पांच राज्यों में हाल ही में संपन्न हुए चुनावों के नतीजे 11 मार्च को घोषित होंगे. मगर लोगों की धड़कन नतीजों से ज्यादा एक्जिट पोल के नतीजों पर टिकी है जिन्हें गुरुवार शाम 5.30 बजे से विभिन्न एजेंसी घोषित करना शुरू करेंगी.
वैसे भी आपको खुद या किसी को भी चुनाव पूर्व सर्वेक्षण याद हैं क्या? उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में फरवरी में हुई वोटिंग से पहले चुनाव आयोग ने एक फरवरी से पहले सर्वेक्षण छापने या दिखाने की डेडलाइन रखी थी.
आप में से कितनों को इनके नतीजे याद हैं? शायद सभी भूल चुके होंगे. उन यादों को ताजा करने के लिए आपको इस लिंक पर जाना चाहिए.
एक दिन भले ही लेट हो गया मगर अब सभी की उत्सुकता और धड़कन आज गुरुवार की घड़ी पर टिकी है. क्योंकि चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश की एक सीट अलापुर और उत्तराखंड की कर्णप्रयाग सीट पर फिर से वोटिंग करवाई है.
इन सीटों पर चुनाव लड़नेवाले समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशियों की मृत्यु होने के कारण दोबारा मतदान करवाया जा रहा है.
मजे की बात तो यह है कि चुनाव पूर्व सर्वेक्षण कितने सही बैठते हैं ये तो समय ही बताएगा मगर पिछले मई 2016 में हुए असम,पश्चिम बंगाल, केरल और पुडुचेरी के चुनाव पूर्व या एक्जिट पोल जमीनी हकीकत से कोसों दूर पाए गए थे.
एजेंसियां हुईं फेल
सभी ने इन एजेंसियों को जमकर कोसा था. यही हाल कमोबेश दिल्ली, बिहार, हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनावों में रहा जहां एजेंसियां जनता का मूड भांप नहीं पाईं थी.
जानकार अब ये पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं उन चुनाव विश्लेषकों में से कौन सबसे ज्यादा सही था.
ये हमेशा ही हुआ है कि चुनाव पूर्व सर्वेक्षण या एक्जिट पोल करने वाली एजेंसियां हमेशा गलत ही साबित हुई हैं. नतीजे आने के बाद तो सभी चुनावी पंडित इसका आकलन हालांकि जरूर करते हैं कि आखिर गलती कहां हुई थी और कोई पार्टी क्यों किसी इलाके में बढ़त नहीं ले सकी.
मगर सर्वे एजेंसियां ऐसी हैं कि एक कान से सुनती हैं और आगे बढ़ जाती हैं. फिर से चुनाव आए और सबसे पहले हाजिरी यहीं लगाती हैं.
भाई आखिर बात बिजनेस की है और जनता भी ऐसी है कि चाहे कितनी बार इनका आकलन गलत साबित हो मगर इन एजेंसियों की भविष्यवाणी सुनने के लिए फिर से बेताब हो जाती हैं.
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चाहे वो चुनाव पूर्व सर्वेक्षण हो या फिर ऐन नतीजे आने से पहले वाला एक्जिट पोल हो. भाई यही तो मजा है प्रजातंत्र की सबसे बड़ी आहुति में रंग जाने का. बाद में भले इनमें भंग पड़ जाए, उसकी न तो कोई चिंता करता है और न ही उसे याद रखता है.
ये सभी सर्वेक्षण एजेंसियां बाजार में डिमांड सप्लाई के नियम के तहत कमाती हैं साथ ही उत्तेजना, जोश के साथ ही जनता में जोश का एक जज्बा में जगाते हैं.
ये बात दूसरी है कि ये सर्वेक्षण चुनाव बाद की बोरियत दूर करने का एक अच्छा साधन बन चुके हैं. साथ ही ये अफवाहों को दूर कर, चुनावी रंग को और मजेदार बना देते हैं.
ये बात भी सही है कि भले ही सारी भविष्यवाणियां गड़बड़ निकले या ये सर्वेक्षण सही आंकड़े न बता पाएं मगर सभी तरह के इन चुनाव पूर्व सर्वेक्षण मोटे तौर पर एक ट्रेंड तो दिमाग में बना ही देते हैं कि नतीजे किस ओर जा रहे हैं.
साथ ही ये तमाम होनेवाली चुनावी बहस में मसालेदार तड़का जरूर लगा देते हैं. जैसे, विभिन्न एजेंसियों की तरफ से उत्तरप्रदेश चुनावों के लिए किया गया चुनाव पूर्व पूर्वानुमान.
चुनाव पूर्वानुमान
उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश में चुनाव पूर्व सर्वेक्षण को ले लीजिए जहां इंडिया टुडे-एक्सिस ने 31 जनवरी को अपने सर्वेक्षण में बीजेपी को 180-191 सीटों की भविष्यवाणी की थी. वहीं समाजवादी पार्टी को 166 से 178 सीटों पर परचम फहराने की बात कही थी और बीएसपी को मात्र 39 से 43 सीटें आने की भविष्यवाणी की थी.
टाइम्स नाऊ-वीएमआर ने भी 31 जनवरी को ही भाजपा के पक्ष में 202 सीटें आने की बात कही थी और समाजवादी-कांग्रेस गठबंधन को 147 और बसपा को सिर्फ 47 सीटें मिलने की संभावना जताई थी.
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एबीपी न्यूज-लोकनीति ने इसके उलट 118-197 सीटें भाजपा को दी वहीं सभी को चौंकाते हुए उसने समाजवादी-कांग्रेस गठबंधन को 187-197 सीटें मिलने की भविष्यवाणी कर डाली. बीएसपी को उसने मात्र 76-86 मिलने की आशंका जताई थी.
वहीं वीडीपी एसोसिएट्स ने बीजेपी के पक्ष में 207 समाजवादी को 128 और बीएसपी को 58 सीटें मिलने बात कही थी.
वीक-हंसा के सर्वेक्षण ने 192 ले 196 सीटें बीजेपी को मिलने की संभावना जताई और वहीं उसके अनुसार समाजवादी-कांग्रेस को 178-182 सीटें ही मिल रही थी और बीएसपी के खाते में सिर्फ 20 से 24 सीटें ही डाली गईं.
इन चुनावों में दिलचस्पी रखने वालों के लिए खैर, नतीजे चाहे कुछ भी हों मगर सभी की आंखें, दिल और दिमाग गुरुवार को शाम 5.30 का इंतजार कर रहे हैं. जब बहुप्रतिक्षित एक्जिट पोल घोषित होने शुरू होंगे.