view all

भीम राव अंबेडकर को राज्यसभा भेजकर मायावती क्या हासिल करना चाहती हैं

भारत रत्न बाबा साहब भीम राव अंबेडकर को अपना आदर्श मानकर राजनीति करने वाली बीएसपी सुप्रीमो अपने-आप को किनारे कर उन्हीं के नाम के पार्टी के दूसरे कार्यकर्ता को राज्यसभा भेजकर परसेप्शन की लड़ाई मे बाजी मारना चाहती हैं.

Amitesh

अब भीमराव अंबेडकर राज्यसभा पहुंचने की तैयारी में हैं. ये भीमराव अंबेडकर बीएसपी के नेता हैं जिन्हें पार्टी ने इस बार राज्यसभा का उम्मीदवार बनाया है. सियासी समीकरण देखकर ऐसा लग रहा है कि अंबेडकर साहब जल्दी ही उच्च सदन की शोभा बढ़ाएंगे. क्योंकि एसपी के सहयोग से उनकी राज्यसभा में जीत तो पक्की ही लग रही है.

हालाकि अटकलें इस बात की लगाई जा रही थी कि मायावती खुद राज्यसभा पहुंचेगी या फिर अपने भाई आनंद कुमार को राज्यसभा भेजेंगी. लेकिन, मायावती ने सियासी दांव खेलते हुए अंबेडकर को राज्यसभा पहुंचाने का फैसला कर लिया है. इसके मायने साफ लग रहे हैं. अबंडेकर दलित समाज से आते हैं. इटावा की लखना सीट से पार्टी के विधायक भी रह चुके हैं.


लेकिन, उनका नाम ही काफी है. कहते हैं नाम में क्या रखा है. लेकिन, मायावती के दांव से तो यही लग रहा है कि अब परसेप्शन की लड़ाई में नाम का भी बड़ा महत्व है. दलित समाज के मसीहा भारत रत्न बाबा साहब भीम राव अंबेडकर को अपना आदर्श मानकर राजनीति करने वाली बीएसपी सुप्रीमो अपने-आप को किनारे कर उन्हीं के नाम के पार्टी के दूसरे कार्यकर्ता को राज्यसभा भेजकर परसेप्शन की लड़ाई मे बाजी मारना चाहती हैं.

ऐसा इसलिए क्योंकि बाबा साहब भीम राव अंबेडकर की विरासत पर दावा बीजेपी भी ठोक रही है. मायावती के दलित वोटबैंक में सेंधमारी कर बीजेपी ने यूपी में बीएसपी को जड़ से हिला दिया है. लिहाजा दलित समुदाय के अंबेडकर को राज्यसभा भेजने का फैसला किया गया है.

मायावती ने क्यों लिया खुद राज्यसभा में जाने का फैसला

अगर मायावती खुद राज्यसभा जाती तो यह सवाल खड़ा होता कि वो सबसे पहले अपने-आप के लिए ही करती हैं.अगर ऐसा होता तो मायावती के राज्यसभा से इस्तीफे देने के मुद्दे पर भी सवाल खड़ा होता. क्योंकि 6 महीने पहले मायावती ने जिन हालात में सदन के भीतर अपनी बात नहीं रखने देने का आरोप लगाकर इस्तीफा दिया था, वो भी काफी चर्चा का विषय बना था. दलितों पर हो रहे हिंसा के मुद्दे पर अपनी बात नहीं रखने देने का आरोप लगाकर मायावती ने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया था. हालाकि उनका भी कार्यकाल अप्रैल 2018 में ही खत्म हो रहा था. जहां इस बार 23 मार्च को चुनाव हो रहा है.

ऐसे में सवाल यही पूछा जाता कि मायावती को जब दोबारा राज्यसभा में आना ही था तो फिर इस्तीफा क्यों दिया था.

मायावती अगर अपने भाई आनंद कुमार को राज्यसभा भेजने का फैसला करती तो उस मुद्दे पर भी फिर आलोचना होती. क्योंकि बीएसपी के सफाए के बाद 403 सदस्यीय विधानसभा में उसके महज 19 विधायक हैं और जब बारी एसपी के सहयोग से राज्यसभा का सीट मिलने की आई तो फिर कार्यकर्ताओं पर परिवार को तरजीह देने का आरोप लगता. यह कदम मायावती के लिए परसेप्शन की लड़ाई में नुकसानदेह हो सकता था. लिहाजा मायावती ने परिवार के उपर कार्यकर्ता को ही तरजीह दी.

मायावती अगर एसपी के सहयोग से राज्यसभा जाती तो उनके लिए भी अगले लोकसभा चुनाव से पहले एसपी के साथ मिलकर यूपी में गठबंधन करने को लेकर नैतिक दबाव भी होता. लेकिन, मायावती इस बात को समझ रही हैं. वो नफा-नुकसान का आकलन करने में लगी हैं.

मायावती ने यूपी की गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा के लिए हो रहे उपचुनाव में एसपी को समर्थन देने का फैसला किया है. इस समर्थन के बदले ही एसपी की तरफ से बीएसपी के उम्मीदवार को समर्थन दिया जाएगा. यानी मायावती एक हाथ से अखिलेश यादव को दे रही हैं तो उसके बदले में उनसे कुछ ले रही हैं. वो भी अपने कार्यकर्ता भीम राव अंबेडकर के नाम पर.

दलितों में एक बार फिर पैठ बनाने की कोशिश में हैं मायावती

राज्यसभा से इस्तीफे के बाद से ही मायावती जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत कर फिर से अपने-आप को खड़ा करने की तैयारी कर रही हैं. उन्हें लगता है कि दलितों में उनकी पैठ फिर से हो गई तो लोकसभा चुनाव में उनके लिए फिर से खड़ा होने की ताकत मिल जाएगी.

अगर इस बार लोकसभा की दोनों सीटों पर उपचुनाव में हुआ गठबंधन काम कर गया तो लोकसभा चुनाव 2019 में यह कहानी फिर से दोहराई जा सकती है. उस वक्त मायावती और अखिलेश मिलकर बीजेपी को चुनौती दे सकते हैं.

लेकिन, उसके पहले जीमीनी-स्तर पर मायावती सामाजिक समीकरण को गोरखपुर और फूलपुर में तौल लेना चाहती हैं. इससे पहले राज्यसभा उम्मीदवार के तौर पर भीम राव अंबेडकर से बेहतर विकल्प उनके लिए कुछ भी नहीं हो सकता है.