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उत्तराखंड: क्या न्यायपालिका की फटकार से ही सक्रिय होती है त्रिवेंद्र सरकार?

उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सरकार गुड गवर्नेंस के चाहे कितने भी दावे कर ले लेकिन पिछले दिनों नैनीताल हाईकोर्ट लगातार अपने फैसलों में सरकार और उसकी नीतियों से जुड़े मसलों पर कड़े संदेश देती रही है

Namita Singh

उत्तराखंड सरकार लगातार न्यायपालिका के कटघरे में है, चाहे वाइल्ड लाइफ के सरंक्षण की बात हो, अंधाधुंध विकास और पर्यटन के नियमन का प्रश्न हो, आम आदमी की बुनियादी सुविधाओं के सुधार की जरूरत हो या हड़ताल के नाम पर मनमानी करते कर्मचारियों पर नकेल कसने की जरूरत हो. नैनीताल हाईकोर्ट लगातार सरकार को अव्यवहारिक नीतियों के लिए आईना दिखाता रहा है.

उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सरकार गुड गवर्नेंस के चाहे कितने भी दावे कर ले लेकिन पिछले दिनों नैनीताल हाईकोर्ट लगातार अपने फैसलों में सरकार और उसकी नीतियों से जुड़े मसलों पर कड़े संदेश देती रही है. आम आदमी की बुनियादी सुविधाओं से जुड़े और पहाड़ के पर्यावरण को संरक्षण प्रदान करते ये फैसले कहीं न कहीं ये इशारा जरूर करते हैं कि सरकार की नीतियां गुड गवर्नेंस के लिए काफी नहीं हैं. जहां आम आदमी के सरोकार की बात आती है, न्यायपालिका को सरकारी तंत्र को बार-बार निर्देश देने पड़ते हैं, हस्तक्षेप करना पड़ता है और कभी-कभी कड़े शब्दों में फटकार लगानी पड़ती है. जिम कॉर्बेट पार्क में बाघों और तेंदुओं की मौत के मामले में हीला-हवाली के चलते कोर्ट को यहां तक कहना पड़ा कि 'लानत है ऐसे राज्य पर और सरकारी कार्यालयों पर.'


पिछले वक्त में हाईकोर्ट के फैसलों ने सरकार की नीतियों और काम पर खड़े किए सवाल

उत्तराखंड में टूरिज्म से लेकर शिक्षा, स्वास्थ्य और तमाम बिंदुओं पर लगातार हाईकोर्ट के फैसलों ने सरकार की प्रभावी नीतियों के बनाने और उनके क्रियान्वयन के दावे पर सवाल खड़ा कर दिया है, जबकि प्रदेश सरकार इन दिनों जोरों-शोरों से उत्तराखंड में औद्योगिक निवेश को बढ़ाने के लिए पहली बार आगामी अक्टूबर माह में देहरादून में आयोजित होने वाली इन्वेस्टर्स समिट की तैयारियों में लगी हुई है. प्रदेश सरकार की ये विकास और निवेश बढ़ाने की मुहिम और वहीं दूसरी तरफ प्रदेश के महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकार को लगातार घेरती न्यायपालिका के फैसलों ने प्रदेश की कार्यप्रणाली को कटघरे में खड़ा कर दिया है. पिछले दिनों नैनीताल हाईकोर्ट के प्रदेश से जुड़े फैसलों से यह साफ़ हो गया है कि अभी भी प्रदेश सरकार पारदर्शी नीतियां नहीं बना पाई है.

अंधाधुंध निर्माण और अनियमित विकास ने उत्तराखंड के पर्यावरण और पारिस्थितिकी को बुरी तरह से प्रभावित किया है. पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए, जून 2018 में हाईकोर्ट ने राज्य में हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट्स के निर्माण पर भी रोक लगा दी और प्रत्येक जिलाधिकारी को निर्देश दिए कि प्रोजेक्ट्स से निकलने वाले कचरे को निस्तारित करने के लिए साइट्स खोजें जोकि नदियों से करीब 500 की दूरी पर हों. आरोप थे कि हाइड्रोप्रॉजेक्ट्स अपना कचरा नदियों में ही निस्तारित कर रहे थे. 500 मीटर दूरी पर डंपिंग ग्राउंड बनाने को लेकर निर्माण कार्य पर असर पड़ा हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस फैसले पर रोक लगा दी है. माननीय सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड में निर्माण पर जो रोक लगाने का आदेश अभी 31 अगस्त को दिया था, उसे भी हटा लिया गया है. हाईकोर्ट ने उत्तराखंड में नदी किनारे भूमि आवंटन पर भी रोक लगा रखी है.

पर्यटन की तमाम गतिविधियों से जुड़ी कोई स्पष्ट नीति के न होने से पर्यटन के नाम पर अनियोजित गतिविधियों का संचालन हो रहा था. इसी से संबंधित एक जनहित याचिका पर फैसला सुनाते हुए न्यायलय ने सुरक्षा और पर्यावरण का हवाला देते हुए सरकार को रिवर राफ्टिंग, पैरा ग्लाइडिंग और अन्य खेलों के लिए उचित कानून बनाने का आदेश दिया. हाईकोर्ट ने पर्यटन के प्रोत्साहन के साथ साथ इसके नियमन की आवश्यकता पर भी जोर दिया. उत्तराखंड सरकार साहसिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए अभी तक ड्राफ्ट पालिसी तैयार करने में लगी है.

हाईकोर्ट ने राज्य के सभी बुग्यालों और उच्च हिमालयी क्षेत्र की घाटियों को ईश्वर के आवास की संज्ञा देते हुए, तीन माह के अंदर बुग्यालों में बनाए गए स्थायी हट्स को हटाने और बुग्यालों में रात को ठहरने पर रोक लगा दी थी. साथ ही साथ बुग्यालों में पर्यटकों की आवाजाही सीमित करने और 200 से ज्यादा पर्यटकों के प्रवेश पर पाबंदी लगाने के भी आदेश दिए थे. जिम कॉर्बेट पार्क में हाथियों के व्यवसायिक प्रयोग पर भी कोर्ट ने शिकंजा कस दिया है. प्रदेश की आर्थिकी और रोजगार सबसे ज्यादा टूरिज्म पर निर्भर हैं. प्रदेश की GSDP का लगभग 34 प्रतिशत पर्यटन का योगदान है और प्रदेश सरकार पर्यटन को उद्योग का दर्ज़ा दे चुकी है लेकिन पर्यटन के नियमन के लिए कोई ख़ास पालिसी सरकार नहीं बना पाई है.

वाइल्ड लाइफ और प्राकृतिक स्रोतों पर चिंतित न्यायालय

गंगा और यमुना को जीवित व्यक्ति का दर्जा देने से लेकर, अपने आपको गोवंश का कानूनी अभिभावक घोषित करने तक, राज्य के पर्यावरण के मुद्दे और पारिस्थितिकी को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने समय-समय पर सरकार को चेताया है. गंगा, यमुना के साथ कोर्ट ने प्रदेश के जीव-जंतुओं और हवा-पानी को भी इंसानी दर्जा दे दिया. वाइल्ड लाइफ की सुरक्षा को लेकर भी कोर्ट अपनी चिंता समय-समय पर जताता रहा है.

टूरिज्म के अलावा राज्य में अतिक्रमण हटाने से लेकर, राज्य कर्मियों की हड़ताल को गैरकानूनी घोषित करने तक, हर जगह कानून को हस्तक्षेप करना पड़ा. पिछले 18 सालों में प्रदेश की छवि हड़ताली प्रदेश की बन कर रह गई है. समय-समय पर कर्मचारी संगठन अपनी बातें मनवाने के लिए कार्य का बहिष्कार और आंदोलन करते रहे हैं, जिनकी अवधि 6 महीने और उससे भी ज्यादा रही है. इससे राज्य की उत्पादकता और कार्यक्षमता पर बुरा असर पड़ा है.

शिक्षा के क्षेत्र में भी हाईकोर्ट ने प्रत्येक स्कूल में बुनियादी जरूरतों को पूरा करने और सभी मूलभूत सुविधाएं जुटाने के आदेश दिए और सौ करोड़ के बजट की व्यवस्था करने को कहा. साथ ही आदेश दिए कि उत्तराखंड के स्कूलों की दशा सुधरने तक सरकार कार, एसी, फर्नीचर जैसी लग्जरी वस्तुएं नहीं खरीदेगी. यहां तक कि जब तक सरकारी स्कूलों की व्यवस्था नहीं सुधरती, जनवरी 2018 में राज्य के शिक्षा विभाग के अधिकारियों की सैलरी तक रोकने के आदेश दिए. हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी. राज्य सरकार के NCERT की किताबों को लागू करने के संदर्भ में भी, कोर्ट ने प्राइवेट स्कूलों को वही किताबें पाठ्यक्रम में जोड़ने को कहा जिनकी कीमत NCERT के समकक्ष हो. उत्तराखंड सरकार को आड़े हाथों लेते हुए, हाईकोर्ट ने या तो सरकारी स्कूलों को सुधारने के लिए कहा या सरकार फाइनेंशियल इमरजेंसी घोषित करे.

सिस्टम के फेल होने के चलते हो रहा है न्यायिक दखल?

शिक्षा के अलावा, चिकित्सा की बेहतर व्यवस्था के लिए भी कोर्ट ने एक जनयाचिका पर फैसला सुनाते हुए आदेश दिया कि जिन अस्पतालों का प्रदेश में क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट के तहत रजिस्ट्रेशन नहीं है, उन्हें सील कर दिया जाए. इसके साथ ही अस्पतालों को चेतावनी देते हुए कहा कि वे बिना आवश्यकता के मरीजों को टेस्ट्स न लिखे और न ही ब्रांडेड दवाएं खरीदने के लिए दबाव डालें और आदेश दिए हैं कि नियमावली तैयार की जाए और सभी पंजीकृत अस्पताल उस नियमावली का पालन करें. पंजीकृत अस्पतालों में टेस्ट, इलाज़ और ऑपरेशन की दरें निर्धारित हों.

प्रदेश में कानून व्यवस्था को सुचारू करने के लिए कोर्ट का आदेश था कि प्रदेश में पहले से चली आ रही रेवेन्यू पुलिस को खत्म किया जाए और रेगुलर पुलिस की व्यवस्था की जाए. प्रदेश में धर्मानांतरण पर रोक लगाने से लेकर फतवों को गैर कानूनी घोषित करने तक, कोर्ट को फैसले लेने पड़े.

डेस्टिनेशन उत्तराखंड-इन्वेस्टर समिट के माध्यम से सरकार, प्रदेश में औद्योगिक विकास के सपने देख रही है लेकिन प्रदेश से जुड़े छोटे से छोटे मुद्दे और बुनियादी संसाधन जुटाने में लगातार न्यायपालिका के निशाने पर खड़ी सरकार कहां तक इस सपने को जमीन पर उतार पाती है, ये बात दीगर है. रिटायर्ड IAS श्री एस.एस.पांगती, इसे सीधी तरह से विधायिका और कार्यपालिका की अक्षमता को दोष देते हैं, 'सिस्टम के फेल होने के कारण ही न्यायपालिका को विधायिका और कार्यपालिका में दखल देना पड़ रहा है.'

उत्तराखंड सरकार में कैबिनेट मंत्री और प्रदेश बीजेपी के प्रवक्ता, श्री मदन कौशिक ने कहा कि 'सरकार कोर्ट के आदेशों पर अमल करने का पूरा प्रयास करती है और हम माननीय कोर्ट को अपनी कठिनाईओं से अवगत कराते रहते हैं.'

(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं)