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सपा ने जारी की सीएम अखिलेश की नाकामी की लिस्ट

समाजवादी पार्टी की पहली लिस्ट ने साबित किया है कि अखिलेश पूरी तरह फेल हुए हैं

Arun Tiwari

समाजवादी पार्टी में 325 सीटों पर टिकट बंटवारा हो गया है. 78 सीटों के टिकट प्रत्याशियों की घोषणा अभी बाकी है. लेकिन टिकट बंटवारे में मुलायम सिंह यादव प्रत्याशियों की घोषणा करते जा रहे थे, सीएम अखिलेश की साफ-सुथरी छवि बनाने की कोशिश फीकी होती जा रही थी.

2012 में जब अखिलेश यादव कुल 403 सीटों में 226 सीटों के प्रचंड बहुमत से सीएम बने थे तो सभी को यह उम्मीद थी कि शायद बसपा कभी ‘चढ़ गुंडन की छाती पर, बटन दबाना हाथी पर’ पर का नारा नहीं दे पाएगी. सभी को लग रहा था कि अखिलेश समाजवादी पार्टी की पुरानी छवि को तोड़ेंगे.


अखिलेश ने इसे साबित करने की कोशिश भी की. पश्चिमी यूपी के बाहुबली नेता डीपी यादव को पार्टी से निकालने के लिए उन्होंने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया. इसमें उन्हें पहली दफा सफलता भी मिली. लोगों को भी ये भरोसा हुआ कि अखिलेश सरकार में शायद प्रशासन की स्थिति बेहतर होगी.

दरअसल लोगों में मुलायम सिंह यादव की 2003 में बनी सरकार का भय भी था. लगभग तीन सालों के मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्रित्व काल में कई बड़ी आपराधिक घटनाएं शामिल थीं. इन घटनाओं में बसपा विधायक राजू पाल की इलाहाबाद शहर में दौड़ाकर की गई हत्या और भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या का मामला शामिल था.

इन दो घटनाओं के डर से उस समय बसपा विधायक मुकुल उपाध्याय ने अपनी सुरक्षा की गुहार भी लगाई थी. उन्होंने राज्य सरकार से गुहार की थी कि जिस तरह राजू पाल की हत्या की गई उसी तरह मेरी भी हत्या की जा सकती है.

कौमी एकता दल का विलय रोका था 

कृष्णानंद राय हत्याकांड में मुख्य अभियुक्त मुख्तार अंसारी के राजनीतिक दल कौमी एकता दल के विलय का मामला भी हाल ही में उठा. शिवपाल यादव इस विलय के समर्थन में थे लेकिन अखिलेश ने इसका विरोध किया. विलय तो नहीं हुआ मगर मुख्तार अंसारी से शिवपाल की नजदीकियां जगजाहिर हैं.

अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह यादव का वो पूरा शासनकाल देखा था. वो पार्टी में महत्वपूर्ण भूमिका में भी थे. शायद यही वजह थी कि जब 2012 का चुनाव हुआ तो चेहरा अखिलेश यादव को बनाया गया. खूब वोट मिले सरकार बनी. डीपी यादव मामले से उम्मीद भी बनी. लेकिन वो अखिरी मामला था जब अखिलेश यादव पास हुए थे.

लगभग दो महीने पहले भी अखिलेश यादव ने जोर मारा था. पार्टी से कई नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाया. गायत्री प्रसाद प्रजापति के नाम की मीडिया मे खूब चर्चा हुई. अखिलेश यादव अपनी पूरी ताकत से बता रहे थे कि गायत्री और अन्य निकाले गए मंत्री भ्रष्ट हैं. लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला.

गायत्री प्रसाद प्रजापति पूरे सम्मान के साथ वापस लिए गए. अखिलेश की पूरी कोशिश को लगभग बर्बाद करते हुए मुलायम सिंह यादव ने सीएम पर चाचा शिवपाल को तरजीह दी.

बुधवार को जारी लिस्ट में गायत्री प्रसाद प्रजापति का नाम शामिल है. कौमी एकता दल के सपा में विलय को रोकने में भले ही अखिलेश कामयाब हो गए हों लेकिन पहली ही लिस्ट में मुख्तार अंसारी के भाई सिगबतुल्लाह को गाजीपुर की मुहम्मदाबाद सीट से जगह मिलना किसी हार से कम नहीं है.

दरअसल समाजवादी पार्टी कलह के एक पूरे दौर से गुजर रही है. लाख कोशिशों के बावजूद भी अखिलेश यादव विकास को पार्टी का मुख्य एजेंडा बनाने में नाकामयाब रहे हैं. पूरी लिस्ट मुलायम और शिवपाल ने बनवाई है. ये तय है कि इस लिस्ट पर भी अखिलेश यादव जरूर कुछ जोर मारेंगे लेकिन अपनी पार्टी कामयाबी का उनका इतिहास बहुत कमजोर है. वे शायद फिर नाकामयाब हो जाएंगे.