एक्जिट पोल का बड़ा संदेश क्या है? यही कि यूपी को लेकर असमंजस बरकरार है.
अलग है इस बार का एक्जिट पोल
सिर्फ एक एक्जिट पोल में बीजेपी को भारी जीत मिलने की बात कही गई है जबकि एक में साधारण बहुमत से जीत की भविष्यवाणी है. ज्यादातर एक्जिट पोल ने बीजेपी को चुनावी नतीजों की दौड़ में सबसे आगे बताया है लेकिन साथ में यह भी कहा है कि पार्टी बहुमत के जादुई आंकड़े तक नहीं पहुंच पाएगी.
सबने बीएसपी को फिसड्डी यानी तीसरे स्थान पर रखा है. सो, एक्जिट पोल का फैसला दिलचस्प है क्योंकि पहले के चुनावों में एक से ज्यादा एक्जिट पोल बड़े विश्वास से कहते नजर आते थे कि इस या उस पार्टी को भारी जीत मिलने जा रही है.
तो फिर यूपी को लेकर क्या माना जाए ? सूबे में चुनाव के नतीजों को लेकर शुरुआती तौर पर जो कयास लगाए गए थे उनमें अब भी कोई बदलाव नहीं हुआ है.
समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन के बारे में कहा जा रहा था कि हड़बड़ी के गठजोड़, एंटी-इन्कंबेंसी और पारिवारिक सत्ता-संघर्ष के कारण उसके सीटों की संख्या कम होगी.
बीजेपी के बारे में अनुमान था कि सूबे में उसका प्रदर्शन 2012 के चुनावों की तुलना में बहुत ज्यादा बेहतर रहेगा लेकिन पार्टी को 2014 के लोकसभा चुनावों जैसी सफलता नहीं मिलेगी.
बस बीएसपी का मामला असमंजस में डालने वाला है. बीएसपी को लेकर उम्मीद थी कि कम से कम 100 सीटें तो वह जीत ही लेगी. लेकिन ज्यादातर एक्जिट पोल में बीएसपी को इससे कम सीटें मिलती दिखाई गई हैं.
यूपी में नहीं दिख रही बहुमत की सरकार
इस एक बात को छोड़ दें तो एक्जिट पोल में यूपी को लेकर कोई हैरतअंगेज बात उभरती नहीं दिखती. एक्जिट पोल से अगर किसी पार्टी के भारी जीत की बात निकलती तो निश्चित ही पहले लगाए गए अनुमानों के हिसाब से हैरानी होती.
पंजाब में होगी त्रिशंकु विधानसभा
पंजाब के बारे में शुरु से ही कहा जा रहा था कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच कांटे की टक्कर रहेगी. सत्ताधारी अकाली दल-बीजेपी गठबंधन पंजाब में एक हारी हुई लड़ाई लड़ रहा था क्योंकि उसकी लोकप्रियता का ग्राफ एकदम ही नीचे खिसक आया था.
एक को छोड़कर, बाकी एक्जिट पोल में पंजाब में त्रिशंकु विधानसभा रहने की बात कही गई है. यानी चुनावी दौड़ में आगे चल रही किसी भी पार्टी को 117 सदस्यों वाली पंजाब विधानसभा में स्पष्ट बहुमत नहीं मिलेगा.
चुनाव के नतीजे चाहे जो रहें, आम आदमी पार्टी का उभरना इस सूबे की सबसे बड़ी कहानी है. हां, अकाली दल के बारे में यह अनुमान कि पार्टी सीटों के मामले में दहाई अंकों तक भी मुश्किल से ही पहुंचेगी, आसानी से हजम होने वाली बात नहीं लगती.
अकाली दल का अपना खास जनाधार अब भी मौजूद है, खासकर पंजाब के ग्रामीण इलाकों में और पार्टी ने यहां शायद ही कभी खराब प्रदर्शन किया है. अगर पार्टी ग्रामीण इलाके में भी सीट नहीं बचा पाती तो फिर उसकी चुनावी हार को स्थाई किस्म का माना जायेगा.
गोवा में आप बनेंगी किंगमेकर
गोवा छोटा राज्य है. यहां खंडित जनादेश और त्रिशंकु विधानसभा की आशंका हमेशा रहती है. एक्जिट पोल से भी यही निकलकर आ रहा है कि यह रुझान जारी रहेगा. गोवा में अपनी सियासी पारी शुरु करने वाली आम आदमी पार्टी अगर सीटों के दहाई अंक तक भी पहुंच जाती है, उसे 10 या फिर इससे थोड़ी कम सीटें मिलती हैं तो पार्टी गोवा विधानसभा में किंगमेकर बनकर उभरेगी.
इसलिए, आम आदमी पार्टी के प्रदर्शन को सिर्फ हार-जीत के आंकड़े में सोचना ठीक नहीं. वह सरकार बनाने और सरकार गिराने की हैसियत हासिल कर सकती है. मतलब पंजाब की तरह गोवा में भी आम आदमी पार्टी एक दमदार सियासी ताकत बनकर उभरी है.
उत्तराखंड में होगी बीजेपी-कांग्रेस में कांटे की टक्कर
उत्तराखंड में पार्टियों की हार-जीत के बीच बड़े कम सीटों का फासला होता है. चुनावी होड़ की दो प्रमुख पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस वोटशेयर के मामले में भी एक-दूसरे से छोड़ा ही आगे-पीछे रहती हैं.
एग्जिट पोल की मानें, तो उत्तराखंड में इस बार बीजेपी को साफ बढ़त मिलती दिख रही है. कांग्रेस अगर तकरीबन 10 फीसदी वोटशेयर से पिछड़ती है तो उसके लिए आगे लंबे समय तक भरपाई कर पाना मुश्किल होगा. ऐसे में कांग्रेस के लिए उत्तराखंड एक बड़ी हार कहलाएगा.
लेकिन अगर हार-जीत सीटों के अंतर तक ही सीमित रहती है, तो फिर कांग्रेस आगे वक्त में सूबे में वापसी कर सकती है. बहरहाल, उत्तराखंड को लेकर अभी सीधे-सीधे किसी नतीजे पर पहुंचना ठीक नहीं. कुछ एग्जिट पोल में यह भी कहा गया है कि सूबे में दोनों पार्टियों के बीच कांटे की टक्कर है.
मणिपुर में काबिज होगी बीजेपी?
मणिपुर की तस्वीर साफ उभरकर सामने नहीं आ रही. अलग-अलग एग्जिट पोल में कांग्रेस और बीजेपी की सीटों की संख्या को लेकर बहुत अलग अनुमान लगाए गए हैं. चाहे सीटों की संख्या जितनी रहे लेकिन यह बात तय है कि बीजेपी ने पूर्वोत्तर के एक और राज्य में अपने कदम जमा लिए हैं.
बहरहाल, मतगणना के दिन का इंतजार करना ठीक होगा. आखिर, एग्जिट पोल गलत भी साबित होते हैं!