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यूपी विधानसभा चुनाव नतीजे: आज मुस्लिम पूछ रहा है बीजेपी क्यों नहीं

मुस्लिम वोटरों का टूट गया है मिथक.

Tufail Ahmad

मैं लखनऊ में एक जगह था. वहां एक पत्रकार कुछ लोगों से बात कर रहे थे कि कौन किसको वोट देगा. बुर्का पहने एक महिला खड़ी थी, जिसने उस पत्रकार को बुलाया और कहा कि मैं मोदी को वोट दूंगी. उसे कहा कि वही हैं, जो तीन तलाक के मुद्दे पर बोल रहे हैं. ये नया मुसलिम वोटर है. ऐसा वोटर जो संविधान पर भरोसा करता है. जो ट्रिपल तलाक पर बात करना चाहता है. जो आर्टिकल 370 पर चर्चा चाहता है.

मुसलमानों के लिहाज से ये बदलाव का चुनाव


उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव इस मायने में बदलाव का चुनाव कहा जा सकता है. मैं ये तो नहीं कहूंगा कि ज्यादा मुसलमानों ने बीजेपी को वोट दिया है. लेकिन इतना जरूर है कि आज की तारीख में मुस्लिम पूछ रहा है कि बीजेपी क्यों नहीं.

वोटर युवा है. ज्यादातर लोग 35 की उम्र से कम हैं. वो अलग तरीके से सोचते हैं. असम और गुजरात में भी बड़ी तादाद में तो नहीं, लेकिन लोग मोदी से जुड़े हैं. वो सामने आकर नहीं बोल रहे. उन्हें लगता है कि खुलकर बोलेंगे, तो बिरादरी में शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी. लेकिन वे बीजेपी को वोट देने लगे हैं.

यकीनन ये चुनाव मोदी की पर्सनैलिटी के इर्द-गिर्द ही लड़े गए हैं. इस जीत से उन्हें बहुत फायदा होने वाला है. वो और मजबूत होकर दिखाई देंगे. 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए उनका रास्ता और साफ होगा.

जीत के पीछे गरीब जनता

मैं मानता हूं कि नोटबंदी का असर हुआ है. लेकिन अमीरों पर ज्यादा हुआ है. असलियत ये है कि गरीब जनता पार्टियों को जिताती है. अमीरों के वोट से सरकारें नहीं बनतीं. बनारस के आसपास हैंडलूम इंडस्ट्री है. इसे उदाहरण के तौर पर बताया जाता है कि कैसे नोटबंदी ने इसे बर्बाद कर दिया, जिसकी वजह से लोग नाराज हैं. मुझे ऐसा नहीं लगता कि उन्होंने नोटबंदी की वजह से बीजेपी के खिलाफ वोट दिया होगा. वो अलग-अलग वजहों से एसपी को वोट देने की बात कर रहे थे.

दरअसल, वोटरों की नब्ज मोदी ने बहुत अच्छी तरह समझी है. वो कहते भी हैं कि युवा थे, तब उन्होंने पूरा देश घूमा था. उन्हें लोगों की समझ है. उसका फायदा उन्हें मिला है. उन्होंने खासतौर पर युवाओं पर ध्यान दिया है. ऐसे युवा जो धर्म और जाति की राजनीति से ऊपर आना चाहते हैं. उन्होंने ध्रुवीकरण को तोड़ने के लिए दूसरी तरह का ध्रुवीकरण भी कर दिया. इसी के तहत उन्होंने श्मशान और कब्रिस्तान का मुद्दा उठाया था.

राहुल ने कुछ नहीं सीखा

यहां मैं कांग्रेस की बात भी करना चाहता हूं. राहुल गांधी भी एक दशक से ज्यादा वक्त से उत्तर प्रदेश में समय बिता रहे हैं. इतने वक्त में कोई भी सीख लेता. लेकिन राहुल को देखकर ऐसा लगता नहीं कि उन्होंने कुछ सीखा है. भले ही उन्होंने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से ऐसे विषय में एमफिल किया हो, जो विकास सिखाता है. लेकिन राहुल उस मुद्दे से अलग ही दिखाई दिए हैं.

दरअसल, लोग अब साफ-साफ बात सुनना चाहते हैं. वो लिबरलिज्म और सेक्युलरिज्म के नाम पर बातें छुपाने के पक्षधर नहीं हैं. उन्हें लगता है कि बीजेपी साफ बात करती है. जैसे मैंने देखा कि कुछ उर्दू अखबारों ने हेडलाइन लगाई कि मुसलमानों के लिए इम्तिहान. लेकिन अगर कोई हिंदी अखबार लिखता कि हिंदुओं के लिए इम्तिहान तो उसे सांप्रदायिक कहा जाता. इसी डबल स्टैंडर्ड से लोग दुखी हो चुके हैं.

तीन पक्षों की लड़ाई में हुआ नुकसान

मैं समझता हूं कि एसपी-कांग्रेस गठबंधन ने भी नेगेटिव असर डाला है. अखिलेश का डर था, जिसने ये गठबंधन कराया. वैसे भी दोपक्षीय लड़ाई में गठबंधन काम करता है. जब लड़ाई तीन पक्षों की हो, तो इसका चलना मुश्किल होता है. उसके अलावा मुलायम के साथ उनकी लड़ाई से गलत संदेश गया. उस पूरे बेल्ट में बेटे को तानाशाह की तरह देखा गया.

इसी तरह बीएसपी की रैली में मुसलमानों की खूब बात हुई. रैली की शुरुआत कुरान की किसी बात से होती थी. इन सबने भी बीजेपी को फायदा पहुंचाया. ये चुनाव देश की राजनीति में आ रहे बदलाव को दिखाते हैं. उस बदलाव को मोदी ने बहुत अच्छी तरह समझा और उसका फायदा उठाया है. उन्होंने जो किया है, उसकी खनक 2019 तक कायम रहेगी.