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यूपी में दलित-मुस्लिम गठजोड़ क्यों दरक रहा है?

यूपी चुनाव में दलित-मुस्लिम गठजोड़ दरकता हुआ दिख रहा है.

Amitesh

उत्तर प्रदेश में दलित और मुस्लिम गठजोड़ के सहारे सत्ता का ख्वाब देख रही मायावती के लिए पश्चिमी यूपी में झटका लग सकता है. क्योंकि कांग्रेस के साथ गठबंधन के बाद अखिलेश यादव ने खुद को बीजेपी के सामने सबसे बड़ी ताकत के रूप में पेश कर दिया है.

99 मुसलमानों को विधानसभा चुनाव का टिकट थमा कर मायावती ने कोशिश की है इस बार दलित-मुस्लिम गठजोड़ को मजबूत करने को लेकर, लेकिन, लगता है यह गठजोड़ उस कदर नहीं बन पाया जिसकी उम्मीद खुद मायावती कर रही होंगी.


खासतौर से मुरादाबाद और आस-पास के क्षेत्रों में मुसलमानों को मायावती की यह बात अपील नहीं कर रही है जिसमें वो बार-बार सपा में दरार के नाम पर अपने लिए वोट मांग रही हैं.

पश्चिमी यूपी के मुस्लिम देंगे अखिलेश का साथ ?

शायद अखिलेश यादव को इस बात का डर सता रहा था कि परिवार के कलह से हुए नुकसान और पांच साल के एंटीइंकंबेंसी फैक्टर उन्हें ज्यादा भारी पड़ने वाले हैं. अखिलेश का डर ही था जिसने उन्हें कांग्रेस के साथ आने पर मजबूर कर दिया.

लगता है अखिलेश की ये चाल इस बार पश्चिमी यूपी में काफी हद तक सफल हो रही है. पश्चिमी यूपी के मुस्लिम मतदाताओं के रूझान से साफ है इस बार उन्हें यूपी में ये साथ पसंद आ रहा है.

मुरादाबाद में ऑटोरिक्शा चलाने वाले वाले इरशाद अली बेबाकी से कहते हैं कि ‘हमें तो अखिलेश यादव पसंद हैं. उनकी छवि अच्छी है, उन्होंने यूपी में विकास भी किया है. इसलिए हम तो उन्हीं को वोट देंगे.’

हालांकि, यूपी की चार बार मुख्यमंत्री रह चुकी मायावती को लेकर उनका नजरिया कुछ अलग है. उनका कहना है कि अखिलेश ज्यादा बेहतर हैं और युवा हैं लिहाजा हमें तो वही पसंद हैं.

मुस्लिम तबके में कई और दूसरे लोग हैं जिनका मानना है कि मायावती को वोट देने से इसका फायदा बीजेपी को हो सकता है. उनका मानना है कि खुद दलित समुदाय का वोट ही जब बीएसपी को नहीं मिल रहा है तो ऐसे में हम अपना वोट बर्बाद क्यों करेंगे.

मुरादाबाद के कारोबारी नुमान मंसूरी फर्स्टपोस्ट से बातचीत में कहते हैं ‘लोकसभा चुनाव में सभी दलित समुदाय के लोगों ने भी बीजेपी के पक्ष में वोट किया. ऐसे में इस बात की क्या गारंटी है कि दलित समुदाय के लोग इस बार बीएसपी के साथ जाएंगे? लिहाजा मुस्लिम समाज समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन को ही वोट करेगा.’

मुस्लिम बहुल मुरादाबाद में पहले से है सपा का दबदबा

मुरादाबाद में हिंदू और मुस्लिम आबादी लगभग आधी-आधी है. यहां हिंदू 55 फीसदी तो मुस्लिम लगभग 45 फीसदी तक हैं. मुरादाबाद की 6 सीटों पर इस बार बीएसपी ने 3 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है जबकि, समाजवादी पार्टी की तरफ से सभी 6 सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में हैं.

फिलहाल यहां की सभी सीटों पर समाजवादी पार्टी का ही कब्जा है. कांठ सीट से पीस पार्टी से जीतने वाले अनीसउर रहमान अब इस बार समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं.

क्या दलित भी छोड़ेंगे बीएसपी का साथ ?

मुरादाबाद और आसपास के इलाकों में जाटव के अलावा खटिक, कोरी, सोनकर, धोबी और वाल्मीकि समेत 36 जातियां हैं जो दलित समुदाय से आती हैं. बीजेपी ने पूरे प्रदेश में 85 दलित समुदाय के लोगों को टिकट दिया है जिसमें 21 जाटव, 21 पासी, 11 धोबी, 10 खटीक, 7 कोरी और 3 वाल्मीकि समुदाय के उम्मीदवार शामिल हैं.

पिछले लोकसभा चुनाव के वक्त जाटव समुदाय को छोड़कर बाकी दलित तबकों के लोगों ने बीजेपी का साथ दिया था. इस बार भी बीजेपी कुछ ऐसी ही उम्मीद कर रही है.

मुरादाबाद के कुंदरकी विधानसभा के मूंढापाण्डे गांव में रहने वाले दलित समुदाय के सूरज पहले तो कुछ बोलने से इनकार करते हैं लेकिन, बाद में बिना नाम लिए अपने घर में रखे बीजेपी उम्मीदवार की एक छोटी तस्वीर निकाल कर दिखाते हैं.

लगभग यही हाल दूसरी पिछड़ी जातियों का भी है. दूसरी पिछड़ी जातियों में भी बीजेपी सेंधमारी करने की तैयारी में है. बीजेपी को लग रहा है कि अगर मुस्लिम समुदाय को वोट सपा को जाता है तो इसका सीधा फायदा उसी को होगा.

इसीलिए बीजेपी की तरफ से हर चुनावी सभा में पलायन से लेकर यांत्रिक कत्लखाने तक के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया जा रहा है.

फिलहाल इस इलाके में लड़ाई सपा और बीजेपी के बीच ही दिख रही है. दलित-मुस्लिम गठजोड़ दरकता हुआ दिख रहा है.