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अब मुलायम-अखिलेश की साइकिल बचाओ मुहिम

मुलायम की राजनीतिक लड़ाई पार्टी को टूटने और चुनाव चिन्ह बचाने तक सीमित हो गई है.

सुरेश बाफना

पिछले तीन महीने से समाजवादी पार्टी के भीतर जारी यादवी संघर्ष का अब हिन्दी फिल्मों की तरह सुखद अंत होता दिखाई दे रहा है.

राजनीति के शह व मात के खेल में पुत्र अखिलेश यादव से पटकनी खाने के बाद पहलवान पिता मुलायम सिंह यादव ने लगभग अपनी हार स्वीकार कर ली है.


तीन महीने के बाद ही सही उन्होंने इस राजनीतिक सच को सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर लिया है कि यदि एसपी को बहुमत मिला तो अखिलेश यादव ही फिर मुख्‍यमंत्री पद की शपथ लेंगे.

पुत्र या पार्टी मोह में झुके मुलायम? 

पिता-पुत्र के इस राजनीतिक संघर्ष में जब यह स्पष्ट हो गया कि चुनाव आयोग अगले तीन-चार दिनों के भीतर ही एसपी की साइकिल को जब्त करके कोई अन्य चुनाव चिन्ह दोनों गुटों को आवंटित कर देगा, तब मुलायम सिंह यादव ने पुत्र अखिलेश से सुलह करने का निर्णय लिया.

इस सुलह के लिए मुलायम ने भाई शिवपाल यादव व अमर सिंह के राजनीतिक भविष्य को भी दांव पर लगाने के लिए सहमत हो गए.

गेंद चुनाव आयोग के पाले में फेंकने के बाद भी पिता-पुत्र के बीच संवाद की डोर कभी टूटी नहीं थी. नेताजी पर हमेशा पिताजी ही हावी रहे हैं, लेकिन पुत्र अखिलेश ने पिता के प्रति आदर बनाए रखते हुए अपना राजनीतिक रास्ता अलग तय करने का फैसला ले लिया था.

अखिलेश की इसी दृढ़ता का ही नतीजा है कि मुलायम सिंह यादव को पुत्र की इच्छा को स्वीकार करने के लिए बाध्य होना पड़ा.

जाहिर है जिस समाजवादी पार्टी को उन्होंने अपने खून-पसीने से सींचकर मजबूत किया है, उस पार्टी को वे उम्र के इस पड़ाव पर टूटते हुए नहीं देखना चाहते हैं. अखिलेश को भी इस बात का अहसास है कि यदि एसपी दो भागों में विभाजित हो गई तो इसका राजनीतिक खामियाजा उनको भी भुगतना पड़ेगा.

मुलायम सिंह यादव ने जब अखिलेश को भावी मुख्‍यमंत्री के रूप में पेश करने पर अपनी सहमति दे दी है तो इसका सीधा अर्थ यह भी है कि पार्टी के उम्मीदवारों की सूची तय करने में अखिलेश की ही निर्णायक भूमिका रहेगी.

पिछले एक महीने के दौरान एसपी में चले दंगल का नतीजा यह भी है कि मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक विरासत के असली हकदार अखिलेश यादव ही है.

सुलह में आखिरी रोड़ा राष्ट्रीय अध्यक्ष पद 

एसपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के सवाल पर पिता-पुत्र के बीच सीधे टकराव की स्थिति का समाधान सबसे मुश्किल मुद्दा है. अखिलेश को आशंका है कि पिता मुलायम सिंह यादव यदि राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर बने रहते हैं तो अमर सिंह व शिवपाल मिलकर उनसे कुछ ऐसे फैसले करवा सकते हैं, जिससे उनकी स्थिति कमजोर हो सकती है.

इस वजह से अखिलेश चाहते हैं कि अगले तीन महीने तक वे अध्यक्ष पद पर बने रहे. मुलायम सिंह का कहना है कि अध्यक्ष पद छोड़ना उनके लिए बेहद अपमानजनक होगा. अब यही एकमात्र मुद्दा बचा है, जो पिता-पुत्र के बीच सुलह में बाधा बना हुआ है.

कल मुलायम सिंह यादव ने राज्यसभा के सभापति को पत्र लिखकर सूचित किया था कि अखिलेश के रणनीतिकार प्रो. रामगोपाल यादव को सपा से निष्काषित कर दिया गया है. इस वजह से उन्हें सदन में पार्टी के नेता पद से हटा दिया जाए.

अमर सिंह और शिवपाल की राजनीतिक बलि को देखते हुए मुलायम यह चाहेंगे कि अखिलेश रामगोपाल यादव से नाता तोड़े. अखिलेश के लिए यह संभव नहीं होगा.

अमर सिंह की यह टिप्पणी सटीक है कि मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक हैसियत खत्म हो चुकी है. स्वयं मुलायम ने भी स्वीकार किया है कि पार्टी के लगभग सभी विधायक व नेता अखिलेश के साथ है.

शायद अपने 50 साल से भी अधिक के राजनीतिक जीवन में मुलायम सिंह यादव ने खुद को इतना अधिक कमजोर कभी महसूस नहीं किया होगा. आज उनकी राजनीतिक लड़ाई पार्टी को टूट से और चुनाव चिन्ह साइकिल बचाने तक सीमित हो गई है.