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'चाणक्य' अमित शाह के अलावा और भी हैं बीजेपी की जीत के हीरो

उत्तर प्रदेश में जीत का श्रेय मोदी-शाह को है लेकिन जीत के और भी सूत्रधार हैं.

Amitesh

यूपी में भारतीय जनता पार्टी की ऐतिहासिक जीत का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिया जा रहा है.

ऐसा हो भी क्यों न- राम लहर में भी बीजेपी ने उन ऊंचाइयों को नहीं छुआ था जिसे अब मोदी लहर ने कर दिखाया है. चुनावों के वक्त लगा कि पूरा काशी मोदीमय हो गया है. अब चुनाव नतीजों ने तो देश के सबसे बड़े सूबे को ही मोदी प्रदेश बना डाला है.


इस बड़ी जीत के और भी कई सूत्रधार हैं जिनमें कुछ ने पर्दे के सामने से तो कुछ ने पर्दे के पीछे से अपनी कुशल रणनीति का ऐसा जाल बुना जिसमें हाथी से लेकर साइकिल तक सब फंस गए. उत्तराखंड में भी यही हाल रहा.

बीजेपी के चाणक्य अमित शाह

बीजेपी की जीत में चाणक्य की भूमिका निभाने वाले पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को भला कैसे भुलाया जा सकता है. शाह ने पूरे यूपी के भीतर अपने माइक्रो मैनेजमेंट के जरिए खास रणनीति इजाद की जिसमें समाज के उन तबकों पर विशेष तौर पर फोकस किया गया जो अबतक वंचित रहे हैं.

बीजेपी ने उन तबकों पर ध्यान लगाया जिनका वोट बैंक के तौर पर एसपी और बीएसपी ने इस्तेमाल तो किया है लेकिन इनका विकास नहीं हो पाया.

अमित शाह ने खास रणनीति के तहत गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलित को अपने पास लाने की पूरी कोशिश की. शाह का बूथ मैनेजमेंट का फॉर्मूला भी कारगर रहा है.

हालांकि लोकसभा चुनाव के वक्त भी बीजेपी की सबसे बड़ी जीत को मोदी लहर का ही नाम दिया गया. कहा गया कि ये तो मोदी की सुनामी है जिसमें यूपी ही क्या, मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ से लेकर बिहार तक हर जगह मोदी के नाम पर ही वोट पड़े.

उस वक्त अमित शाह की रणनीति से ज्यादा मोदी की लोकप्रियता को जीत का श्रेय दिया गया. इस बार भी हालात कुछ अलग नहीं हैं. लेकिन, अब सियासी जानकार इस बात को मानने लगे हैं कि अमित शाह की पार्टी के साथ नए तबकों को जोड़ने की रणनीति कारगर हुई है.

जीत के सूत्रधार सुनील बंसल

बीजेपी के यूपी के संगठन महामंत्री सुनील बंसल लोकसभा चुनाव के पहले से ही अबतक अपने मिशन में लगे रहे.  47 साल के सुनील बंसल 1990 में संघ के प्रचारक बनाए गए थे. एबीवीपी में बतौर प्रचारक 24 वर्ष की जिम्मेदारी निभाने के बाद वह पिछले तीन साल से बीजेपी में काम कर रहे हैं.

लोकसभा चुनाव के वक्त जब अमित शाह को बीजेपी महासचिव के नाते यूपी का प्रभार दिया गया तो यूपी में मरी बीजेपी को फिर से जिंदा करने के लिए अमित शाह के साथ सुनील बंसल ने बड़ी भूमिका निभाई.

बंसल ने बीजेपी की शहरी पार्टी के रूप में बनी छवि को दूर करने के लिए पंचायत चुनाव लड़ने का फैसला लिया. इससे पार्टी संगठन का गांवों में भी विस्तार हुआ.

यूपी के लगभग डेढ़ लाख बूथ में बूथ अध्यक्ष से लेकर बूथ मेंबर्स तक को खड़ा करने में संगठन महामंत्री के नाते सुनील बंसल की बड़ी भूमिका रही.

बंसल लोकसभा चुनाव के बाद भी विधानसभा चुनाव की लगातार तैयारियों में जुटे रहे जिसके तहत एक महीने में करीब 20 से 25 दिन यूपी के अगल-अलग इलाकों में प्रवास पर रहते थे.

संगठन में पिछड़े और वंचित तबके को जोड़कर सुनील बंसल ने बीजेपी के साथ इस तबके को खड़ा कर दिया. संगठन में  नीचे तक के पदों पर 40 फीसदी ओबीसी और 20 फीसदी पद दलितों को देकर सुनील बंसल ने गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलित वोटरों को जोड़ा.

बीजेपी के यूपी प्रभारी ओम माथुर

बीजेपी के यूपी के प्रभारी ओम माथुर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करीबी माना जाता है. ओम माथुर को विधानसभा चुनाव से पहले यूपी का प्रभार दिया गया था. इसके पहले उनके पास गुजरात का प्रभार था.

राजस्थान के रहने वाले ओम माथुर बीजेपी के उपाध्यक्ष और राज्यसभा सांसद हैं. इसके पहले पार्टी के भीतर  संगठन में कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों को वो निभा चुके हैं.

लोकसभा चुनाव के बाद अमित शाह को जब पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया गया तो यूपी प्रभारी के तौर पर अमित शाह की जगह एक अच्छे राजनीतिज्ञ और कुशल संगठनकर्ता की जरूरत थी.

ओम माथुर ने उस कमी को पूरा किया और यूपी की मिली जीत में उनके योगदान को भी काफी अहम माना जा रहा है.