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NDA में रहकर कब तक 'सियासी खीर' बनाते रहेंगे उपेन्द्र कुशवाहा?

शनिवार को बीपी मंडल की जन्मशती के मौके पर उपेन्द्र कुशवाहा ने कह दिया कि अगर यदुवंशियों यानी यादवों का दूध और कुशवंशियों यानी कुशवाहा समाज का चावल मिल जाए तो स्वादिष्ट खीर बनने से कोई रोक नहीं सकता

Vivek Anand

बिहार में कई छोटे-छोटे लोकपर्व मनाए जाते हैं. इन्हीं में से एक है अदरा या आद्रा. अदरा या आद्रा के मौके पर घरों में खीर-पुड़ी खाने का रिवाज है. मामला दरअसल नक्षत्र वाला है. कहा जाता है कि आद्रा नक्षत्र में सूर्य के प्रवेश करने का स्वागत खीर-पूड़ी बनाकर किया जाता है.

माना जाता है कि सूर्य के आद्रा नक्षत्र में होने के वक्त देशभर में खूब बारिश होती है. बारिश से धन-धान्य पैदा होता है इसलिए इस मौके का स्वागत खीर के साथ होता है. तो खीर बनाने से लेकर खाने का रिवाज तो पुराना है लेकिन खीर को लेकर विवाद नया है. पुराने रिवाज का जिक्र करते हुए बिहार में आरएलएसपी के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा ने जो कह दिया है, उसका बवाल दो दिन से खत्म नहीं हो रहा है.


शनिवार को बीपी मंडल की जन्मशती के मौके पर उपेन्द्र कुशवाहा ने कह दिया कि अगर यदुवंशियों यानी यादवों का दूध और कुशवंशियों यानी कुशवाहा समाज का चावल मिल जाए तो स्वादिष्ट खीर बनने से कोई रोक नहीं सकता. इसका सीधा-साधा मतलब ये निकाला गया कि उपेन्द्र कुशवाहा यादव-कोइरी गठजोड़ की संभावना का इशारा करके महागठबंधन में शामिल होने की बात कर रहे हैं.

पिछले कुछ महीनों से जिस तरह के बयान वो देते आए हैं, उसमें ऐसे कयास लगना स्वाभाविक भी है. लेकिन क्या सच में ऐसा है? क्या उपेन्द्र कुशवाहा अब एनडीए का दामन छोड़कर महागठबंधन को गले लगाने को तैयार है?

उपेन्द्र कुशवाहा के पिछले दिनों दिए बयान और उस पर महागठबंधन में तेजस्वी यादव जैसे नेताओं की दी गई प्रतिक्रिया ने हर बार इस बात को बल दिया है कि अब उपेन्द्र कुशवाहा एनडीए में बस कुछ दिनों के मेहमान हैं. शनिवार को दिए उनके दिए बयान को फौरन लपकते हुए तेजस्वी यादव ने लिखा, ‘नि:संदेह उपेन्द्र जी, स्वादिष्ट और पौष्टिक खीर श्रमशील लोगों की जरूरत है. पंचमेवा के स्वास्थ्यवर्धक गुण ना केवल शरीर बल्कि स्वस्थ समतामूलक समाज के निर्माण में भी उर्जा देते हैं. प्रेमभाव से बनाई गई खीर में पौष्टिकता, स्वाद और उर्जा की भरपूर मात्रा होती है. यह एक अच्छा व्यंजन है.’

क्रिया और उसपर आई प्रतिक्रिया ने ऐसा माहौल पैदा किया है जिसमें उपेन्द्र कुशवाहा को चर्चा तो मिल ही रही है उनकी छोटी पार्टी के लिए में बड़ा माहौल भी तैयार हो गया है. मीडिया में पिछले दिनों उपेन्द्र कुशवाहा ने जितनी फुटेज खाई है उतना किसी और बिहार के राजनेता को नहीं मिला.

उपेन्द्र कुशवाहा एक चालाक राजनेता की तरह व्यवहार कर रहे हैं. मजे की बात है कि वो एनडीए में रहते हुए बयानबाजी भी कर ले रहे हैं और उन पर किसी तरह का दबाव भी काम नहीं कर रहा है. अपने बयानों के वो चालाकी से कई मायने बता देते हैं. मसलन शनिवार के बयान पर सोमवार को उनकी सफाई दिलचस्प थी.

उन्होंने अपने बयान पर सफाई देते हुए कहा कि वो सामाजिक एकता की बात कर रहे थे और उनके बयान को किसी समुदाय विशेष से न जोड़ा जाए. अगर उनके बयान को संपूर्णता में देखा जाए तो उनकी सफाई वाजिब भी जान पड़ती है. अपने बयान में उन्होंने सिर्फ यादव और कोइरी की बात नहीं की थी. बल्कि पिछड़ा- अतिपिछड़ा के साथ दलितों को भी शामिल किया था. इतना ही नहीं उन्होंने पंडित जी की चर्चा छेड़ कर ऊंची जाति के लोगों को भी अपनी सामाजिक एकता के सूत्र में बांंधने की बात की थी. लेकिन मीडिया में सिर्फ कोइरी-यादव के साथ पिछड़ा अतिपिछड़ा के गठजोड़ के उनके बयान पर चर्चा चली. इस नए सियासी समीकरण के ऊपर संभावनाओं के बादल छोड़कर खूब हवाबाजी की गई.

दरअसल उपेन्द्र कुशवाहा के बयान को पूरा सुनें तो वो कहते दिखते हैं, 'हमलोग साधारण परिवार से आते हैं और साधारण परिवार में जब से हमलोग देख रहे हैं. जिस दिन घर में खीर बन गई, उस दिन दुनिया का सबसे स्वादिष्ट भोजन बन गया. उस स्वादिष्ट व्यंजन को बनने से कोई रोक नहीं सकता है. लेकिन इसमें दूध और चावल से ही काम नहीं चलने वाला है. पंचमेवा की भी जरूरत पड़ती है. इसमें अति पिछड़ा समाज के लोग, छोटी-छोटी जाति के लोग, दबे कुचले शोषित लोग. उनका पंचमेवा भी आवश्यक है. उसमें चीनी की भी जरूरत पड़ेगी तो पंडित शंकर झा जी से चीनी भी ले आएंगे. वैसा व्यंजन बनाने का काम करना है. और यही वास्तव में सामाजिक न्याय है. चीनी तो गरीब लोगों के घर मिलती नहीं है..कम मिलती है, उसके लिए पंडित जी हैं ही.

एक और प्रचलन में बात है कि व्यंजन बनने के बाद भोज का आयोजन होता है. भोज में परोसने से पहले तुलसी डाला जाता है. जिसे तुलसी दल हमलोग कहते हैं. भूदेव चौधरी के यहां से तुलसी दल ले आएंगे. परोसने की जरूरत पड़ेगी तो जुल्फीकार अली के यहां से दस्तरख्वान ले आएंगे. उस दस्तरख्वान पर बैठकर हम सबलोग मिलकर उस स्वादिष्ट व्यंजन का रसास्वादन करेंगे.'

पूरे बयान को समग्रता में देखें तो उन्होंने अपने पार्टी के ब्राह्मण नेता शंकर झा की बात कहके सामाजिक एकता में सवर्ण समाज को भी स्थान दिया, दलित नेता भूदेव चौधरी की बात कहते के एससी समाज की भी और जुल्फीकार अली की बात कहके मुस्लिम समुदाय की. लेकिन उनके बयान का इतना विश्लेषण नहीं किया गया.

सोमवार को बाद में आखिरकार उन्होंने ट्वीट करके मामले को साफ किया. ट्वीट में उन्होंने लिखा कि 'हमने न तो राजद से दूध मांगा है और न ही बीजेपी से चीनी. हम सामाजिक समरसता के समर्थक हैं. जिसे जो अर्थ लगाना हो लगाता रहे.'

हालांकि वो चाहें जो कह लें लेकिन पिछले दिनों आए उनके बयान एनडीए में उनकी नाराजगी की तरफ साफ इशारा करते हैं. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि एनडीए में सीटों के बंटवारे में प्रेशर बनाए रखने के लिए उपेन्द्र कुशवाहा ऐसे बयान दे रहे हैं. बिहार एनडीए में सीटों का बंटवारा बड़ा पेचीदा मसला है. जेडीयू पहले ही दबाव बनाए हुए है. इस बीच आरएलएसपी की कोशिश है कि किसी भी तरह से वो बाकी साझीदारों में कम नहीं पड़ने पाए. इसलिए आरएलएसपी इस तरह की बयानबाजियों से सधा हुआ दबाव बनाए हुए है.

आरएलएसपी के बुद्धिजीवी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष और दिल्ली यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ सुबोध कुमार कहते हैं, ‘आपको पता है कि बिहार में इस वक्त अदरा का समय है. इस वक्त हर घर में खीर बनती है. और खीर एक संपूर्ण भोजन माना जाता है. और ये कभी कभी बनती है. खासकर छोटी जातियों और गरीब तबकों में ये कभी कभार ही बनती है. इसी को परिप्रेक्ष्य बनाते हुए मंत्रीजी ने अपनी बात कही है. साधारण तरीके से कहा है कि वो जनता की समझ में आ जाए. ये सबका साथ सबका विकास वाले की तरह ही है. कोई अलग उदाहरण नहीं है.’

उपेन्द्र कुशवाहा के जिस बयान को एनडीए से उनकी नाराजगी से जोड़कर देखा जा रहा है उसे अब पार्टी से जुड़े लोग बीजेपी का मंत्र बताने में लगे हैं. इसी तरह के चालाकी भरे बचाव के जरिए पार्टी दबाव भी बनाए हुए है. डॉ सुबोध कुमार कहते हैं, ‘ये बीपी मंडल की सौवीं जयंती के मौके पर ये बात कही गई थी. मंडल जी का बहुत योगदान रहा है पिछड़ों और अतिपिछड़ों के हितों में. उसी के परिप्रेक्ष्य में ये बातें कही गई थी कि सामाजिक न्याय आखिर है क्या? बीजेपी और एनडीए का जो मूलमंत्र है वो है सबका साथ सबका विकास. यही सामाजिक न्याय है. सामाजिक न्याय का मतलब धर्म और जाति का न्याय नहीं है बल्कि संपूर्ण न्याय है.’

ऐसे हर बयान के बाद महागठबंधन की तरफ से उपेन्द्र कुशवाहा और उनकी पार्टी आरएलएसपी का खुले बांहों से स्वागत होता है लेकिन पार्टी एनडीए का हिस्सा होने की बात कहके वहीं पड़ी रह जाती है. तेजस्वी यादव ने पहले की तरह इस बार भी उपेन्द्र कुशवाहा का स्वागत के लिए हाथ जोड़े रखे और उपेन्द्र कुशवाहा किनारे से निकल लिए.

इस पर डॉ सुबोध कुमार कहते हैं, ‘सब पार्टियों की पॉलिटिकल समझ अलग-अलग होती है. तेजस्वी जी जिस गुट को लीड कर रहे हैं. उसमें उनको उम्मीदें हैं. वो इसके पहले भी उम्मीद जाहिर करते रहे हैं. हर घर का मुखिया चाहता है कि उनके घर में अच्छे फूल आएं, ज्यादा अच्छे चेहरे आएं. हम अच्छे हैं इसलिए वो इस तरह की उत्कंठा जाहिर कर रहे हैं. इसमें हम क्या कर सकते हैं.’