view all

यूपी चुनाव: कांग्रेस के '27 साल यूपी बेहाल' नारे का अब क्या होगा?

अखिलेश यादव और राहुल गांधी को लगता है कि साथ आने से वो यूपी में बीजेपी को रोक देंगे और गठबंधन की सरकार बनाएंगे

Sanjay Singh

उत्तर प्रदेश की राजनीति नई करवट लेने जा रही है. समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच सियासी गठबंधन होना तय है और इस पर खुद राज्यसभा में विपक्ष के नेता और यूपी कांग्रेस के चुनाव प्रभारी गुलाम नबी आजाद मुहर लगा चुके हैं.

जब गुलाम नबी आजाद ने अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के साथ दोस्ती का एलान किया तो उनके चेहरे पर चिंता के कोई भाव नहीं दिखे. यहां तक कि आजाद ने इसका भी जवाब नहीं दिया कि कांग्रेस के चर्चित चुनावी नारे '27 साल यूपी बेहाल' का क्या होगा?


यूपी में कांग्रेस ने आखिरी बार नारायण दत्त तिवारी की अगुवाई में सत्ता का स्वाद चखा था. 5 दिसंबर 1989 को नारायण दत्त तिवारी ने मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ी और इसके बाद कांग्रेस कभी भी यूपी की सत्ता में वापसी नहीं कर पाई. दिलचस्प बात है कि इसके बाद हुए हर विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह का कद बढ़ता गया और कांग्रेस पिछड़ती गई.

केंद्र की सियासत में यूपी का महत्वपूर्ण किरदार

केंद्र की सियासत में उत्तर प्रदेश का अहम रोल है. आंकड़ों में देखें तो यूपी में विधानसभा की 403, लोकसभा की 80 और राज्यसभा की 31 सीटें हैं. अब गुलाम नबी आजाद कह रहे हैं कि समाजवादी पार्टी के साथ सीटों के बंटवारे को लेकर कोई दिक्कत नहीं होगी और जल्द ही इन सीटों पर उम्मीदवारों के नाम का एलान हो जाएगा.

अब जबकि, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी में गठबंधन की घोषणा हो चुकी है तो फिर अब सबकी नजरें कांग्रेस के नारे '27 साल यूपी बेहाल' पर जा टिकी हैं.

कांग्रेस ने मुलायम और अखिलेश सरकार को ध्यान में रखकर ही इस नारे को गढ़ा था. बीते 27 साल में यूपी की सियासत में बड़ा बदलाव ये आया है कि उस वक्त मुलायम सिंह यादव जनता दल के नेता थे और अब समाजवादी पार्टी के 'संरक्षक' हैं.

वैसे अखिलेश की समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच यह दोस्ती कई दौर की बातचीत के बाद हो पाई है. इसमें कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की भूमिका भी पर्दे के पीछे से बेहद अहम रही. राहुल गांधी को बखूबी पता है कि यदि यूपी की राजनीति में कांग्रेस को जिंदा रखना है तो किसी पार्टी के साथ गठबंधन करना ही होगा.

वैसे अब यह किसी को नहीं पता कि महीने भर की राहुल की किसान यात्रा और इस दौरान की गई अखिलेश सरकार की कड़ी आलोचना का क्या होगा?

किसान यात्रा का तो नारा ही था- '27 साल यूपी बेहाल'. यह नारा कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने गढ़ा था. प्रशांत किशोर ने यह नारा 2005 के बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए गढ़े '15 साल बुरा हाल' (लालू प्रसाद यादव-राबड़ी देवी के खिलाफ) नारे से लिया था. राहुल गांधी ने अब प्रशांत किशोर और उनके गढ़े नारे से किनारा कर लिया है.

आजाद और कांग्रेस नेतृत्व को पूरा यकीन है कि जनता की याददाश्त कमजोर होती है. ऐसे में जब वो चुनाव प्रचार के लिए जाएंगे तो उन्हें जनता से असहज सवालों का सामना नहीं करना पड़ेगा.

सबसे ज्यादा खुश शीला दीक्षित

चुनाव आयोग ने समाजवादी पार्टी पर हक और चुनाव चिह्न साइकिल को लेकर फैसला अखिलेश यादव के पक्ष में सुनाया है. ऐसे में इन पूरे सियासी घटनाक्रम के बीच यदि कोई बहुत खुश है तो वह है यूपी में कांग्रेस की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार शीला दीक्षित.

शीला दीक्षित की इस खुशी के पीछे की वजह जायज है. समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल के बीच गठबंधन की चर्चा तेज होते ही शीला दीक्षित कह चुकी हैं कि वह खुद ही सम्मानपूर्वक मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवारी वापस ले लेंगी. वैसे भी शीला दीक्षित जबसे कांग्रेस की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार बनीं थी, उनके सामने कई सियासी मुश्किलें थी. वो सब अब एक झटके में खत्म हो गईं.

वैसे भी शीला दीक्षित की शादी यूपी की राजनीति के अहम चेहरे उमा शंकर दीक्षित के ब्राह्मण परिवार में हुई और वो यहां से सांसद भी रहीं. लेकिन इसके बावजूद वो यूपी की सियासत के लिए नई हैं.

जब शीला दीक्षित को कांग्रेस ने मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया तो उन्होंने बुझे मन से इसे स्वीकार किया था. खासकर उस सियासी दंगल में जहां कांग्रेस कई दशक से सत्ता की होड़ से बाहर है. उनके समर्थक बखूबी उम्मीद कर रहे थे कि दिल्ली की तीन बार मुख्यमंत्री रह चुकीं 78 साल की शीला की सम्मानपूर्वक विदाई होगी. खासकर जब शीला दीक्षित का गांधी परिवार से करीबी रिश्ता रहा हो. अब शीला का कहना है कि एक गठबंधन में दो मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं हो सकता है, इसलिए उन्होंने यह 'कुर्बानी' दी.

यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी में तालमेल 'धर्मनिरपेक्षता' के नाम पर किया गया है. दोनों दलों का कहना है कि उन्होंने सांप्रदायिक दलों को रोकने के लिए आपस में हाथ मिलाया है. इससे मुसलमानों में संदेश जाएगा कि उनको एक साथ रहकर धर्मनिरपेक्ष कहे जा रहे (एसपी,कांग्रेस और आरएलडी) गठबंधन के लिए वोट करना जरुरी है.

मायावती कि निगाह भी मुसलमान वोटरों पर 

वैसे बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती की भी नजर मुसलमान वोटरों पर है. मायावती खुलकर कई बार मुसलमानों को लुभाने की कोशिश कर रही हैं और बीएसपी उम्मीदवारों की लिस्ट में यह साफ दिख भी रहा है.

एक दिन पहले ही मुलायम ने अखिलेश को मुस्लिम विरोधी करार दिया था. दूसरी ओर, राहुल गांधी ने हाल में कहा कि उन्हें सभी धर्मों के देवताओं के हाथ में कांग्रेस का चुनाव चिह्न दिखता है.

इन भाषणों से साफ होता है कि अब एसपी, बीएसपी और कांग्रेस मुसलमान वोटरों को अपने पाले में खींचने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं. इन लुभावने नारों का चुनावी धरातल पर कितना असर होगा, इसका फैसला 11 मार्च के दिन (वोटों की गिनती) साफ हो जाएगा