यूपी में राज्यसभा की दस सीटों पर चुनाव होना है. लेकिन नामांकन दाखिल करने की बारी आई तो बीजेपी की तरफ से 11 उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल कर दिया. बीजेपी की तरफ से जिन 11 उम्मीदवारों ने नामांकन किया है, उनमें वित्त मंत्री अरुण जेटली के अलावा अनिल जैन, जीवीएल नरसिम्हा राव, अशोक वाजपेयी, हरनाथ सिंह यादव, विजय पाल सिंह तोमर, सकलदीप राजभर, श्रीमती कांता कर्दम, अनिल अग्रवाल, सलिल विश्नोई और विद्दा सागर सोनकर शामिल हैं. जबकि एसपी से जया बच्चन और बीएसपी से भीम राव अंबेडकर चुनाव मैदान में हैं.
संख्या बल के हिसाब से देखा जाए तो दस में से आठ सीटों पर बीजेपी की जीत पक्की है. जबकि जया बच्चन का भी राज्यसभा पहुंचना तय है. दूसरी तरफ, बीजेपी के अनिल अग्रवाल और बीएसपी के भीम राव अंबेडकर के बीच लड़ाई होनी तय है. बीजेपी ने नौवें उम्मीदवार के तौर पर अनिल अग्रवाल को आगे कर पेंच फंसा दिया है. यानी बीजेपी के कुल नौ उम्मीदवार ही सही मायने में मैदान में रहेंगे.
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत में बताया कि ‘बाकी दो उम्मीदवार सलिल विश्नोई और विद्दा सागर सोनकर का नामांकन बैकअप उम्मीदवार के तौर पर कराया गया है. यानी किसी उम्मीदवार का नामांकन रद्द होता है या फिर किसी तरह की कोई गड़बड़ी होती है तो उसके लिए फिर इन दोनों में से किसी को आगे किया जा सकता है.’
क्या कहता है अंकगणित?
यूपी में 403 सदस्यीय विधानसभा में संख्या बल के हिसाब से राज्यसभा के एक उम्मीदवार को जीत के लिए औसतन 37 विधायकों के समर्थन की जरूरत होगी. इस वक्त बीजेपी के विधायकों की संख्या 311, सहयोगी अपना दल के विधायकों की संख्या 9 और भारतीय समाज पार्टी के विधायकों की संख्या 4 है. यानी बीजेपी गठबंधन के पास 324 सीटें हैं.
दूसरी तरफ, विपक्षी खेमें में एसपी के विधायकों की संख्या 47, बीएसपी के विधायकों की संख्या 19, कांग्रेस की 7, आरएलडी और निषाद पार्टी के विधायकों की संख्या 1-1 है. 3 निर्दलीय विधायक भी जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं.
क्या है बीजेपी की रणनीति?
संख्या के हिसाब से बीजेपी के आठ उम्मीदवार राज्यसभा आसानी से पहुंच जाएंगे. लेकिन, आठ उम्मीदवारों के राज्यसभा पहुंचने के बावजूद बीजेपी गठबंधन के पास 28 विधायकों का वोट बचा रहेगा. ऐसे में नौवें उम्मीदवार को राज्यसभा भेजने के लिए उसे 9 विधायकों के समर्थन की जरुरत होगी.
ऐसे में तीन निर्दलीय विधायकों के अलावा कांग्रेस और एसपी के कुछ विधायकों का समर्थन लेकर बीजेपी के अनिल अग्रवाल भी बाजी मार सकते हैं. एसपी नेता नरेश अग्रवाल के बीजेपी में आने के बाद सूत्र बता रहे हैं कि कांग्रेस और एसपी के कुछ विधायक बीजेपी के संपर्क में हैं.
क्या है विपक्ष की रणनीति?
47 सीटों वाली एसपी अपने पहले 37 वोटों के जरिए जया बच्चन को आसानी से राज्यसभा पहुंचाने में सफल होगी. लेकिन उसके पास अभी भी 10 विधायकों के वोट बचे रहेंगे. इन 10 वोटों के साथ बीएसपी के 19 विधायकों के वोट जोड़कर आंकड़ा 29 हो जाता है. वहीं कांग्रेस के 7 और आरएलडी के 1 और निषाद पार्टी के 1 विधायक का समर्थन लेकर यह आंकड़ा 38 हो जाता है. यानी ये सभी पार्टियां एक जुट होकर वोट करें तो बीएसपी उम्मीदवार भीमराव अंबेडकर की जीत हो सकती है.
असली लड़ाई इसी सीट को लेकर है, यानी मुकाबला बीजेपी के अनिल अग्रवाल बनाम बीएसपी के भीमराव अंबेडकर के बीच ही रहने वाला है.
बीजेपी साध पाएगी जातीय समीकरण!
बीजेपी ने जिन नौ उम्मीदवारों को यूपी के मैदान में उतारा है, उनमें हर उम्मीदवार का खास महत्व है. रणनीति इस कदर बनाई गई है कि केंद्र से लेकर राज्य तक जातीय और क्षेत्रिय संतुलन को साधा जाए.
बीजेपी की तरफ से वित्त मंत्री अरुण जेटली को राज्यसभा का उम्मीदवार बनाया गया है. जेटली बीजेपी के बड़े ब्राम्हण चेहरे हैं. अबतक गुजरात से राज्यसभा सांसद रहे अरुण जेटली इस बार यूपी पहुंच गए हैं. यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी यूपी के वाराणसी से सांसद, गृह-मंत्री राजनाथ सिंह भी लखनऊ से सांसद और अब वित्त मंत्री अरुण जेटली भी यूपी से ही राज्यसभा सांसद. मोदी सरकार में यूपी के बढ़ते दखल का एहसास कराने वाला यह कदम है.
बीजेपी ने जीवीएल नरसिम्हाराव को भी यूपी से राज्यसभा उम्मीदवार बनाया है. राव आन्ध्र प्रदेश से आते हैं. वेंकैया नायडू के सक्रिय राजनीति से हटने के बाद अब उनकी जगह की भरपाई के लिए बीजेपी ने जीवीएल को आगे करने की कोशिश की है. इस वक्त वो बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता भी हैं.
डा. अनिल जैन बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव हैं. अनिल जैन को बीजेपी ने यूपी से ही राज्यसभा उम्मीदवार बनाया है. पेशे से डॉक्टर अनिल जैन को लेकर बीजेपी ने इस समुदाय के लोगों को खुश करने की कोशिश की है. फिलहाल जैन हरियाणा और छत्तीसगढ़ के प्रभारी महासचिव हैं.
एक साथ कई जातियों पर पार्टी साध रही है निशाना
बीजेपी ने दूसरे दलों से आए लोगों को भी काफी तरजीह दी है. एसपी से बीजेपी में आए अशोक वाजपेयी और हरनाथ सिंह यादव को बीजेपी ने उम्मीदवार बनाया है. अशोक वाजपेयी के जरिए ब्राम्हण समुदाय को साधने की कोशिश हो रही है. जबकि हरनाथ सिंह यादव के माध्यम से अखिलेश यादव के गढ़ में यादव वोट बैंक में सेंधमारी की कोशिश हो रही है. हरनाथ सिंह यादव एटा के रहने वाले हैं.
बीजेपी ने कांता कर्दम को उम्मीदवार बनाकर बड़ा दांव चला है. जाटव समुदाय से आने वाली कांता कर्दम को राज्यसभा भेजने का फैसला कर बीजेपी ने इस समुदाय को अपनी तरफ खींचने की कोशिश की है. दलित समुदाय की बीजेपी नेता कांता कर्दम अभी हाल ही में मेरठ में मेयर का चुनाव हार गई थीं.
विजय पाल सिंह तोमर पश्चिमी यूपी के बड़े किसान नेता माने जाते हैं. इसके पहले वो बीजेपी किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके हैं. पार्टी ने उन्हें राज्यसभा भेजकर ठाकुर समुदाय के साथ-साथ किसानों को भी साधने की कोशिश की है.
जबकि सकलदीप राजभर पूर्वांचल के बलिया क्षेत्र से आते हैं. राजभर समुदाय का पूरे पूर्वांचल इलाके में खासा दबदबा है. बीजेपी ने ओमप्रकाश राजभर की पार्टी भासपा से समझौता कर इस इलाके में काफी अच्छी जीत दर्ज की थी. अब राजभर समुदाय को फिर से अपने पास जोड़े रखने के लिए सकलदीप राजभर को मौका मिला है.
इन आठ उम्मीदवारों का राज्यसभा जाना तय है. लेकिन, असली लड़ाई नौवीं सीट के लिए है जहां बीजेपी ने अनिल अग्रवाल को मैदान में उतार दिया है. दूसरी तरफ बीएसपी ने अपने पूर्व विधायक भीमराव अंबेडकर को मैदान में उतारा है, जिनकी लड़ाई बीजेपी के अनिल अग्रवाल से है.
उधर एसपी ने जया बच्चन को फिर से मैदान में उतारा है. उनका चौथी बार राज्यसभा सांसद बनना भी तय है. यूपी में बीजेपी सबसे ज्यादा फायदे में है. पार्टी को यूपी विधानसभा चुनाव में मिली एकतरफा जीत का फायदा अब मिलता नजर आ रहा है.