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यूपी चुनाव 2017: 'कांग्रेस-एसपी गठबंधन' के कारण क्या अखिलेश चुकाएंगे भारी कीमत

चुनाव परिणाम आने के बाद अखिलेश को अपनी पार्टी के लोगों को थोड़ी सफाई देने की जरूरत पड़ सकती है.

Akshaya Mishra

'लगभग 70 सीटें. जब सब कुछ फायदे में जा रहा है तो इससे बेहतर कांग्रेस को उत्तरप्रदेश में नहीं मिल सकता.'

ये कहा मेरठ के एक होटल में एक पुराने कांग्रेसी ने जो स्थानीय पार्टी के उम्मीदवार रमेश ढींगरा के प्रचार कार्यालय में रहा है. 'हमें यथार्थवादी होना होगा. पार्टी के मुख्य मतदाता दूर हो गए हैं.'


आजकल चल रहे चुनावों में कांग्रेस सदस्य के तौर पर पार्टी की क्या संभावना उनको नजर आती है, इस प्रश्न पर वे अपना नजरिया पेश कर रहे थे. 'है न ये बहुत ज्यादा आशावादी?'

आप पूछिए और ये जवाब पाइये. 'मेरा मतलब इस चुनाव से नहीं था. ज्यादा से ज्यादा 70 सीटें मिल सकती हैं. 45 सीटें भी मिल जाए तो ठीक-ठाक हो जाएगा हमारे लिए. आप दूसरों से कहते हैं और वे कांग्रेस के लिए 35 से 45 सीटों की भविष्यवाणी करते हैं. पिछली बार 2012 में कांग्रेस को मिली 28 सीटों पर जरा सी ही बढ़त है ये.'

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इससे एक बड़ा सवाल पैदा होता है वो ये कि समाजवादी पार्टी ने इनको 105 सीटों की अनुमति क्यों दी? कुछ सीटों पर तो ये हालत थी कि इनके पास उम्मीदवार ही नहीं थे. कुछ में इनकी उपस्थिति जरा सी ही थी थी.

सिर्फ 70 सीटें

कुल मिला कर 70 सीटें ही अखिलेश इनको दे सकते थे....और वो भी इस कड़े सन्देश के साथ कि लेना हो तो लो वरना जाओ. ऐसा लगा जैसे वे डील कर लेने की जल्दी में थे और वो सामने वाले को ऐसा तोहफा दे गए जिसका उनको पता ही नहीं था क्या करें.

अगर अखिलेश चुनाव हार जाते हैं तो उनको एक मूर्खतापूर्ण गठबंधन के लिए आलोचना का शिकार होना पड़ सकता है और अगर ऐसा होता है तो ये कई कारणों से पूरी तरह उचित भी होगा.

जानकारों के अनुसार कांग्रेस-एसपी गठबंधन जल्दबाजी में किया गया

पहला ये कि उन्होंने वो सीटें कांग्रेस को बांट दीं जो शायद वो खुद या उनकी पार्टी जीत सकती थी. दूसरा ये कि कई सीटों पर उन्होंने अपने उन कार्यकर्ताओं को नाराज कर दिया जहां पर कांग्रेस बिलकुल कोने में थी.

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तीन, इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि कांग्रेस के वोट अपने-आप समाजवादी पार्टी की तरफ चले आएंगे या इसका उलटा हो जाएगा और चौथा ये कि इस व्यवस्था से कांग्रेस को एक बड़ा फायदा हो गया.

अगर कांग्रेस को इन चुनावों में लगभग 40 सीटें भी अगर मिल जाती हैं तो वो कभी भी बीएसपी के साथ जाने का फैसला कर सकती है, खासकर तब जब बीएसपी बहुमत के आंकड़े के करीब हो.

इस प्रकार के गठबंधन की कड़वी सच्चाई अब-तक अखिलेश को साफ समझ आ जानी चाहिए. एक दर्जन से ज्यादा सीटों पर एसपी प्रत्याशी विद्रोही कांग्रेस उम्मीदवारों को टक्कर दे रहे हैं.

गांधी परिवार के गढ़ अमेठी और रायबरेली में 10 में से 4 विधानसभा क्षेत्रों में दोनों दलों के उम्मीदवार एक दूसरे के विरोधी हैं. ऐसा लगता है इसी कारण प्रियंका गांधी ने चुनाव प्रचार के दौरान इन सीटों से दूर रहने का मन बनाया है.

त्रिकोणीय संघर्ष में हार

अगर इस हालत की वजह से त्रिकोणीय संघर्ष में अखिलेश एक दर्जन से ज्यादा सीटें हार जाते हैं तो ये उनके लिए परेशानी पैदा करेंगी. गठबंधन के पीछे मुख्य विचार मुस्लिम वोटों को बनाए रखने का था जो दोनों पक्षों के बीच बंट गए हैं.

अखिलेश यादव ने वे सीटें भी कांग्रेस को दे दीं जहां एसपी प्रत्याशी मजबूत थे

हालांकि, मायावती की बीएसपी भी जोरदार ढंग से मुसलमान वोटरों को खुश करने में लगी थी लेकिन हिंदुओं में इसकी तो उम्मीद बिलकुल भी नहीं थी कि इसका उलटा हो जाए और उनके सभी वोट इकट्ठे हो जाएं.

बीजेपी की रणनीति अपने पक्ष में हिंदू मतों को इकठ्ठा करने की थी ताकि उनके विरोध में हो रहे मुस्लिम वोटों के इकट्ठे होने का जवाब दिया जा सके.साफतौर पर यही सन्देश देने के लिए बीजेपी ने किसी भी मुस्लिम प्रत्याशी को खड़ा नहीं किया.

हमारे पास तो पहले से ही स्टार प्रचारक मौजूद हैं- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह- जो सांप्रदायिक बयानों के हमले से बाज नहीं आते. पार्टी की यही रणनीति 2014 में काम आई थी.

अगर ये गठबंधन अखिलेश के लिए आशाजनक मुस्लिम वोट खींच कर नहीं लाता है तो इस गठजोड़ को बनाने की वजह ही खत्म हो जाती है. कांग्रेस के लिए कोई दूसरा ऐसा जाति समूह नहीं है जिसको वो खासतौर पर अपना कह सके.

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ऊंची जाति के वोट तो काफी पहले से बिखर के अलग-अलग दिशाओं में चले गए हैं. अधिकांश अन्य जाति समूह किसी न किसी पार्टी से जुड़े हुए हैं. इस तरह व्यावहारिक नजरिये से देखें तो समाजवादी पार्टी के लिए कांग्रेस की कीमत जरा सी ही है.

तो सबसे पहली बात तो ये कि आखिर अखिलेश ने ये गठबंधन किया ही क्यों? शायद इसकी वजह चुनाव के पहले परिवार में चल रहा सत्ता संघर्ष और समय की कमी हो सकती है.

मामला जो भी हो चुनाव परिणाम आने के बाद अखिलेश को अपनी पार्टी के लोगों को थोड़ी सफाई देने की जरूरत पड़ सकती है.