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यूपी चुनाव 2017: बहुत कठिन है डगर एग्जिट पोल की...

प्रश्नावलियों के आधार पर जनता के मूड और मन को समझना इस बार कठिन ही नहीं असंभव हो गया है

Badri Narayan

इस बार के यूपी विधानसभा चुनाव में किसी भी तरह का आकलन करना या अनुमान लगाना बेहद मुश्किल हो गया है. इसकी मुख्य वजह यह है कि यूपी की जनता खासतौर से गांव की जनता अपने मन के राज को खुलकर रख नहीं रही है. वह ठीक से बता नहीं रही है कि वह किसको वोट देना चाहती है और वह अपने झुकाव को भी स्पष्ट नहीं कर रही है.

यूपी के कुछ गांवों में घूमते हुए मैंने पाया कि गांव की जनता जानबूझकर पत्रकारों, अध्येताओं और राजनीतिक विश्लेषकों को कंफ्यूज कर रही है. कंफ्यूज करने की प्रवृत्ति जनता के भीतर पहले भी थी लेकिन इस प्रवृत्ति में भी पहले कुछ संकेत मिल जाते थे.


लेकिन इस बार जनता की बातों से ऐसा कोई संकेत नहीं दिख रहा जिससे कोई निष्कर्ष निकाला जा सके. इस बार मैंने जो देखा वह यह था कि जनता से अगर आप पूर्व दिशा के बारे में पूछें तो वह पश्चिम की ओर इशारा कर दे रही है. उल्टा बोलने की आदत जनता के भीतर पहले भी थी लेकिन इस बार लोग उल्टा का भी उल्टा कह रहे हैं.

आप जिसे कहें उसी को वोट दे देंगे?

यूपी के बरेठी गांव और भोर गांव में मैंने ऐसा ही देखा. बरेठी गांव इलाहाबाद से करीब 20-25 किमी दूर है. इस गांव में ऊंची, मध्यवर्गीय और दलित तीनों जातियों के लोग रहते थे.

दूसरा गांव भोर भदोही के पास मिर्जामुराद थाने के बगल में है. इस गांव में ऊंची जातियों के अलावा नाई, काछी, बिंद, पाल, भड़भूंजा जैसी अति पिछड़ी जातियां रहती हैं. यहां दलित आबादी नहीं के बराबर है.

फूलमती, तस्वीर सौजन्य: बद्री नारायण

यहां कि फूलमती से जब मैंने पूछा कि आप यहां चुनाव में किसको वोट देंगी? तो उन्होंने बहुत ही मासूमियत से कहा कि आप जिसे कहें उसे ही वोट दे दें. हम लोगों की कोई पार्टी नहीं है.

यह जबाब पूरी तरह से कंफ्यूज करने वाली स्थिति थी. इसकी वजह यह है कि मुझे भी पता था कि मेरे कहने पर वो वोट नहीं देने वाली है और उसे भी पता था कि मेरे कहने पर वो वोट नहीं देने वाली.

फिर मैंने बातचीत में पूछा कि बीजेपी के बारे में आप क्या सोचती हैं? तो उसने कहा कि बीजेपी अच्छा लड़ रही है. फिर मैंने बीएसपी के बारे में पूछा तो उसके बारे में भी उसने कहा कि वह भी बहुत अच्छा लड़ रही है.

हर पार्टी को एक-एक वोट?

इसी गांव की लक्ष्मी पाल बिरादरी की हैं. उम्र 40 साल के आसपास है. उसके परिवार में पति और दो बच्चे हैं. उसके पास थोड़े से खेत भी हैं. अपने और दूसरे के खेत में कामकाज करके उसका गुजर बसर चलता है.

उनसे जब मैंने पूछा कि आप किसको वोट देंगी? तो उन्होंने कहा कि हमारे परिवार में ससुर को लेकर 5 लोग हैं और हम लोग सोच रहे हैं कि हर पार्टी को एक-एक वोट दें दे.

लक्ष्मी पाल; तस्वीर सौजन्य: बद्री नारायण

बरेठी गांव के पप्पू दलित जाति के युवा हैं. उनकी उम्र 30 साल के आसपास है. उनसे जब मैंने पूछा किनको आप वोट देंगे हैं या आप इस चुनाव में किसको अच्छा मानते हैं. तो उन्होंने हंसते हुए कहा, ‘भैया सभए अच्छा हैन.’ वोट किसको देंगे पूछने पर कहा कि हम अंतिम दिन इस पर विचार करेंगे.

ऐसे में आप खुद सोच सकते हैं इस चुनाव में सेफोलॉजिस्ट, एग्जिट पोल करने वालों और राजनीतिक विश्लेषकों के लिए कोई अनुमान लगाना कितना कठिन हो रहा है.

इस बार के यूपी चुनाव में किसी भी क्वेश्चनेयर यानी प्रश्नावलियों के आधार पर जनता के मूड और मन को समझना इस बार कठिन ही नहीं असंभव हो गया है.

खासकर तब जब हमारे जैसे लंबे इंटरव्यू करने वालों को जनता का मूड भांपने में मुश्किल आ रही है तो तुरत-फुरत में एग्जिट पोल करने वालों के लिए कितनी मुश्किल आ सकती है.