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सपा के रोज-रोज सस्पेंस से जनता बोर होने लगी है!

अगर मुलायम ने उन्हें विरासत सौंपी है तो फैसले का अधिकार भी देना चाहिए

Vivek Anand

समाजवादी पार्टी का बड़ा भारी नारा था, ‘जलवा जिसका कायम है उसका नाम मुलायम है’. फिलहाल की हालत ये है कि जलवाफरोशी किसी अत्याधिक ज्वलनशील पदार्थ की तरह उड़ गई है. पता ही नहीं चल रहा है कि समाजवादी पार्टी में जलवा है किसका?

राष्ट्रीय अध्यक्ष किसे मानें मुलायम सिंह यादव को या अखिलेश यादव को? प्रदेश अध्यक्ष किसे मानें शिवपाल यादव को या नरेश उत्तम को? अमर सिंह को पार्टी से निष्कासित मान लें या नहीं? किरनमय नंदा और नरेश अग्रवाल पार्टी में हैं या पूर्व समाजवादी हो लिए? इन सारे सवालों के जवाब तब तक नहीं मिल पाएंगे, जब तक सुबह निष्कासन और शाम को वापसी की दो महीने से चल रही परंपरा का खात्मा नहीं हो जाता.


नए साल के पहले दिन आमतौर पर लोग रिजोल्यूशन लेते हैं. मसलन पान-तंबाकू छोड़ देंगे, वक्त से उठेंगे, काम को कल पर नहीं टालेंगे, गुस्से पर काबू रखेंगे.

31 दिसंबर को जब मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव और रामगोपाल यादव की पार्टी में वापसी पर रजामंदी भरी तो लगा कि अब शायद नए साल में बाप-बेटे और चाचा रिजोल्यूशन ही ले लें कि अब पार्टी में निष्कासन और वापसी का खेल नहीं खेलेंगे, एकजुट होकर चुनाव लड़ेंगे, समर्थकों को समझाएंगे, समाजवादी परिवार में एकता लाएंगे. लेकिन जहां से मुलायम और शिवपाल सिंह यादव ने खेल को ड्रॉ घोषित कर दिया था. पहली जनवरी को अखिलेश यादव ने वहीं से खेल शुरू करके लीड ले ली.

अखिलेश यादव ने खुद को एसपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की घोषणा कर दी (पीटीआई इमेज)

रामगोपाल यादव ने लखनऊ में राष्ट्रीय अधिवेशन बुलवा लिया. ध्वनिमत से मुलायम सिंह यादव को हटाकर अखिलेश यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनवा दिया. शिवपाल सिंह यादव को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया और अमर सिंह को पार्टी से हटाने की घोषणा करवा दी. उसके बाद नरेश उत्तम को प्रदेश अध्यक्ष बनवा दिया.

इस फौरी कार्रवाई की सूचना लेकर शिवपाल यादव भागे-भागे मुलायम सिंह यादव के पास पहुंचे. एकतरफा संघर्षविराम लागू करके आराम फरमा रहे मुलायम सिंह यादव ने पहली फुर्सत से जवाबी कार्रवाई का ऐलान कर दिया. पहला ऐलान ये था कि रविवार का राष्ट्रीय अधिवेशन असंवैधानिक है इसलिए कोई भी फैसला मान्य नहीं होगा. दूसरा एेलान ये कि रामगोपाल को फिर से 6 साल के लिए पार्टी निकाला दिया जाता है.

पहली जनवरी को जश्ने-ए-बहारां के दौर में समाजवादी पार्टी में जश्न-ए-निकाला का खेल शुरू हो गया. रामगोपाल यादव के बाद मुलायम सिंह यादव की तरफ से राष्ट्रीय अधिवेशन में शिरकत करने वाले किरनमय नंदा और नरेश अग्रवाल को निकाला गया. अब नरेश अग्रवाल कह रहे हैं कि जब मुलायम सिंह यादव राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे ही नहीं तो वो पार्टी से निकाल कैसे सकते हैं?

एक दिन पहले ही मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश को पार्टी से बाहर करने की घोषणा की थी

नए साल के पहले दिन सिर्फ तारीख बदली है समाजवादी पार्टी के हालात जस के तस हैं. पार्टी कार्यकर्ता मुलायम और अखिलेश के गुटों में बंटे अपने-अपने नेता को सही साबित करने और उन्हें ऊंचा उठाने में लगे हैं. जबकि जनता सोच रही है कि समाजवादियों के घर में सास बहू टाइप का फैमिली ड्रामा आखिर खत्म कहां जाकर होगा?

फिल्म दंगल में महावीर सिंह फोगाट के किरदार में आमिर खान अपनी बेटियों को चालाकी भरा दांव सिखाते हैं. कुश्ती में अपने से ताकतवर पहलवान को पछाड़ने के लिए कभी-कभार दिखाओ कुछ और आखिरी वक्त पर कोई और दांव चल दो. फिल्म के आखिरी सीन में गीता फोगाट इसी दांव से गोल्ड मेडल झटकती है. पता नहीं ये दांव अखिलेश ने अपने पिता से ही सीखा है या कहीं और से प्रेरणा ली है. लेकिन उनका रविवार का दांव था कुछ वैसा ही. लगा था कि बाप-बेटे के मिलन का हैप्पी एंडिंग वाला सीन आ चुका है. लेकिन 1 जनवरी को एक और क्लाईमेक्स आ गया.

मुलायम सिंह यादव ने 5 जनवरी को पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाया है. अब वो समझौते से हटते हुए 325 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट पर अड़ गए हैं. नए उम्मीदवारों के ऐलान वो खुद करने की बात कर रहे हैं. इधर अखिलेश पिता के सम्मान की बात कहते हुए उन्हें बीजेपी के सम्मानजनक फॉर्मूले के हिसाब से मार्गदर्शकमंडल की मंडली में डालने को तैयार बैठे हैं.

मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक चालाकियों के न जाने कितने किस्से भरे पड़े हैं भारतीय राजनीति के इतिहास में. कोई शक नहीं कि उनमें से कई किस्सों को अखिलेश ने अपनी आंखों के सामने जीवंत होते देखा होगा. मुलायम की राजनीतिक विरासत को संभाल रहे अखिलेश अब उन सारे दांव का खुलकर इस्तेमाल कर रहे हैं.

अगर मुलायम ने उन्हें विरासत सौंपी है तो फैसले का अधिकार भी देना चाहिए. झगड़ा लंबा खिंच चुका है...जनता उकता चुकी है..वोटर्स राय बनाने लगे हैं...कहीं जो फैसला बाप बेटे नहीं कर पा रहे हैं वो जनता न कर ले.