो नफरत की राजनीति करते हैं. सहवाग के बल्ले में दम होगा, मगर उनके लफ्ज बेदम हैं.