सोनांचल में जैसे-जैसे मतदान की तारीख नजदीक आ रही है, वैसे वैसे चुनावी-दंगल तेज होती जा रही हैं. मौसम के पारे के साथ चुनावी पारा भी तेजी से बढ़ रहा है. गांव हो या नगर का चौक-चौराहा या पान की दुकान. हर जगह चुनावी चकल्लस जोरों पर हो रही है.
रेनूकूट के पास एक जगह है डाला. यहां जेपी की सीमेंट फैक्ट्री हैं और वर्षों पहले 1991 में कुख्यात डाला सीमेंट फैक्ट्री गोली कांड यहीं हुआ था. यहां की हाल देखकर मन खिन्न हो जाता है. हर जगह धूल ही धूल. ऐसा लगता है जैसे आप किसी खदान में घुस गए हों.
डाला बाजार में घूमने पर ऐसा लगता है जैसे सालों से विकास का कोई काम नहीं हुआ है. दो विधानसभा क्षेत्र में शामिल डाला क्षेत्र का विकास दो विधायक भी नहीं कर सके. क्षेत्र में बिजली की दशा दयनीय है.
गुरमुरा, तेलगुड़वा कोल आदि क्षेत्रों में कई ऐसे गांव हैं जहां आज तक बिजली के पोल तक नहीं गड़े हैं. सूर्यास्त के बाद जिंदगी अंधरे में डूब जाती है.
पानी तक की समस्या से जूझते लोग
मूलभूत सुविधाओं की बात करें तो पानी बड़ी समस्या हैं. क्षेत्र में चिकित्सा के लिए एक मात्र स्वास्थ्य केंद्र चोपन है. जहां स्वास्थ्य सेवाओं व चिकित्सा का टोटा लगा रहता है. औद्योगिक क्षेत्र होने के कारण यहां व्यवसाय करने वाले लोग ज्यादातर बाहरी है जो सिर्फ़ पैसा कमाने में जुटे हैं. वहीँ स्थानीय लोग प्रदूषण की मार झेलने को मजबूर हैं.
वाराणसी-शक्तिनगर राष्ट्रीय राजमार्ग का फोरलेन होना एक सुखद एहसास कराता हैं लेकिन फ्लाईओवर लोगों के लिए मुसीबत बन गया है. इसने मुख्य बाजार को बीच से बांट दिया है. मुख्य बाजार में लिट्टी-चोखे की दुकान पर जलपान कर रहे कुछ लोगों ने बताया कि शिक्षा-व्यवस्था भी लचर है. ओबरा राजकीय विद्यालय दूर पड़ता है. जिससे अधिकांश छात्राओं की शिक्षा इंटर के बाद अधूरी रह जाती है. क्रशर व्यवसायी गिट्टी निकालने के लिए क्षेत्र के पहाड़ों का दोहन धड़ल्ले से कर रहे हैं जिससे क्षेत्र में प्रदूषण चरम पर है.
लोगों का कहना है कि खनन व्यवसाय को उद्योग का दर्जा मिल जाए ताकि खनन में होने वाले अवैध कार्य को रोका जाए जिससे क्षेत्र का विकास हो सकेगा. लोगों का कहना है कि इस बार ऐसा नेता चुनेंगे जो जनता के बीच रहकर उनकी समस्याओं को सुने और महसूस करे.
यहां से माटकुंडी के रास्ते में चोपन भी पड़ता है. चोपन ब्लॉक में पड़ने वाले कुरहूल, कारगर, मितापुर, सलाखन, आदि गांवों को देखकर लगता ही नहीं कि देश को आजाद हुए 70 साल हो गए. बदहाल सड़कें, खनिज-संपदा की लूट, अवैध बालू खनन, पानी, बिजली सारी समस्याएं व अनियमितताएं चरम पर हैं.
माटकुंडी के प्राइवेट ऑटो स्टैंड के पास चाय की दुकान पर चुनावी चर्चा में मशगूल कुछ लोगों ने कहा , ‘बहुत चुनाव देखले हई चुनाव मतलब खाली वादा होता’. इतना सुनते ही सामने वाले बेंच पर बैठे रजधन गांव के राजेंद्र पाण्डेय बोले, ‘सही कहला संतोष भाई इ बतिया सब नेतवन पर लागू होला हर नेता वादा के खाता खोलके चलत ह. जीतला के बाद एको ना नजर आवेलन’.
वेलकप गांव के मुन्ना खान ने कहा कि जवन प्रत्याशी विकास के बात करिहे वोहीन के जितावल जाई. यहां से कुछ ही दूर पर चुर्क में मिले 22 साल के आईटीआई डिग्रीधारक नसीम कुरैशी ने बताया कि चुर्क में जेपी का पावर प्लांट बन रहा है. लेकिन स्थानीय लोगों को रोजगार की जरूरत है.
कई खिलाड़ी दिए मगर स्टेडियम नहीं
अन्य लोगों ने बताया कि चुर्क से कई राष्टीय स्तर के हॉकी खिलाड़ी निकले हैं पर वर्तमान में स्टेडियम न होने के कारण प्रतिभाएं दम तोड़ रही हैं. नगर के युवाओं का कहना हैं कि वे इस बार उसे वोट करेंगे जो सिर्फ अश्वासन न दे. क्योकि पिछले चुनाव में उन्हे सिर्फ आश्वासन की घुट्टी ही पिलाई गई.
बहरहाल चुर्क भले ही छोटा हो मगर यहां जिले के कई बड़े अधिकारी निवास करते हैं. जिससे अन्य अधिकारियों का आना जाना लगा रहता हैं. मगर समस्याओं पर किसी अधिकारी का ध्यान नहीं जाता है. अब देखने वाली बात यह है की अपनी समस्याओं को लेकर जूझ रहे चुर्क व सोनांचल के मतदाता इस बार किन मुद्दों को लेकर वोट करते है और अपना मत किसके पक्ष में देते हैं.