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EXCLUSIVE: एक संन्यासी के CM बनकर संवैधानिक फर्ज पूरा करने में अध्यात्म आड़े नहीं आता- योगी आदित्यनाथ

इंटरव्यू के इंतजार के लम्हों में यह देखकर प्रभावित हुए बगैर न रह सका कि सूबे के शासन के सबसे ऊंचे ओहदे पर बैठे व्यक्ति के आधिकारिक आवास पर सियासी तहजीब किस कदर बदली-बदली दिख रही है.

Ajay Singh

एडिटर नोट- मार्च में योगी आदित्यनाथ यूपी के सीएम के तौर पर दो साल का कार्यकाल पूरा करेंगे. इस महत्वपूर्ण पड़ाव से पहले भारत के सबसे बड़े राज्य के असंभावित प्रशासक ने फ़र्स्टपोस्ट से बात की. योगी ने उन चुनौतियों के बारे में बात की जिसका उन्होंने उत्तर प्रदेश की धारणा बदलने के दौरान सामना किया, जो ब्यूरोक्रैट्स के नेतृत्व के दौरान सामने आई. योगी ने संविधान की अपनी व्याख्या पर भी राय जाहिर की.

कालिदास मार्ग का बंगला नंबर-5 उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का आधिकारिक निवास स्थान है. बंगले के अंदर जाती और बाहर निकलती लकदक कारें, ताबेदारी की पुरानी रिवायत का इजहार करते, हाथ में फाइल थामे ‘बाबू’लोग और बंगले के आसपास यों ही मंडराता लोगों का हुजूम- यह दृश्य यहां रोज ही देखने को मिलता है. बीते 28 दिसंबर को योगी आदित्यनाथ का साक्षात्कार लेने के मकसद से जब मैं मुख्यमंत्री निवास पर पहुंचा तो मुझे कत्तई उम्मीद नहीं थी कि नजारा इससे कुछ अलग देखने को मिलेगा. मुलायम सिंह यादव, मायावती या फिर अखिलेश यादव के दौर में तो मुलाकात का वक्त पहले से तय हो तब भी बंगले में कदम रख पाना प्रधानमंत्री के निवासस्थान में पहुंचने से कहीं ज्यादा मुश्किल था.


मुझे झटका लगा कि बंगले पर चलने वाला दस्तूर इतना बदल कैसे गया

चंद खास खुशकिस्मतों को छोड़ दें तो बाकी हर मुलाकाती को बाबूगीरी की भुलभूलैया और अकड़ में ऐंठे पुलिस कांस्टेबल्स की बीच से गुजरकर अपने लिए किसी तरह रास्ता निकालना होता था. इस कड़ी मशक्कत के बाद ही आप लखनऊ में सत्ता के सिंहासन के सामने पहुंच पाते थे. गेट पर हमारी कार पहुंची तो मैं मन ही मन अपने को बंगले के हिफाजती इंतजाम में लगे लोगों के हाथों होने वाली बारीक जांच-परख के लिए तैयार कर रहा था. एक पुलिस अधिकारी आया. मैंने उसे अपना परिचय दिया और बताया कि मैं मुख्यमंत्री से मिलने आया हूं. ठीक है सर, मुझे एक मिनट का वक्त दीजिए, उसने बड़े अदब से कहा और मुझे एक झटका लगा कि बंगले पर चलने वाला दस्तूर इतना बदल कैसे गया और, सच जानिए कि चंद मिनटों के भीतर ही उसने हमें अंदर जाने की हरी झंडी दे दी.

एक अधिकारी ने बताया कि इंटरव्यू जल्दी ही शुरू हो जाएगा

मैंने चारो तरफ नजरें घुमाई, मेरा आश्चर्य और ज्यादा गहरा हुआ. चंद वरिष्ठ पुलिस अधिकारी बाहर आते दिखे. इसके अलावा कोई और नजर नहीं आ रहा था. बंगले से बाहर निकलते पुलिस अधिकारी पुलिस-सप्ताह समारोह के सिलसिले में मुख्यमंत्री से मिलने आए थे और उनका मुख्यमंत्री के साथ एक भोज (शुद्ध शाकाहारी) था. झटपट जामातलाशी की कवायद पूरी हुई और मुझे एक वेटिंग लॉन्ज में ले जाया गया. लॉन्ज पहले सत्ता के गलियारों में मंडराने वाले बिचौलियों और कृपा चाहने वाले खुशामदियों से भरा रहा था लेकिन इस बार लॉन्ज खाली दिखा. एक सहायक ने मुझे चाय दी और एक अधिकारी ने बताया कि इंटरव्यू जल्दी ही शुरू हो जाएगा.

कालिदास मार्ग का आवास मठ का ही एक सुसज्जित विस्तार लगा

इंटरव्यू के इंतजार के लम्हों में यह देखकर प्रभावित हुए बगैर न रह सका कि सूबे के शासन के सबसे ऊंचे ओहदे पर बैठे व्यक्ति के आधिकारिक आवास पर सियासी तहजीब किस कदर बदली-बदली दिख रही है. एक संयम और सादगी पूरे माहौल में घुली दिख रही थी. मैं चुनावी दौरे पर कई दफे गोरखपुर के गोरखनाथ पीठ गया हूं. कालिदास मार्ग का आवास मठ का ही एक सुसज्जित विस्तार जान पड़ रहा था. गोरखपुर के दौरे या फिर संसद के गलियारे में योगी आदित्यनाथ से मेरी जो छिटपुट बात हुई थी, उससे मेरे मन में छवि बनी थी कि यह शख्स एक सख्त मिजाज संन्यासी है, जिसकी राजनीति गोरखपुर के अंडरवर्ल्ड के ताकतवर ब्राह्मण की काट में चलती है.

योगी आदित्यनाथ मुख्यधारा की राजनीति का हिस्सा नहीं जान पड़ते थे

गोरखधाम पीठ नाथ संप्रदाय का मठ है और इस मठ का ओबीसी तथा एससी जाति समुदाय पर अच्छा खासा सामाजिक आर्थिक प्रभाव है इसलिए योगी की चुनावी जीत को अक्सर धार्मिकता की देन करार दिया जाता रहा, जबकि उनके राजनीतिक कौशल को श्रेय कम दिया गया. गोरखपुर और उससे लगे इलाकों में सुनी सुनाई बातों की जमीन पर गढ़ी हुई कुछ कहानियां चलती हैं, जिसमें योगी आदित्यनाथ के सख्त तेवर के चर्चे होते हैं और इस बात के भी उन्होंने अपने लिए परम निष्ठावान लोगों की एक सेना तैयार कर रखी है. थोड़े में कहें तो योगी आदित्यनाथ मुझे मुख्यधारा की राजनीति का हिस्सा नहीं जान पड़ते थे और उनके राजकाज की काबिलियत को लेकर भी मेरे मन में शंका थी.

योगी आदित्यानाथ बताए समय के ठीक आसपास पहुंचे

योगी अंदर आए और मेरे मन में उत्सुकता जागी कि जरा देखा जाए, आखिर देश के सबसे बड़े सूबे के तनिक अलग से जान पड़ते सबसे बड़े प्रशासक का मन मानस उस मुकाम पर आकर कैसा है, जब उसने सत्ता मे रहते हुए दो साल की अहम दूरी पार कर ली है. क्या गऊ, गोमांस, मंदिर और मुस्लिम के नाम पर लगातार हंगामे खड़ा करने के अलावा भी कुछ ऐसा है, जो इस शख्स के भीतर पोशीदा है ? वक्त की पाबंदी का खास ख्याल रखने वाले योगी आदित्यानाथ बताए समय के ठीक आसपास पहुंचे और बैठने के साथ सीधे मुद्दे की बात पर आने को तैयार नजर आए मानों इधर-उधर की किसी बात में वक्त जाया न करना चाहते हों.

संगठित किस्म के अपराध पर एक हद तक काबू पा लिया है

साक्षात्कार की शुरुआत में मैंने उनसे पूछा कि आपने अभी तक उत्तर प्रदेश में क्या बदलाव किए हैं? जवाब खट से मिला- " मैंने उत्तर प्रदेश के बारे में लोगों की धारणा बदल दी है. दो साल पहले तक, लोग यूपी को ज्यादातर भ्रष्टाचार, विधिहीनता, अराजकता और दंगों के लिए जानते थे. सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि देश के बाहर भी लोगों के मन में यूपी को लेकर यही धारणा थी. मार्च में मेरे दो साल पूरे होंगे. मेरे अब तक के शासन में, कोई दंगा नहीं हुआ है.

हमने संगठित किस्म के अपराध पर एक हद तक काबू पा लिया है. हमने कानून के राज को मजबूत बनाया है. पारिवारिक झगड़े या निजी दुश्मनी के कुछ मामलों को छोड़ दें तो फिर पूरे प्रदेश में अब लोग असुरक्षित नहीं हैं. धारणा में आए बदलाव के कारण सूबे में निवेश आ रहा है. आज भारत और दुनिया की तमाम जगहों से बड़े-बड़े उद्योगपति यूपी में निवेश करने को उत्सुक हैं. मार्च में हम शासन के दो साल पूरे करने जा रहे हैं और राज्य में 2 लाख करोड़ का निवेश आ चुका है जो अपने आप में अप्रत्याशित है."

योगी आदित्यनाथ ने नौकरशाहों को खेल में पटखनी देने की ठान ली

योगी आदित्यनाथ ने कृषि, उद्योग तथा सामाजिक क्षेत्र में हुई प्रगति के आंकड़े गिनाते हुए ये दावा किया. अध्यात्म की दुनिया में रमने वाले संन्यासी की अपनी छवि को तोड़ते हुए आदित्यनाथ ने ढेर सारे मुद्दों पर बात की, जताया कि सूबे की प्रशासनिक मशीनरी पर उनका पूरा नियंत्रण है. एक जिला-एक उत्पाद, की अपनी महत्वाकांक्षी योजना पर बात करते हुए उन्होंने उत्पाद के ‘मैपिंग, ब्रांडिंग और मार्केटिंग’ के बारे में वैसी ही महीनी से बात की जैसे कोई मैनेजमेंट की पढ़ाई पूरी कर चुका ग्रेजुएट करेगा. योगी ने स्वीकार किया कि मुख्यमंत्री के रूप में उनके शुरुआती दिनों में कुछ नौकरशाहों ने उन्हें गुमराह करने की कोशिश की थी, लेकिन योगी आदित्यनाथ ने नौकरशाहों को उनके ही खेल में पटखनी देने की ठान ली.

1990 में सॉफ्ट ड्रिंक की कंपनियां यूपी में कारखाने खड़े करना चाहती थीं 

मिसाल के लिए यूपी के डार्क जोन का मामला लिया जा सकता है. सन् 1990 के दशक में जब सॉफ्ट ड्रिंक बनाने वाली बड़ी कंपनियां यूपी में अपने कारखाने खड़े करना चाह रही थीं तो उन्हें 200 प्रखंडों में ऐसा करने की अनुमति न मिली क्योंकि इन प्रखंडों में भूमिगत जल की दशा-दिशा ठीक नहीं थी. इन प्रखंडों को डार्क जोन का नाम दिया गया. भूमिगत जल का भरपूर दोहन करने वाली सॉफ्ट ड्रिंक निर्माता बड़ी कंपनियों को दूर रखने के नाम पर जमीन का वर्गीकरण कुछ इस रीति से किया गया कि मामला ट्यूब वेल लगाने पर सीधे पाबंदी तक जा पहुंचा. किसानों को सिंचाई के पानी का टोटा पड़ने लगा.

उन लोगों ने देरी की, छल-कपट का सहारा लिया 

योगी ने कहा- बीते वक्त में लोगों को किस हद तक ठगा गया ये जानकर आपको हैरानी होगी. मैं एक उदाहरण से इस बात को समझाता हूं. उत्तर प्रदेश में लगभग 200 प्रखंडों ( राज्य के ग्रामीण इलाके का लगभग 25 प्रतिशत) को पिछली सरकारों ने डार्क जोन घोषित कर दिया था. किसानों को खेतों की सिंचाई के लिए पंपिंग सेट लगाने की मनाही थी और सिंचाई का कोई अन्य विकल्प भी न था.

जब मैंने पूछा कि आदेश किस आधार पर दिए गए तो मुझे एक कोर्ट ऑर्डर का गलत हवाला दिया गया. मैंने फाइल मांगी तो वो मेरे पास 6 महीने बाद पहुंची, वो भी बहुत जोर देने के बाद. उन लोगों ने देरी की, छल-कपट का सहारा लिया और तब जाकर एक फाइल सौंपीं जिसमें 1990 के दशक के शुरुआती समय के एक अदालती आदेश का हवाला था कि कोका कोला और पेप्सी कोला जैसी कंपनियां उन इलाकों में अपने संयंत्र (प्लांट) न लगाएं जहां किसान सिंचाई के लिए भूमिगत जल पर निर्भर हैं.

योगी ने राजनीति की भाषा को धार्मिक मुहावरे में पेश करना सीख लिया है

इस आदेश का इस्तेमाल किसानों को सिंचाई के पानी से वंचित रखने के लिए किया गया. उन लोगों के पास कोर्ट के आदेश की पुष्टी में कोई आंकड़े भी न थे. समस्या जानते-बूझते पैदा की गई थी. ऐसी समस्या, दरअसल कोई थी नहीं. इसी तरह से योगी ने एक लेबर ऑफिसर के बारे में बताया कि उन्होंने उसे कैसे निलंबित किया. ये लेबर ऑफिसर ग्रेटर नोएडा के सैमसंग प्लांट के मैनेजमेंट (प्रबंधन) को बिना किसी कारण के परेशान कर रहा था.

गोरखपुर से लोकसभा के लिए कई बार सांसद निर्वाचित हो चुके योगी ने राजनीति की भाषा को धार्मिक मुहावरे में पेश करना अच्छे से सीख लिया है. मिसाल के लिए, संविधान में उनकी निष्ठा को लेकर मैंने सवाल पूछा तो उनका जवाब था कि संविधान में मेरी निष्ठा भारत के उन ऋषि-मुनियों की परंपरा का ही हिस्सा है जो किसी अन्य देश काल में सामाजिक व्यवस्था कायम करने के लिए स्मृतियों (सामाजिक आचार संहिता) की रचना कर रहे थे.

मैं मुख्यमंत्री के अपने संवैधानिक ओहदे के असंगत नहीं मानता

उन्होंने कहा कि आजादी के बाद के दौर में, देश ने संविधान को अपने सबसे पवित्र संहिता के रूप में अपनाया और देश ने इस संहिता को अटूट विश्वास से अंगीकार किया लेकिन साथ ही उन्होंने अपनी बात में यह भी जोड़ा कि अतीत में हमारे ऋषियों ने मनुस्मृति सहित अनेक स्मृतियां बनाई थीं ताकि समाज को चेतना के विभिन्न धरातल पर संचालित किया जा सके. इस सवाल पर कि क्या संविधान की आपकी यह व्याख्या कुछ ज्यादा ही अक्खड़ किस्म की नहीं है, योगी अपनी टेक पर जमे रहे और जवाब दिया कि दरअसल यह सच्चाई है. एक सवाल यह भी पूछा मैंने कि क्या आपकी वर्तमान भूमिका एक संन्यासी के रूप में अध्यात्म की राह पर चलने की कोशिशों से बेमेल नहीं है, तो उन्होंने स्पष्ट किया कि गोरखनाथ पीठ के महंत की अपनी भूमिका को मैं मुख्यमंत्री के अपने संवैधानिक ओहदे के असंगत नहीं मानता. उनका जवाब था कि मैंने अपनी राजनीति को सेवा से जोड़ा है और इसमें मुझे अध्यात्म का आनंद मिलता है.

सीएम ने धार्मिक सादगी संयम से मेल खाता सियासी परिवेश रचा है

बड़े फलक के इस साक्षात्कार में योगी आदित्यनाथ प्रशासन की बारहखड़ी जानने वाले व्यक्ति के रूप में तो नजर आए ही, साथ ही एक ऐसी शख्शियत के रूप में भी दिखे जिसने धार्मिक सादगी संयम से मेल खाता सियासी परिवेश रचा है. बीच-बीच में जब वे अलोकतांत्रिक भाव भंगिमा दिखाते हैं, जैसे कि पुलिस एनकाउंटर को सही ठहराने के लिए यह कहना कि ठोक देंगे तो संन्यासी की उनकी हैसियत ऐसे वक्त में उनके लिए किसी छत्रछाया की तरह काम करती है.

उन्हें अपने धार्मिक विश्वासों को लेकर कोई संकोच नहीं है. वे विवादास्पद मुद्दों पर सियासी व्याकरण से मेल खाता उत्तर देने में यकीन नहीं करते. वे अगर हिंदुत्व की राजनीति के सहज विकास का अगला रूप बनकर उभरते हैं तो मुझे इस पर आश्चर्य नहीं होगा.

( अगले अंक में पढ़ें एक घंटे तक चले साक्षात्कार का पहला और सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा )