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यूपी चुनाव 2017: जाटों को नजरअंदाज करना है बीजेपी विरोध की वजह

क्या पश्चिमी यूपी में बीजेपी अब भी एक सम्मानजनक स्थिति पाने में कामयाब होगी?

Akshaya Mishra

'जाट सांप्रदायिक नहीं होते. हम अपने अंदाज में जीते हैं. मुस्लिम जाट हमारे सामाजिक नेटवर्क का हिस्सा हैं. हमारा हिंदुत्व के साथ कभी कुछ लेना-देना नहीं था.' ये कहना है थोड़ा आवेश में आ चुके रमेश मलिक का. 'हमने 2014 में भाजपा को वोट दिया था क्योंकि हमें लगा था कि वो सबसे अच्छा विकल्प है. हम केंद्र और उसको समर्थन देने वाली राज्य सरकार को सजा देना चाहते थे. यही वजह है कि जाट वोट बीजेपी के पाले में चले गए.'

मुजफ्फरनगर के बाहरी इलाके में भारत किसान यूनियन के अध्यक्ष राकेश टिकैत अपने घर पर जाट समुदाय के हिंदुत्व की तरफ रुख करने को लेकर किये गए सवालों का जवाब दे रहे थे और भाजपा के खिलाफ अब अपने गुस्से की वजह समझा रहे थे.


रालोद की ओर बने रह सकता है जाट समुदाय

आगे बढ़ने से पहले पश्चिमी उत्तरप्रदेश के जाटगढ़ के राजनीतिक घटनाक्रम पर एक नजर डालते हैं जो कि ठीक नजर आता है. 2014 के आम चुनावों में बीजेपी के पक्ष में जोरदार मतदान करने वाला समुदाय इस पार्टी से नाराज लगता है. समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जैसी पार्टियां इनके लिए सहज विकल्प नहीं बन सकतीं. इसलिए इन पार्टियों की तुलना में इस समुदाय का एक बड़ा हिस्सा अजित सिंह के राष्ट्रीय लोक दल को वोट देने का मन बना चुका है. इस समुदाय को लगता है कि उसे इस्तेमाल करके किनारे कर दिया गया है.

जाहिर है कि ये समुदाय गन्ना किसानों का बकाया चुकाने या छोटे और सीमान्त किसानों के कृषि ऋण माफ करने के वादों पर बिका नहीं है.

जनवरी में खराद गाँव में हुई जाट महापंचायत ने अपने सदस्यों में नरेंद्र मोदी की पार्टी को वोट करने की मनाही कर दी थी. ऐसा अपना मुख्यमंत्री बनाने के लिए नहीं बल्कि बीजेपी को मजा चखाने के मकसद से किया जा रहा है.

कृषि मुद्दे और जाट राजनीति अलग नहीं

प्रसिद्ध किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत के पुत्र राकेश टिकैत बीजेपी विरोधी मूड को किसानों के मुद्दों से नहीं जोड़ते. वे कहते हैं, 'हम किसानों का एक समूह हैं. हमें यह सुनिश्चित करना है कि जो हमें हर हाल में चाहिए वो हमें आंदोलन से मिले. जाट समुदाय के लोग जिसे भी चाहें उसे वोट करने के लिए आजाद हैं.

हमने किसानों को इसे या उसे वोट करने के लिए कोई निर्देश नहीं दिया है. सब जानते हैं कि बीकेयू जाटभूमि की राजनीति करने लगी है. लेकिन आप कृषि के मुद्दों और जाट राजनीति को अलग-अलग कैसे कर सकते हैं?'

मलिक, जो कि बीकेयू से जुड़े तो हैं पर कोई पदाधिकारी नहीं हैं, उनके पास इसका जवाब है. वो बताते हैं कि इस हालत की जड़ में जाटों का अहम है जिसे अपने लगभग तीन साल के शासनकाल में भाजपा ने बार-बार और बुरी तरह चोट पहुंचाई है.

चौधरी अजीत सिंह इस समुदाय में बहुत लोकप्रिय नहीं हैं. जाटों ने उन्हें 1996 में नकार दिया था और 2014 में भी ऐसा करके उन्हें कोई पछतावा नहीं था. लेकिन जिस तरह से 2014 में अजित सिंह के साथ बीजेपी सरकार ने दिल्ली में बर्ताव किया, वो इस समुदाय के लिए अपमान के घूंट से कम नहीं था.

उस साल सितंबर के आसपास केंद्र सरकार ने उनको अपना सरकारी आवास खाली करने का नोटिस भेजा और साथ ही सरकारी आवास में रहते रहने के लिए उन पर एक जोरदार फाइन भी लगाया. उन्होंने पहले सरकार को लिखकर इस आवास को उनके पिता स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह के स्मारक में बदलने का आग्रह भी किया था. लेकिन उसे नामंजूर कर दिया गया.

उनके हजारों समर्थकों ने उनको बेदखल किये जाने का विरोध भी किया था और मुरादनगर में बीकेयू के प्रदर्शनकारियों ने दिल्ली के लिए वहां से जल-आपूर्ति को बंद कर देने की धमकी भी दी. इसके अलावा अजीत सिंह के समर्थन में उस समय के मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हूडा के आग्रह को भी शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू ने नामंजूर कर दिया था.

'इस घटना ने जाट गौरव को चोट पहुंचाई,' मलिक कहते हैं. लेकिन क्या तब भी जाटों ने हरियाणा में बीजेपी को वोट नहीं दिया? 'हां, लेकिन यह बस एक शुरुआत थी. जाट आरक्षण मामले पर बीजेपी की प्रतिकिया ने जाटों को एक बार फिर भड़का दिया.'

इस मसले पर वादा करने के बाद बीजेपी ने इसके अमल पर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. जाट आंदोलन हिंसक हो गया और कई नौजवानों को गिरफ्तार भी किया गया था. आंदोलनकारियों पर महिलाओं के साथ छेड़छाड़ के आरोप भी लगे थे.

क्या जाट इतना गिर गए हैं? वे थोड़े अक्खड़ और उग्र हो सकते हैं लेकिन फिर भी उन्हें अपनी प्रतिष्ठा का पूरा एहसास होता है. 'इस बार पच्चासी प्रतिशत जाट बीजेपी के खिलाफ वोट देंगे.' राकेश इस संख्या से तो सहमत नहीं हैं लेकिन जाट समुदाय में गुस्से की वजह पर कतई इनकार नहीं करते.

'बीजेपी को अब भी अच्छी तादाद में वोट मिल सकते हैं'

मुजफ्फरनगर में अपने घर पर फ़र्स्टपोस्ट से बात करते हुए किसान कल्याण संगठन के मुखिया अशोक बालियान जो कि जाटभूमि गढ़ की राजनीति से अच्छी तरह वाकिफ हैं, इस विषय पर अपनी सहमति जताते हैं. 'हरियाणा और उत्तर प्रदेश में जाट अलग-अलग नहीं हैं. आरक्षण और अजित सिंह के अपमान पर दोनों ही एक जैसी सोच रखते हैं. ये सही है कि वे बीजेपी से खुश नहीं हैं लेकिन फिर भी भाजपा को अच्छे वोट मिलेंगे. इस मामले में जाट बंटे हुए हैं.'

पड़ताल आगे बढ़ती है और वो मानते हैं कि 2013 के दंगों के कारण क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था का यहां से हटाव जाटों की नाराजगी का कारण है. खेतों में काम करने वाले मुस्लिम मजदूर जा चुके हैं. अब किसानों को ज्यादा महंगे मजदूर मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और बिहार से लाने पड़ते हैं. 'वैसे ये आज के बीजेपी विरोधी मूड की बड़ी वजह नहीं है.'

ये पूछने पर कि क्या इस स्थिति का फायदा आरएलडी को मिलेगा, वो साफ इनकार कर देते हैं. 'क्या जाट वोट उनके लिए केवल सीटें ही सुनिश्चित कर सकते हैं? उनके साथ और कौन है? मुसलमान या तो समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन की तरफ गए हैं या बसपा में चले गए हैं. दलित बसपा के साथ हैं. क्या अजित सिंह अपने दम पर जीत सकते हैं?'

ये एक सही सवाल है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या बीजेपी अब भी एक सम्मानजनक स्थिति पाने में कामयाब होगी? 'सभी समीकरण रातों-रात बदल सकते हैं,' मलिक कहते हैं. बीजेपी यही उम्मीद करती है कि ऐसा हो जाएगा.