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महागठबंधन एक मूर्खतापूर्ण राजनीतिक प्रयोग

मुलायम-प्रशांत किशोर मुलाकात को महागठबंधन के रूप में नहीं देख सकते..

Amit Singh

उत्तर प्रदेश की सियासत हर सुबह एक नई बयार लाती है. कुछ दिन पहले बीजेपी, सपा, बीएसपी, रालोद समेत सभी राजनीतिक पार्टियां यह दावा कर रही थीं कि वे अकेले चुनाव में उतरेंगी. लेकिन अब महागठबंधन की लहर है.

मतलब उत्तर प्रदेश अब बिहार की राह पर है. चुनाव से पहले मुलाकातों का दौर चल रहा है.


मंगलवार को सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव से कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने मुलाकात की.

इससे पहले प्रशांत किशोर सपा के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव से भी मिल चुके हैं. शिवपाल और प्रशांत की मुलाकात करवाने में जेडीयू नेता केसी त्यागी की अहम भूमिका बतायी जा रही है.

शिवपाल यादव ने राष्‍ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष अजित सिंह से उनके दिल्‍ली स्थित आवास पर मुलाकात की थी.

इस नए घटनाक्रम को समझने के लिए हम इतिहास में झांकते हैं. मुलायम सिंह यादव, नीतीश कुमार, चौधरी अजित सिंह, शिवपाल यादव समेत जितने भी नेता आज महागठबधंन बनाने में लगे हुए हैं.

इन सबका सियासी विकास पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की छत्रछाया में हुआ है.

विश्वनाथ प्रताप सिंह ने 1989 के चुनाव में एक महागठबंधन बनाया था

पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने कांग्रेस की विरोधी सभी छोटी-बड़ी पार्टियों को मिलाकर 1989 के चुनाव में एक महागठबंधन बनाया था.

इस महागठबंधन को आम चुनाव में बड़ी सफलता मिली. लेकिन इस पूरे घटनाक्रम पर सिंह ने 31 अक्टूबर 1991 को कहा,' दिस इज ए सिली पॉलिटिकल एक्सपेरीमेंट' यानी यह एक मूर्खतापूर्ण राजनीतिक प्रयोग है.

कभी सिंह के सियासी साथी रहे अब फिर से वही मूर्खतापूर्ण प्रयोग दोहराने की कोशिश कर रहे हैं. इतने दिनों में प्रदेश के राजनीतिक हालात भले ही बदल गए हों, लेकिन नेताओं की महत्वाकांक्षाएं नहीं बदली है.

अब हम इसका व्यवहारिक पहलू देखते हैं. उत्तर प्रदेश में महागठबंधन के सूत्रधार शिवपाल यादव हैं.

अभी 26 अक्टूबर को शिवपाल यादव ने कहा, 'हम लोहियावादियों, गांधीवादियों, चरणसिंहवादियों और धर्मनिरपेक्ष ताकतों को एक जगह ला सके तो बीजेपी को रोक सकते हैं.'

उन्होंने जेडीयू, आरजेडी और रालोद के नेताओं को लखनऊ में 5 नवंबर को होने वाली सपा की रजत जयंती समारोह में भी बुलाया है.

लेकिन अभी तक आई खबरों के अनुसार जेडीयू, आरजेडी और रालोद के बड़े नेता इस समारोह में शामिल होने से इंकार कर चुके हैं.

पिछले साल बिहार में समाजवादी पार्टी ने महागठबंधन से अलग होकर इस प्रयोग को असफल बनाया था. अब बारी दूसरी पार्टियों की है.

दूसरा सबसे बड़ा सवाल खुद सपा के साथ है. टिकट बंटवारे के लिए पार्टी में चाचा-भतीजे की लड़ाई जगजाहिर हो चुकी है.

पार्टी में दो फाड़ होने तक की बातें कही जा रही थी. ऐसे में क्या सपा के लिए आगामी चुनाव में संभावित गठबंधन के सहयोगी दलों के लिए सीटें छोड़ना बहुत आसान होगा?

सपा के विरोध पर जिंदा है रालोद

तीसरी बात यह है कि रालोद अपने गढ़ में सपा के विरोध पर जिंदा है. अगर वह सपा के साथ गठजोड़ कर लेती है तो उसका वोट बैंक खिसक जाएगा.

सपा का एजेंडा कांग्रेस विरोध का है. जेडीयू का बड़ा आधार प्रदेश में नहीं है.

कांग्रेस के मुखिया राहुल गांधी अभी अपनी खाट पर चर्चा के दौरान सपा सरकार पर निशाना साधते नजर आए हैं.

ऐसे में सभी पार्टियों का एकजुट होकर चुनाव लड़ना मुश्किल है. इस पूरे महागठबंधन से दो बड़ी पार्टियां बीजेपी और बीएसपी बाहर हैं.

अनुमान है कि आगामी उत्तर प्रदेश में कोई भी पक्ष पूर्ण बहुमत लाने की स्थिति में नहीं है. ऐसे में इस महागठबंधन से बहुत उम्मीदें नहीं दिखती हैं.

फर्स्टपोस्ट के कार्यकारी संपादक अजय सिंह कहते हैं,' बिहार में जेडीयू और आरजेडी ने गठबंधन बनाया था. अगर उत्तर प्रदेश में सपा-बीएसपी गठबंधन बनाती हैं तभी इस गठबंधन का मतलब है.'

वैसे अभी महागठबंधन को लेकर शोर है. कांग्रेस की तरफ से किसी भी बड़े नेता की बाकी दलों के नेताओं से मुलाकात नहीं हुई है.

मुलायम सिंह यादव से प्रशांत किशोर की मुलाकात को महागठबंधन की कवायद के रूप में नहीं देखा जा सकता है.

वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी कहते हैं, ' उत्तर प्रदेश में कांग्रेस, सपा, बीएसपी और बीजेपी सबका ध्यान मुस्लिम वोटरों पर है. अगर महागठबंधन बनेगा तो यह मुस्लिम वोट को साधने के लिए होगा.

जोशी कहते हैं, 'अभी एक अरसे से मुसलमान 'टैक्टिकल वोटिंग' कर रहे हैं. लेकिन उत्तर प्रदेश में वे कमोबेश सपा के साथ हैं. क्या इस बार उनके रुख में बदलाव आएगा? यानी, जो प्रत्याशी बीजेपी को हराता नजर आए, उसे वोट पड़ेंगे. अगर बसपा प्रत्याशियों का पलड़ा भारी होगा तो मुसलमान वोट उधर जाएंगे? यह मुमकिन है.'

प्रमोद जोशी कहते हैं,'अभी समाजवादी पार्टी संकट में फंसी है तो महागठबंधन की बातें कर रही हैं. कांग्रेस और राष्ट्रीय लोक दल की रणनीति लगातार बदल रही है. अभी 27 अक्टूबर को राहुल गांधी ने कहा है कि पार्टी सपा या बीएसपी के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन नहीं करेगी.'

फिलहाल अभी तक उत्तर प्रदेश की सियासी आसमान में धुंध की छाप है. इसके साफ होने तक का इतंजार करना है.