कहते हैं कि ऊपरवाले को जिसे बर्बाद करना होता है उसके हाथ में ताकत दे देता है. ताकि वो सत्ता पाकर पागल हो जाए.
इससे पहले कि हम ये यकीन करें कि यूपी की जीत से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गुरूर हो गया है, हम थोड़ी देर के लिए ये सोचें कि क्या मोदी ने अपनी विश्वसनीयता को दांव पर लगा दिया है? कहते हैं कि अच्छे फौजी मोर्चे पर सबसे आगे खड़े होते हैं. आक्रमण की अगुवाई करते हैं. तो क्या योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाकर मोदी हर हमला अपने सीने पर झेलने वाले हैं? क्या वो यह संदेश देना चाहते हैं कि विवादित नेता ही अब अच्छे काम करके दिखाएंगे?
कट्टर एजेंडे पर लगाम लगाने की सोच
अगर यूपी के मुख्यमंत्री के तौर पर योगी आदित्यनाथ ईमानदारी से समाज के हर तबके के लिए और विकास के लिए काम करेंगे. तो, मोदी इस बात की मिसाल दे सकते हैं कि बीजेपी सबको बराबरी का हक देने, धर्मनिरपेक्षता और पारदर्शी सरकार देने को लेकर पूरी तरह ईमानदार है. हो सकता है कि योगी को जिम्मेदारी देकर, मोदी ने उनके कट्टर एजेंडे पर लगाम लगाने की सोची हो.
लेकिन इस बात की क्या गारंटी है कि योगी काबू में रहेंगे? क्या मोदी बहुत चालाक बनने की कोशिश कर रहे हैं? क्या ये प्रयोग कामयाब रहेगा? क्या ये तजुर्बा करना मुमकिन भी है?
अब अगर योगी आदित्यनाथ का कट्टर हिंदूवाद, पीएम मोदी के प्रयोग पर हावी होता है, तो यूपी जैसे सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील सूबे में मोदी का जादू खत्म होने की दिशा में पहला कदम होगा. अब तक यही माना जाता रहा है कि मोदी का हर दांव कारगर होता है. वो सियासत के सबसे चतुर खिलाड़ी हैं. मगर योगी को सीएम बनाने का दांव अगर नाकाम हुआ, तो मोदी की मशक्कत से बनाई गई इस छवि को कड़ी ठेस पहुंचेगी.
नई तरह की राजनीति का संकेत
योगी आदित्यनाथ के बारे में हम ऐसा उनके इतिहास को देखते हुए कह रहे हैं. योगी ने ही 'घर वापसी' जैसे अभियान का आइडिया दिया था. वो लव जेहाद से लेकर योग और सूर्य नमस्कार तक पर अपने भड़काऊ बयानों के लिए ही जाने जाते हैं.
योगी को सीएम बनाने की जो भी मजबूरी रही हो, ये एक बड़ा जोखिमभरा फैसला था. ये फैसला एक झटके में डराता भी है और एक नई तरह की राजनीति का भी संकेत देता है.
हम एक पल के लिए योगी आदित्यनाथ की छवि और उनके विवादों को नकारकर देखें तो, देश में बहुत से अपराधी, ठग, कपटी और धार्मिक छवि वाले लोग चुनाव लड़कर जीतते रहे हैं. उनकी दागी छवि उनकी जीत में कभी बाधा नहीं बनी.
मगर इस मौके पर हमें ये समझना होगा कि मोदी ने आखिर ये फैसला लिया तो क्यों? जबकि पूरा चुनाव खुद मोदी ने अपनी अगुवाई में लड़ा था.
अगर मोदी, किसी अच्छे उम्मीदवार की गैर-मौजूदगी में मनोहर पर्रिकर को गोवा का सीएम बनाकर भेज सकते हैं, तो, वो यूपी के लिए भी किसी को दिल्ली से भेज सकते थे. इस मौके पर कोई भी मोदी के फैसले पर सवाल नहीं उठा पाता.
मोदी ने जोखिम क्यों लिया ?
जब कुछ दिनों पहले सीएम के संभावित उम्मीदवार के तौर पर योगी आदित्यनाथ का नाम उछला तो ये लगा कि मोदी विरोधी सिर्फ जलन और गुस्से की वजह से योगी का नाम उछाल रहे हैं.
मगर अब जबकि फैसला ले लिया गया है तो हमारे पास इसकी समीक्षा करने और फैसले की वजह समझने के सिवा कोई चारा नहीं. कट्टर हिंदूवादी राजनीति करने वाले इस फैसले से खुश हो सकते हैं.
उन्हें ये संकेत मिल सकता है कि अब उनके लिए सारे विकल्प खुले हैं. उन्हें अपने मन की करने की छूट मिल गई है. खास तौर से दूसरे धर्म और समुदाय के लोगों को निशाना बनाने की. आखिर मोदी ने ये जोखिम क्यों लिया?
कहा जाता है कि आपको वैसी ही सरकार मिलती है जिसके आप हकदार हैं. तो क्या यूपी ने बीजेपी को इसी के लिए वोट दिया था? क्या अब केसरिया रंग लाल होगा या फिर वो शांति का, अमन का, भाईचारे का संदेश देगा? योगी आदित्यनाथ, देश का भविष्य आपके हाथ में है.