view all

यूपी चुनाव: विरोधी ही कर दे रहे हैं बीजेपी का प्रचार

मोदी की बीजेपी इन गांवों में पार्टी द्वारा औपचारिक कैंपेनिंग शुरू होने से पहले ही प्रचार में आगे है.

Sitesh Dwivedi

बदनाम हुए तो क्या नाम न होगा? हिंदी पट्टी की कहावत, जो उत्तर प्रदेश के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी पर एक दम मुफीद बैठती है.

वैसे तो राज्य में बहुजन समाज पार्टी को छोड़ चुनाव प्रचार में अभी सभी दल पीछे चल रहे हैं. राज्य में दो सीटों पर छोड़ सभी प्रत्याशी को घोषित कर बीसएपी अब प्रचार के मैदान में उतर गई है. जबकि, सत्ता बचाने उतरी एसपी पार्टी बचाने की जंग से दो चार है. कांग्रेस की स्थिति 'न तीन में न तेरह में है'.


कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व और प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर के शब्दों में 'साउंड मैकेनिक' प्रशांत कुमार 'पीके' गठबंधन की आस में हैं. जबकि पी एल पुनिया जैसे राज्य के नेता अपने दम पर चुनाव में उतरने के पैरोकार हैं. ऐसे में प्रचार तो दूर कांग्रेस अभी बैसाखी की तलाश में है.

यूपी में 'अच्छे दिनों' की आस में बीजेपी प्रत्याशियों की घोषणा और प्रचार की औपचारिक घोषणा के लिए 'अच्छे दिन' आने यानी शुभकार्य के लिए वर्जित 'खरमास' के बीतने का इंतजार कर रही है, लेकिन बीजेपी का प्रचार यूपी में गांव-गांव तक पहुच रहा है. वह भी पार्टी के विरोधियों के द्वारा.

मुस्लिम मतदाताओं को साधने की कोशिश

विधानसभा चुनावों से ऐन पहले पार्टी में लगी सेंध से उबर रही बसपा जमीनी प्रचार की रणनीति पर काम कर रही है. समूचे यूपी में पार्टी के कार्यकर्ता अपने काडर वोटों से ज्यादा मुस्लिम मतदाताओं के यहां पहुचते दिख रहे हैं. इन कार्यकर्ताओं का संदेश सीधा और स्पष्ट है. 'सपा में रार है, ऐसे में वहां वोट देना वोट बेकार करना है, बीएसपी ही एक मात्र विकल्प है, चूके तो बीजेपी आ जाएगी'. पार्टी के इस प्रचार का मुस्लिम मतदाताओं पर क्या असर पड़ रहा है इसको बस्ती में शंकरपुर गांव निवासी रहीस अली से समझा जा सकता है.

रहीस कहते है, 'अबै तलक तो साइकिले पै वोटवा जात रहा मुला जब बापय पूत मा फूट परिगै है तो कहु और तौ जाहिक परी.' रहीस चुनावी जोड़-घटाव कर बताते हैं, अब बहिन जी के लगे दलितन कै वोट हईए हैं, हमरे सब मिल गएं तव मोदी जीत न पइहैं. हालांकि, रहीस की बात मुस्लिम मतों का रुझान स्पष्ट नहीं करती.

शंकरपुर से 1 किलोमीटर दूर विक्रमजोत स्थित हरी मस्जिद में मौलवी सत्तार मियां कहते हैं, 'बीएसपी चुनाव बाद बीजेपी से मिल जाएं हिया तो जे बीजेपी का हराए वोटवा वही का परे.'

एसपी का टिकट पाए नेता भी लखनऊ में नेतृत्व को लेकर भ्रम को देखते हुए फिलहाल विकास छोड़ बीजेपी विरोध के नाम पर मुस्लिम मतों में बिखराव रोकने की कवायद में हैं.

जैसा कि कहा गया है, प्रीत भय से ही उत्पन्न होती है. सो सपा नेता भी बीजेपी के भय से मुस्लिम मतदाताओं में समर्थन ढूंढ रहे हैं.

समाजवादी नेता, बीएसपी के बीजेपी के साथ चले जाने को लेकर भी मुस्लिम मतदाताओं को आगाह कर रहे है. हर्रइया के एसपी विधायक के भाई मुस्लिम गांवों में बताते हैं कि बीएसपी तीन बार बीजेपी से मिल चुकी है. ऐसे में आपने कहीं चूक की तो राज्य में बीजेपी की सरकार बीएसपी के सहयोग से बन जाएगी.

एसपी नेताओं के जवाब में बीसएपी 'जो बाप का ना हुआ वो आपका क्या होगा' के बेहद निजी हमले के साथ आक्रामक है. जाहिर है राज्य की राजनीति में सबसे महत्वपूर्ण रहे दोनों दल, पिछले विधानसभा चुनावों में बहुत पीछे छूट गई बीजेपी के सामने खुद को मुकाबिल दिखाने की लड़ाई लड़ रहे है. जबकि मुस्लिमों के बीच बीजेपी को 'हौवा' बनाने की इनकी रणनीति बीजेपी को बिना प्रयास के लोगों के बीच चर्चा का केंद्र बनाए दे रही है.

मोदी अभी भी मायने रखते हैं

डर है कि, लंबे समय से सत्ता का वनवास भोग रही बीजेपी के लिये यह हौवा कहीं हवा न बना दे. इस सबके बीच इन गांवों में अक्सर तीन सवारों से लदी बीजेपी के चिह्न वाली मोटरसाइकल भी दिखती है. यह मोटरसाइकल गांव में किसी पेड़ के नीचे या फिर सरकारी स्कूल के पास खड़ी होती है, और गांव के ज्यादातर लोग इन सवारों से ये पूछते मिलते हैं कि 'का मोदी हियव रैली करिहे'. जाहिर है इन सवारो के पास इसका कोई उत्तर नहीं है. वे तो बस 18-20 साल के नौजवान हैं, सुबह-शाम सेना की रैली में दौड़ निकालने के लिए अभ्यास करते है, और दिन में मोटरसाइकल से गांव-गांव की सैर.

Source: Getty Images

तो फिर भाजपा की मोटरसाइकल ही क्यों? मोदी अच्छे लगते है, बेहद सीधा जवाब. इन नौजवानों के पास कुछ रटे-रटाए संवाद और आज का अखबार है, जिसमे से वे जानकारियां पढ़ कर गांव वालों को सुनाते हैं. अखबार में बड़ी संख्या में नोटों की बरामदगी की खबर सुनने के बाद गांव के लोगों के चेहरे एक मुस्कान तैर जाती है. ऐसा मानों पकड़े गए रूपए इनको मिल गए हों.

उर्मिला देवी जो की बाजार में सब्जी बेचती हैं. बड़े उत्साह से कहती हैं, 'हमारे लगे 7 हजार रूपया रहा. तीन दिन लाइन मा लगि के बदल लीन, अब जे कड़ोरन धरे रहे ते कौने लाइन मा लगते? अब पकरे जाय रहे हैं'. लोग जोर से हंसते हैं.

'राहुल भी अब बोलने लगे' 

इसके बाद बात इक बार फिर मुस्लिमों में ध्रुवीकरण, वाट्सऐप पर सीरिया से आये वीभत्स क्लिपों से लेकर नोटबंदी के विरोध में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के जोरदार भाषणों की ओर मुड़ जाती है. भीड़ में कुछ लोग राहुल के विरोध को तपाक से यूपीए के भ्रष्टाचार से जोड़ देते हैं, वहीं कुछ लोग उनके भाषणों को पहले से बेहतर बताते हैं.

60 दशक पार खड़े जनेश्वर मौर्या जो दिल्ली में नौकरी कर चुके है कहते हैं, 'अब राजीव क लरिका बोलय लाग' एक बार फिर जोर का ठहाका लगता है. इन छोटे समूहों में मुस्लिमों के ध्रुवीकरण, खासकर इस वर्ग के खुलकर मोदी के खिलाफ किसी के साथ जाने की प्रतिबद्धता को देखते हुए बहुसंख्यक समाज में भी जाति के बंधनों को ढीले होते महसूस किया जा सकता हैं.

पेशे से ड्राइवर करमचंद यादव कहते हैं, 'बाबू साहेब अबहे तक साइकिल पर वोट दिहेन, बकिल अबकि साइकिल का न दीन जाइ.' तो और कौन? वे बेधड़क कहते हैं, 'फूल का.' यह पूछने पर की एसपी और बीसएपी ने अपने प्रत्याशी घोषित कर दिया है, बीजेपी का उम्मीदवार तो अभी आया ही नहीं है, करमचंद कहते है 'केहू आवे अबकी वोटवा मोदीन का जाए'.

यह सवाल कि पिछले ढाई साल से दिल्ली में बैठे मोदी ने आपके लिए क्या किया? करमचंद कहते हैं 'अब यहुं उनकै सरकार आई जाए तब कमवा देखाय लागे'. इन गांवों में 'मन की बात' को गौर से सुना जाता है, जबकि मोदी के भाषण मोबाइल और चीन से आए सस्ते टैबलटों पर वाट्सऐप के जरिए सहजता से उपलब्ध है. नोटबंदी को लेकर बैंक कर्मचारियों की कथित संलिप्तता पर जब मोदी कहते हैं, 'बख्शा नहीं जाएगा' तो रायपुर निवासी हरिप्रसाद के मुंह से अनायास निकलता है, 'ई भय मर्दन वाली बात'.

नोटबंदी पर क्या है राय?

एक और बात जो हम दिल्ली में बैठ के अनुमान नहीं लगा सकते है वो ये कि नोटबंदी के प्रति ग्रामीण इलाकों में क्या सोच है.

नेतवर गांव में विक्रमजोत बाजार में कपड़े की दुकान करने वाले महेश्वर सिंह कहते है, 'वस तो कौनो दिक्कत नाइ भय लेकिन पैसवा का लैके बैंक वाले बहुत बैमानी किहिन, विधायक जी के आदमी महीना भर नोटय बदलत रहे.' गांवों में नाराजगी बैंकों से है और रसूख वाले प्रधानों व विधायकों से. जाहिर है उत्तर प्रदेश में ज्यादातर प्रधान, जिला पंचायत सदस्य और विधायक सत्ताधारी दल से हैं. यानी नोटबंदी के गुस्से का गुबार प्रदेश सरकार के खिलाफ पड़ता दिख रहा है.

पाठक पुरवा में रिटायर्ड डीएफओ शशि भूषण सिंह कहते है, जब से नोटबंदी हुई है, तब से जितना रुपया रोज पकड़ा जा रहा है, वैसा उन्होंने कभी नहीं सुना था. वे कहते है, ये सब पैसा पिछली सरकारों के दौरान भ्रष्टाचार से कमाया गया है. मोदी सरकार अब इसे पकड़ रही है. एक बात और- इंदिरा इज इंडिया कितना पॉपुलर और सच था यह तो पता नहीं, लेकिन इन गांवों में बीजेपी इज मोदी या यूं कहें मोदी भाजपा से ज्यादा पॉपुलर हैं इसमें कोई दो राय नहीं है.

जाहिर है मोदी की बीजेपी इन गांवों में पार्टी द्वारा औपचारिक प्रचार शुरू किए जाने से पहले ही प्रचार में आगे है.