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विकास का पहिया अब चलाएगा हिंदुत्व का रथ

योगी आदित्यनाथ सीएम की कुर्सी तक पहुंचने वाले पहले सन्यासी नहीं है

Rakesh Kayasth

यूपी के मंत्रिमंडल की घोषणा रविवार को होगी. फिलहाल मुख्यमंत्रिमंडल की घोषणा हुई है. एक के साथ दो मुफ्त वाले अंदाज में. पिटारा खुला तो एक नहीं पूरे तीन मुख्यमंत्री एक साथ निकले. लेकिन तीनों एक साथ बन नहीं सकते थे.

लिहाजा दो को `उप' बनकर एडजस्ट करना पड़ा और इस तरह यूपी के सत्ता के गलियारे में त्रिमूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हो गई. बाएं- ओबीसी केशव प्रसाद मौर्य, दाएं- पंडित जी दिनेश चंद्र शर्मा और इनके बीच में विराजमान हैं, हाहाकारी हिंदुत्व के प्रतीक पुरुष योगी आदित्यनाथ.


यूपी चुनाव के दौरान घूमा विकास का पहिया हिंदुत्व के रथ में जुड़ चुका है. देश की भावी राजनीति की तस्वीर बिल्कुल साफ है. विकास और हिंदुत्व नरेंद्र मोदी की राजनीति के दो इंजन थे. जब जैसी जरूरत होती, उनका वैसा इस्तेमाल होता आया था. अब नई कहानी सामने आ चुकी है, जिसके मुताबिक हिंदुत्व ही विकास है और विकास ही हिंदुत्व है.

फ्रिंज एलिमेंट से सीएम तक

2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी. एनडीए और बीजेपी को प्रचंड बहुमत विकास के मुद्दे पर मिला. कुछ समय की शांति के बाद घर वापसी, लव जेहाद और गोरक्षा जैसे संघ के तमाम एजेंडे सामने आ गए.

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प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी ने कभी खुलकर इनमें से किसी एजेंडे का समर्थन नहीं किया, लेकिन कभी कड़े शब्दों में निंदा भी नहीं की. मोदी के पैरोकार लगातार ये साबित करते रहे कि कारगुजारी चंद कट्टर लोगो की है और बदनाम बेवजह प्रधानमंत्री को किया जा रहा है.

योगी आदित्यनाथ पर है देश के सबसे बड़ी सूबे की जिम्मेदारी

बीजेपी से जुड़े बड़बोले, आक्रमक और कट्टर लोगों के लिए एक अंग्रेजी का विशेषण बहुत लोकप्रिय हुआ- फ्रिंज एलिमेंट. इस विशेषण के सबसे बड़े हकदार बने योगी आदित्यनाथ. ऐतिहासिक जनादेश के बाद अब वही आदित्यनाथ देश के सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री हैं और उनपर प्रधानमंत्री के विकास के सपने को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी है.

आखिर योगी ही क्यों?

यूपी का चुनावी नतीजा पूरी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्मे और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति की कहानी था. सवाल ये है कि जब चुनाव विकास के मुद्धे पर लड़ा और जीता गया तो फिर ऐसी क्या मजबूरी आ पड़ी कि एक ऐसे आदमी को सीएम बना दिया जाए, जिसकी इकलौती पहचान आक्रमक हिंदुवादी नेता होना है.

आरएसएस का एजेंडा मोदी एजेंडे पर पड़ा भारी

क्या आरएसएस का एजेंडा मोदी के एजेंडे पर भारी पड़ गया? इस सवाल को थोड़ी देर के लिए छोड़ दें और ये देखें कि आइडियोलॉजी से परे योगी आदित्यनाथ की राजनीतिक हैसियत क्या है.

जनाधार वाले नेता

पूर्वांचल कई जिलों और खासकर गोरखपुर की राजनीति जिस  ताकतवर और विशाल गोरख मठ से संचालित होती है. उसी के मठाधीश हैं, योगी आदित्यनाथ. योगी से पहले उनके गुरू महंत अवैद्यनाथ लगातार गोरखपुर से लोकसभा का चुनाव जीतते आये थे. योगी आदित्यनाथ अपने गुरू के निधन के बाद पहली बार सिर्फ 26 साल की उम्र में लोकसभा सांसद बने और अब तक पांच बार वहां से जीत चुके हैं.

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बीजेपी के लिए हिंदू वोटरो को एकजुट रखने का काम वो लगातार करते आए हैं. सांप्रादायिक हिंसा और कई आपराधिक आरोपो के बावजूद वे एक बेहद लोकप्रिय नेता हैं और उनका जनाधार सिर्फ गोरखपुर नहीं बल्कि पूर्वांचल के एक बड़े हिस्से में है. चुनाव से करीब साल भर पहले से उनका नाम भावी मुख्यमंत्री के तौर पर चल रहा था.

यूपी में योगी आदित्यनाथ की बहुत लोकप्रियता है

आसान नहीं था फैसला

चुनाव के दौरान योगी की नाराज होने की खबरें कई बार आईं. खबर ये भी उछली उनके संगठन हिंदु वाहिनी ने कुछ जगहों पर उम्मीदवार खड़े किये हैं, जिससे बीजेपी को नुकसान होगा. कहा ये भी जा रहा था कि अमित शाह के साथ योगी की दूरियां बन चुकी हैं, इसलिए वे सीएम नहीं हो सकते हैं.

चुनाव नतीजों के बाद हफ्ते भर चली माथापच्ची ये साबित करती है कि प्रचंड बहुमत ने मोदी और शाह की जोड़ी का सिरदर्द बढ़ा दिया था. आखिरकार बहुत सोच-विचारकर उन्होने उस नेता के नाम पर मुहर लगाई जो पिछले बीस साल से जमीनी तौर पर बीजेपी को मजबूत करने के लिए सबसे सक्रिय तरीके से काम कर रहा है.

जोखिम भरा फैसला

ये माना जा रहा था कि यूपी के जातीय समीकरण को देखते हुए बीजेपी किसे पिछड़े को मुख्यमंत्री बना सकती है. 2019 में अखिलेश और मायावती के एक साथ आने की संभावनाओं को देखते हुए भी इस दलील को दमदार माना जा रहा था. अब योगी का ताजपोशी हो चुकी है.

इसका पहला मतलब ये है कि मोदी अब मान चुके हैं कि यूपी के वोटर जाति से ऊपर उठ चुके हैं. बात एक हद सही भी है. लेकिन सवाल ये है कि क्या वोटर जाति से उपर विकास के लिए उठे हैं, या फिर हिंदुत्व के लिए? इसी पेंच ने आदित्यनाथ की ताजपोशी को जोखिम भरा बना दिया है.

योगी सीएम की कुर्सी तक पहुंचने वाले पहले सन्यासी नहीं हैं. इससे पहले उमा भारती को ये सम्मान हासिल हो चुका है. अपनी तुनकमिजाजी के लिए मशहूर उमा मध्य-प्रदेश में चुनाव जिताने के बावजूद कामयाब मुख्यमंत्री नहीं बन पाई. कई बार पार्टी से अंदर बाहर होने के बाद वो फिलहाल केंद्रीय मंत्री हैं.

योगी आदित्यनाथ ने कभी पार्टी नहीं छोड़ी. लेकिन तीखे तेवर सिर्फ उनके भाषणों में नहीं हैं बल्कि उनके व्यक्तित्व का भी हिस्सा हैं. बिना किसी प्रशासनिक अनुभव के वे इतने बड़े राज्य और कई कद्दावर नेताओं को किस तरह कंट्रोल करेंगे ये देखना दिलचस्प होगा.

किसान खुश होंगे या कारसेवक

मोदी कई जनसभाओं में ये कह चुके थे कि यूपी कैबिनेट की पहली मीटिंग में किसानों के कर्ज माफ करने का फैसला लिया जाएगा. योगी आदित्यनाथ का सबसे बड़ा एजेंडा राममंदिर है.

क्या योगी आरएसएस के लिए इस बार वही भूमिका निभाएंगे जो मुख्यमंत्री के रूप में 1993 में कल्याण सिंह ने निभाया था. सवाल कई हैं और सबके सब बेहद जटिल. सीधा और एकमात्र निष्कर्ष यही है कि मोदी ने अब ये मान लिया है कि लगातार मिल रहे अपार जनसमर्थन की वजह से तमाम सवालों से ऊपर हैं. सवाल पूछने वाले पूछते रहें, आगे भी वे वही फैसले लेंगे, जो उन्हे लेने हैं.