view all

गोरखपुर उपचुनाव: 30 सालों में पहली बार हो रहा है ये बदलाव

यहां पिछले तीस सालों में पहली बार गोरखनाथ मंदिर के किसी बाहरी आदमी को यहां से बीजेपी चुनाव में लड़ने को उतार रही है

FP Staff

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर और फूलपुर संसदीय सीट के लिए 11 मार्च को उपचुनाव होने हैं. ये दोनों ही सीटें राजनीतिक लिहाज से काफी अहम हैं. गोरखपुर और फूलपुर दोनों सीटें क्रमश: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के लोकसभा से इस्तीफा देने के बाद खाली हुई हैं.

बीजेपी ने सोमवार को अपने प्रत्याशियों की लिस्ट जारी कर दी है. यूं तो इन चुनावों पर सबकी नजरें होंगी लेकिन गोरखपुर की सीट से इस बार मामला कुछ अलग है. यहां पिछले तीस सालों में पहली बार गोरखनाथ मंदिर के किसी बाहरी आदमी को यहां से पार्टी चुनाव में लड़ने को उतार रही है.


बीजेपी ने यूपी में पार्टी के क्षेत्रीय इकाई अध्यक्ष उपेंद्र शुक्ला को गोरखपुर सीट से उतारा है. साथ ही फूलपुर सीट से पार्टी के राज्य सचिव कौशलेंद्र सिंह पटेल बीजेपी के उम्मीदवार हैं.

उपेंद्र शुक्ला गोरखपुर में पार्टी के इकाई अध्यक्ष है. इसके पहले वो पार्टी के जिला अध्यक्ष भी रह चुके हैं. वहीं, कौशलेंद्र सिंह पटेल राज्य सचिव के अपने दूसरे कार्यकाल में हैं. वो 2006 में वाराणसी के मेयर रह चुके हैं. उन्हें उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के काफी करीबी माना जाता है और कहा जा रहा है कि उन्हें डिप्टी सीएम के चलते ही फूलपुर से टिकट मिली है.

11 मार्च को गोरखपुर और फूलपुर के अलावा बिहार की भी विधानसभा सीट भभुआ और अररिया लोकसभा सीट पर उपचुनाव होने हैं. मंगलवार यानी 20 फरवरी को नामांकन भरने की आखिरी तारीख है. काउंटिंग 14 मार्च को होनी है.

1989 से अब तक गोरखनाथ मंदिर के प्रत्याशी ही यहां कई चुनावों में जीतते रहे हैं. 1989 में योगी आदित्यनाथ के गुरू महंत अवैद्यनाथ इस सीट से जीते थे. इसके बाद 1991 और 1996 के लोकसभा चुनावों में भी जीते थे. इसके बाद 1998, 1999, 2004, 2009 के चुनावों में योगी आदित्यनाथ को जीत मिली.

बीजेपी के साथ-साथ गोरखपुर के लोगों के लिए भी ये बात काफी अहम होगी, क्योंकि गोरखपुर में गोरखधाम और इसके महंतों की काफी पैठ है. ये इसी बात से साबित हो जाता है कि पिछले 30 सालों में यहां से पीठ के बाहर का कोई भी कैंडिडेट जीता नहीं है. बीजेपी अब तक कैंडिडेट के चुनाव और उसकी जीत के लिए गोरखनाथ मंदिर और उसके समर्थकों पर निर्भर रहती आई है. इसलिए बीजेपी ये भी जमीनी हकीकत जान पाएगी कि इस खास संसदीय इलाके में गोरखधाम के इतर उसे कितनी बढ़त मिलेगी और यहां जनता के लिए भी ये एक बदलाव होगा.