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कितना रास आएगा अखिलेश यादव को कांग्रेस का 'हाथ'?

साइकिल वाले अखिलेश यादव के लिए बगावत की पथरीली राह में करिअर पर बैठी कांग्रेस को ढोना मुश्किल होगा

Sitesh Dwivedi

समर्थकों की भीड़ के जरिए समाजवादी परिवार की लड़ाई का पहला राउंड जीत चुके उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अब साइकिल के वारिस भी हो गए हैं. चुनाव आयोग ने अखिलेश को पार्टी व चुनाव चिह्न का असली हकदार बताया है.

कहावत है हर सफलता की कीमत होती है. अखिलेश को भी इस सफलता की कीमत चुकानी होगी. चुनाव आयोग में अखिलेश का सफलता पूर्ण पक्ष रखने के लिए अपने वरिष्ठ नेता पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल को खड़ा करने की कीमत कांग्रेस, यूपी एसपी की राजनीतिक जमीन के बंटवारे के रूप में वसूलेगी.


कांग्रेस ने इसकी शुरुआत भी कर दी है. कांग्रेस ने अखिलेश को जो नई लिस्ट सौंपी है उसमे 165 सीटों की मांग की गई है. जानकारी के मुताबिक पहले कांग्रेस को 78 सीटें देने पर सहमति बनी थी.

एसपी में झगड़े की जड़ है कांग्रेस 

जाहिर है कांग्रेस की यह मांग एसपी में टिकट के दावेदारों और उन विधायकों को नागवार होगी, जिनकी सीटें कांग्रेस के 'हत्थे' चढ़ेंगी. जाहिर है पिता की लिस्ट में टिकट पा चुके यह लोग एक बार फिर पाला बदल का खेल खेलेंगे.

ऐसे में साइकिल वाले अखिलेश यादव के लिए बगावत की पथरीली राह पर करिअर पर बैठी कांग्रेस को ढोना कितना मुश्किल होगा इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है.

इस सारी लड़ाई की असली विजेता कांग्रेस बनती दिख रही है. राज्य में हाशिए

पर खड़ी कांग्रेस महज एक महीने बाद अगर परिवार की लड़ाई में विजेता अखिलेश से मोल-तोल की स्थित में है. इसके पीछे उसके रणनीतिकार हैं.

दरअसल, राज्य में पहले अखिलेश से फिर मुलायम से अलग-अलग मिल कर पार्टी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने एसपी में दो 'पावर सेंटर' को पहचान लिया था. प्रशांत ने कांग्रेस हाईकमान को बताया की मुलायम से बात नहीं बनेगी. उसके बाद कांग्रेस की तरफ से सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल ने संभाली.

पटेल ने उस समय एसपी महासचिव राम गोपाल से संपर्क साधा और बात शुरू हुई. इस बीच मुलायम को जब इसकी भनक लगी तब उन्होंने अखिलेश को समझाया कि, इस समझौते में नुकसान एसपी का होगा.

कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है एक बार अल्पसंख्यक उधर गए तो फिर एसपी के लिए वे लौटेंगे नहीं. लेकिन, कांग्रेस की मदद से नीतीश कुमार, ममता बनर्जी जैसा बड़ा नेता बनाने का ख्वाब देख रहे अखिलेश ने अपनी राह चुन ली थी. वे गठबंधन की राह पर आगे निकल चुके थे.

चुनाव आयोग का फैसला उसका एक पड़ाव है, अंत नहीं. हकीकत में अखिलेश की चुनौतियां अब शुरू ही हुई हैं. राजनीति में सही समय पर दांव के लिए मशहूर मुलायम सिंह यादव भी शायद आयोग से किसी ऐसे ही फैसले की उम्मीद कर रहे थे.

निशाने पर मुस्लिम वोट 

लिहाजा पहल करते हुए उन्होंने आयोग के फैसले से कुछ पहले ही अखिलेश पर सीधा हमला करते हुए उन्हें मुस्लिम विरोधी करार दे दिया. यूपी की राजनीति में विरोधियों द्वारा 'मुल्ला मुलायम' बताये गए नेता जी के इस दांव की काट अखिलेश जल्दी शायद ही ढूंढ पाएं. मुस्लिमों के रहनुमा के चेहरे की लड़ाई में अखिलेश मुलायम से बहुत पीछे हैं.

राज्य में विकास के नाम पर चुनाव में जाने को तैयार अखिलेश के सामने अब अपने 'एमवाई' वोट बैंक को बचाने की चुनौती आ खड़ी हुई है. तुर्रा यह कि, यह चुनौती दोहरी है. खुद अखिलेश के पिता और राज्य में मुस्लिमों के बीच सबसे भरोसेमंद चेहरा माने जाने वाले मुलायम अखिलेश के फैसलों को कठघरे में रख उन्हें मुसलमान विरोधी बता रहें हैं.

वहीं, आज़म खान जैसे नेता भी अखिलेश से फिलहाल दूरी बना कर चल रहे हैं. राज्य में कांग्रेस नेता नूरबानो से लड़ कर नेता बने आज़म कांग्रेस के साथ खड़े अखिलेश के हमनवां होंगे इसको लेकर जानकार भी संशय जता रहे हैं.

उधर, मायावती ने अयोध्या सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार उतार कर प्रतीकात्मक लड़ाई को अपने पाले में करने की कोशिश की है. वे खुले आम प्रत्याशियों की संख्या बता कर अल्पसंख्यकों को रिझा रही हैं. अब जब अखिलेश के विकास के पहियों को खुद उनके पिता ने उन्हें 'मुस्लिम विरोधी' बता कर पंचर कर दिया है, जबकि कांग्रेस का साथ भी उन्हें भारी पड़ता दिख रहा है.

अखिलेश, आज़म खान और मुलायम सिंह यादव

अखिलेश देख रहे हैं, कांग्रेस के सहारे वापसी का सपना 

अभी तक कांग्रेस को कुछ सीटें दे कर सत्ता में वापसी का ख्वाब देख रहे अखिलेश पर अब कांग्रेस अधिक सीटें देने का दबाव बना रही है. अखिलेश खेमे के एक विधायक जिन्हें मुलायम सिंह द्वारा प्रत्याशियों की घोषित लिस्ट में भी जगह मिली है कहते हैं, 'कांग्रेस हाथ पकड़ कर बांह मरोड़ने की कोशिश कर रही है'.

वे कहते हैं, कभी बीएसपी के साथ ऐसा ही गठजोड़ कर कांग्रेस ने अपने दलित वोटबैंक को गवां दिया था. उसके बाद कांग्रेस राज्य में चौथे पायदान तक खिसक चुकी है.

जाहिर है, उसी रास्ते से वापसी की कोशिश कर रही कांग्रेस का दांव सटीक पड़ा है. ऐसे में डर है कि, अखिलेश की नई राजनीति महज कांग्रेस के लिए 'बैसाखी' बन कर न रह जाये.

वहीं, अभी तक परिवार में फूट को लेकर अमर सिंह और राम गोपाल को कोस रहे खांटी सपाईयों के निशाने पर अब कांग्रेस है.

सरोजनी नगर विधान सभा में एसपी से ब्लॉक प्रमुख रहे रूप यादव कहते है, 'कांग्रेस हमेशा से फूट डालो राज करो में यकीन करती रही है, इस बार उसने बाप बेटे में फूट डाल कर अपनी दाल गलाने का इंतजाम कर लिया है.'

वहीं, यादव परिवार में लड़ाई की शुरुआत से एसपी दफ्तर में डटे आजमगढ़ से आये अनीस के मुताबिक राम गोपाल ने कांग्रेस से सौदा कर बाप बेटे में लड़ाई लगाई है.

वे कहते हैं अगर ऐसा न होता तो कपिल सिब्बल नेता जी का विरोध करने चुनाव आयोग न जाते. अनीस कहते हैं कि चाहे जो हो अकलियत का वोट जहां नेता जी होंगे वहीं जाएगा.