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एक वल्लभ भाई पटेल थे और एक मुलायम सिंह यादव हैं...

वल्लभ भाई पटेल ने अपने बेटे को दिल्ली से दूर रहने की दी थी हिदायत

Arun Tiwari

मेरे नाम का दुरुपयोग मत करो. दिल्ली में कोई भी फायदा उठाने की कोशिश मत करना. जब तक मैं तक दिल्ली में हूं, यहां से जितनी दूर रह सकते हो, रहना.

भारत के पहले गृहमंत्री और लौहपुरुष कहे जाने वाले सरदार पटेल ने ये बातें अपने बेटे दाहया भाई को एक पत्र में लिखी थीं. उन्होंने अपने बेटे को ये हिदायत दी थी कि किसी भी तरह का काम कराने के लिए उनके नाम का इस्तेमाल न किया जाए. टाइम्स इंडिया में छपे एक लेख के मुताबिक पटेल की जीवनी लिखने वाले राजमोहन गांधी को ये बातें प्रोफेसर रामजी सवालिया ने बताई थीं.


आज न तो सरदार पटेल का जन्मदिन है और न ही पुण्यतिथि. किसी भी आम पाठक को लग सकता है कि सरदार पटेल के इस किस्से को लिखे जाने की क्या जरूरत पड़ गई?

दरअसल, देश ने कुछ ही दशकों में राजनीति में ऐसा परिवर्तन देखा है जो अकल्पनीय है. आजादी के समय जवां होते हुए एक युवा के पास पटेल का उदाहरण मौजूद था. आज का युवा समाजवादी पार्टी का विवाद देख रहा है. वह देख रहा है कि कैसे इटावा का स्कूल टीचर पहले नेता बनता है फिर राजनीति में बंदरबांट का खेल खेलता है.

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वही युवा यह भी देख रहा है कि कैसे मुलायम सिंह यादव के खानदान में दूर-दूर तक का रिश्तेदार भी मालामाल है. इस परिवार में शायद ही कोई ऐसा सदस्य होगा जिसे तरीके से माल-मलाई वाले पदों पर सेट न कर दिया गया होगा. वो युवा बाप-बेटे-चाचाओं के बीच पिछले महीनेभर से सत्ता की जंग भी देख रहा है.

पारिवारिक महात्वाकांक्षाओं की कठपुतली बना यूपी 

वो ये भी देख रहा है कि इस देश का सबसे बड़ा राज्य एक परिवार की महात्वाकांक्षाओं के हाथों कठपुतली बन गया. और इस परिवार का मुखिया आसानी के साथ जब मन करता है राम मनोहर लोहिया की दुहाई दे देता है. वही मुखिया जब मन करता है किसानों और अल्पसंख्यकों की चर्चा करने लगता है.

वही मुखिया जो देश का रक्षा मंत्री भी रह चुका है अपने राज्य के गुंडों की तरफदारी करते हुए बेटे से शुचिता की लड़ाई लड़ रहा है. परिवार का वो ही मुखिया अपने बेटे के सामने पहले कुश्ती के दांव लगाता है और जब बेटा तनकर खड़ा हो जाता है तो वो बाप-बेटे के संबंधों की दुहाई भी देने लगता है.

इस समय का युवा देख रहा है कि बेटे से दांव में हार के बाद अब पिता हर बात मानकर भी पार्टी बचाने की बात पर आ जाता है. लेकिन बेटा मानने को तैयार नहीं है.

अब उस युवा के सामने अखिलेश यादव का उदाहरण है. उसी युवा के लिए यह भी जानना जरूरी है कि आखिर वो क्या कारण थे कि सरदार पटेल को लौह पुरुष की उपमा दी गई. पटेल चाहते तो अपने बेटे को आराम से अपने नाम का इस्तेमाल कर आगे बढ़ने का मौका देते. लेकिन तब शायद देश उन्हें इस शिद्दत के साथ नहीं याद करता.

कहने को तो मुलायम के लिए भी कहा जाता है..मन से मुलायम लेकिन इरादों से लोहा. लेकिन इस मुलायम के भीतर का लौह अयस्क सियासी समझौतों की आंच में गलता पिघलता रहा है.

इसमें कोई शक नहीं है कि मुलायम भारतीय राजनीति के कद्दावर नेता हैं. उन्होंने बड़ा मकाम बनाया है. जमीन से उठकर सियासत का आसमान छुआ है. लेकिन इस ऊंचाई तक पहुंचने में नीयत और ईमान का गला सत्ता की धार पर चढ़कर कितनी बार लहुलुहान हुआ होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.

आज का युवा देख रहा है उस बाप को भी... जो अपने बेटे को अपनी जिंदगीभर की सियासत की जमापूंजी सौंपता है तो लगता है जैसे किसी बुजुर्ग बाप ने अपनी आंखों के सपने अपने बेटे को दे दिए हों. और वही बेटा उन सपनों को बेहतर बनाने का प्रयास करे तो उसकी आंखों में खटकने लगता है. उन्हें तो बस अपना कहना मानने वाला एक ऐसा मुख्यमंत्री बेटा चाहिए जो परिवार की संपत्ति में चार चांद लगाता रहे.

ऐसा नहीं है कि देश में अब ऐसे नेताओं की कमी है जो बड़े पदों पर होने के बावजूद परिवार को लाभ नहीं देते. लेकिन देश की राजनीति में वंशवाद की बेल अब इतनी गहरी पैठ बना चुकी है ऐसे नेताओं की संख्या कम ही होती जा रही है. यह समय है जब देश के प्रत्येक युवा को सरदार पटेल के अपने बेटे के साथ इस संवाद को जरूर पढ़ना  चाहिए.

यह जानना उसका अधिकार है कि स्वतंत्रता के बाद हमारे देश के नेताओं ने जो परिपाटी शुरू की थी उसकी समाधि बनाकर एक सुंदर सा स्मारक बनवा दिया गया है.