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आरक्षण पर वैद्य का बयान यूपी में बीजेपी को बिहार वाला झटका देगा?

एक साल बाद लगता है केवल किरदार बदल गए हैं लेकिन, वही स्क्रिप्ट दोहराई जा रही है.

Amitesh

मुद्दा वही, टाइमिंग वही और बयान भी बिल्कुल वैसा ही. लगभग एक साल पहले 2015 के अंत में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण को लेकर ऐसा बयान दिया था, जिसने सियासी तूफान ला खड़ा किया था. मौका बिहार विधानसभा चुनाव का था. सो लालू यादव और नीतीश कुमार सरीखे बीजेपी विरोधियों ने इस मुद्दे को लपक लिया और संघ परिवार को आरक्षण विरोधी बताना शुरू कर दिया था.

हालांकि, बाद में संघ से लेकर बीजेपी की तरफ से लगातार इस मसले पर सफाई दी जाती रही, लेकिन इसका तनिक असर नहीं हुआ. यहां तक कि बिहार चुनाव के वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी साफ कर दिया कि आरक्षण किसी भी सूरत में खत्म नहीं होगा, लेकिन तबतक बीजेपी को सियासी नुकसान हो चुका था.


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बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद बीजेपी के कई दिग्गजों ने ही संघ प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण पर दिए बयान को जिम्मेदार ठहरा दिया था. अब एक बार फिर से एक साल बाद लगता है केवल किरदार बदल गए हैं लेकिन, वही स्क्रिप्ट दोहराई जा रही है.

फिर होगा बिहार वाला असर?

पहले मोहन भागवत ने बयान दिया था, अब मनमोहन वैद्य ने बयान दिया है. यूपी और पंजाब समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज गया है. सभी दल एक-दूसरे पर हमले का कोई मौका नहीं खोने देना चाहते.

ऐसे वक्त जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य ने ऐसा बयान दे दिया जिस पर बीजेपी सकते में आ गई है.

मनमोहन वैद्य (पीटीआई)

वैद्य ने एक सवाल के जवाब में कहा, ‘आरक्षण का विषय भारत में एससी एसटी के संदर्भ में अलग से आया है. हमारे समाज के बंधुओं को हमने सम्मान, सुविधा और शिक्षा से सैकड़ों सालों से वंचित रखा है. ये गलत हुआ है. इसलिए उनको साथ लाने के लिए आरक्षण का प्रावधान संविधान में आरंभ से किया गया है.’

वैद्य ने आगे कहा कि डॉक्टर अंबेडकर ने कहा है कि किसी भी राष्ट्र में हमेशा के लिए आरक्षण का प्रावधान करना अच्छा नहीं है. जल्द से जल्द इसकी आवश्यकता निरस्त होकर आपको समान अवसर देने का समय आना चाहिए. इसके आगे आरक्षण देना अलगाववाद को बढ़ावा देने वाली बात है.

मनमोहन वैद्य के बयान के बाद विरोधियों ने जब हमला बोला तो उन्हें एक ही दिन में तीन-तीन बार सफाई देनी पड़ी. वैद्य ने अपने बयान से पलटी मारते हुए कहा कि ‘संघ आरक्षण का पक्षधर है. हम केवल धार्मिक आधार पर आरक्षण के खिलाफ रहे हैं.’

अब संघ से लेकर बीजेपी सफाई देती रहे लेकिन, विरोधियों ने इस मुद्दे को लपक लिया है.

यूपी चुनाव में कितना होगा नुकसान

आरक्षण का मुद्दा शुरू से ही संवेदनशील रहा है. इस मुद्दे पर लगातार सियासत होती रही है. खासतौर से मंडल आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद आरक्षण पर बवाल ज्यादा हुआ था. लेकिन, जब-जब इस मुद्दे पर कोई बयान आता है, हर बार आरक्षण पर सियासत गर्म हो जाती है.

यूपी चुनाव सामने है तो सभी सियासी दल इस मुद्दे को अपने-अपने तरीके से उठाएंगे ही. विरोधी जब संघ परिवार और बीजेपी को घेरेंगे तो इस बयान के बाद सियासी नुकसान भी होगा. क्योंकि, बिहार और यूपी की सियासत की तासीर में कुछ बुनियादी फर्क भी है. ऐसे में बयान के बाद की सियासत को समझना जरूरी भी होगा.

अगर बात बिहार की करें तो लालू यादव और नीतीश कुमार दोनों मंडल आंदोलन के झंडाबरदार रहे हैं और बिहार की सियासत में दोनों की पिछड़े तबके में पकड़ बहुत अच्छी है. लालू और नीतीश दोनों एक साथ महागठबंधन के साथ चुनाव मैदान में भी थे, लिहाजा मोहन भागवत के आरक्षण की समीक्षा के बयान को दोनों मिलकर अपने पक्ष में भुना ले गए.

लेकिन, न ही अखिलेश यादव और न ही मायावती मंडल आंदोलन की उपज रहे हैं. अखिलेश भी पिछड़े समुदाय को लामबंद करने की कोशिश करेंगे और मायावती भी दलित वोट बैंक को एकजुट करने की कोशिश करेंगी लेकिन, लालू और नीतीश की तरह शायद इस बयान को भुना पाने में सफल न हो पाएं. फिर भी कुछ हद तक नुकसान तो जरूर होगा.

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अगर मुलायम सिंह यादव के हाथों में कमान होती तो शायद वो बीजेपी को ज्यादा नुकसान पहुंचा पाते. यूपी में मुलायम सिंह यादव मंडल आंदोलन के अग्रणी नेता में से एक रहे हैं. फिलहाल वो पार्टी में हाशिए पर ही हैं.

यूपी में समीकरण अलग

बिहार की तुलना में यूपी में जातीय समीकरण थोड़ा अलग भी है. बिहार में सवर्ण जाति के मतदाताओं की तादाद कुल मिलाकर 14 फीसदी के आस-पास हैं. जबकि, यूपी में ये आंकड़ा 24 फीसदी के आस-पास है. इसमें ब्राह्मण मतदाताओं की तादाद 13 फीसदी है. इन वोटरों की अहमियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मायावती और अखिलेश दोनों ने ही सवर्ण जातियों पर इन चुनावों में डोरे डालने शुरू कर दिए हैं. ऐसी सूरत में बिहार की तर्ज पर यूपी में नुकसान होना मुश्किल है.

संघ की तरफ से आए इस बयान के बाद बीजेपी के अपने कोर वोटर्स (सवर्ण जातियां) को एक संदेश जरूर जाएगा और उन्हें अपने साथ जोड़कर रखने में मदद मिल सकती है.

हालांकि इस बयान से गैर-यादव पिछड़े और गैर-जाटव दलित तबकों को अपने पाले में लाने में लगी बीजेपी की उम्मीदों को पलीता लग सकता है. यूपी में 45 फीसदी पिछड़ा और 21 फीसदी दलित वोटर हैं. लोकसभा चुनाव के वक्त मोदी के नाम पर बीजेपी ने यूपी में पिछड़े और दलित तबके के बीच जमकर सेंधमारी की थी, जिसकी बदौलत इतनी बडी जीत हासिल हो पाई थी.

अब विधानसभा चुनाव में भी उसी कहानी को दोहराने की पूरी जोर-आजमाइश की जा रही है. लेकिन, इस बार न पार्टी के पास मोदी लहर है और न ही कोई बड़ा यूपी का चेहरा सामने है. ऐसे में आरएसएस की तरफ से आरक्षण पर आया बयान यूपी में बीजेपी की उम्मीदों पर पानी फेर सकता है.