view all

यूपी चुनाव 2017: 'यूपी के लड़कों' का दम फूल रहा है

परिवार में झगड़ा सामने नहीं आता तो शायद गठबंधन पर फैसला नहीं हुआ होता : अखिलेश यादव

Sitesh Dwivedi

चौथे चरण से पहले ही 'यूपी के लड़कों' का दम फूलने लगा है. राजनीतिक गलियारों में जिस 'साथ' के कसीदे पढ़े जा रहे हैं, वह जमीन पर बेतरतीबी से बिखर रहा है.

कहते हैं, चावल कितने पके हैं यह हांडी के एक दाने की परख से जाना जा सकता है. लेकिन दाल के लिए ऐसा कोई फार्मूला नहीं है. उत्तर प्रदेश में सपा-कांग्रेस गठबंधन की स्थिति का आकलन कुछ ऐसा ही है.


यूपी के मुख्यमंत्री और एसपी मुखिया अखिलेश यादव ने कहा है कि 'अगर परिवार में झगड़ा सामने नहीं आता तो शायद गठबंधन पर फैसला नहीं हुआ होता'. वहीं अमेठी, रायबरेली में मुंह मांगी सीट पाने के बाद भी दुविधा ग्रस्त कांग्रेस नेतृत्व प्रचार में हिचक रहा है.

जबकि, उच्चतम न्यायलय के आदेश के बाद बलात्कार को लेकर घिरे एसपी सरकार में मंत्री गायत्री प्रजापति के लिए अखिलेश की अमेठी रैली भी बहुत कुछ कहती है. दरअसल, मोल-तोल की मेज पर अमेठी रायबरेली की आठ सीट कांग्रेस के हाथ हार चुकी सपा, भविष्य की राजनीति के मद्देनजर जमीन पर इसे किसी भी कीमत पर पाना चाह रही है. जबकि, हालात को समझ चुका कांग्रेस नेतृत्व प्रतिष्ठा बचाने के लिए मैदान में उतरने से कतरा रहा है.

लड़कों का दम फूल रहा है

प्रचार के मोर्चे पर 'यूपी के लड़कों के दम' की दाल भले गलती दिख रही हो, लेकिन जमीन पर यह साथ 'अधकचरा और संदेहों' से भरा है. इसकी बानगी 'अमेठी और रायबरेली' में बने माहौल से समझी जा सकती है.

गांधी परिवार के लिए बेहद अहम इस इलाके की दस सीटों पर गठबंधन की 'गांठे' इतनी ज्यादा हैं कि विपक्ष से लड़ने की जगह दोनों दल अपनी पीठ बचा रहे हैं.

शायद यही वजह है, कांग्रेस की तरफ से 'मां और भाई' की सीटों की निगहबानी करती रही प्रियंका गांधी वाड्रा भी इस बार दूरी बना कर चल रही हैं. जबकि, अपने संसदीय क्षेत्र रायबरेली में सोनिया गांधी के न आने को लेकर भी कांग्रेस जन असहज हैं.

हालांकि, कांग्रेस अध्यक्ष की संसदीय सीट पर यहां की बिटिया मानी जाने वाली प्रियंका कांग्रेस के लिए प्रचार कर गई है, लेकिन खुद कांग्रेस के कट्टर समर्थक ही इस बार उनके 'अंदाज' को नाकाफी बता रहे हैं.

दल मिले दिल नहीं

सरेनी विधानसभा के रामपाल प्रजापति कहते हैं, 'का हम बिटिया का सुना नाइ है, इ बार ऊ बात नाहीं रही, जउन सपा कै रही है एते उइ खुस नाइ है.' रायबरेली में सपा और कांग्रेस दोनों के समर्थक बेहद तीखे होकर एक दूसरे का विरोध करते हैं.

ऊंचाहार में सपा समर्थक धर्मपाल कहते हैं, 'कांग्रेस तीसरे नंबर की पार्टी है, जो ई अबहीव बैठ जाए तो सपा क जीत पक्की है.' दोनों दलों के समर्थक इस बात पर भी चिंता जताते हैं, कि इस आपसी जोर आजमाइश में बीजेपी और बीएसपी में से भी कोई बाजी मार सकता है.

दरअसल, राज्य में दूसरी जगहों से अलग यहां का मुस्लिम मतदाता सपा के बजाय कांग्रेस के साथ खड़ा है, लेकिन कांग्रेस के पास दूसरा कोई बड़ा वर्ग नहीं है, जो इसे जीत की दहलीज पर ले जा सके. वहीं सपा के साथ यादव वोट एकजुट है, लेकिन उसके साथ दूसरे वर्गों में 'छुटपुट' समर्थन के अलावा कुछ नहीं है. ऐसे में कार्यकर्ताओं की आशंका सही दिख भी रही है.

गौरतलब है कि, रायबरेली की सरेनी विधानसभा सीट पर सपा के देवेंद्र सिंह और कांग्रेस के अशोक सिंह चुनाव मैदान में हैं. वहीं ऊंचाहार से सपा के मनोज पांडेय और कांग्रेस के अजय पाल सिंह आमने-सामने हैं.

कहने को तो अमेठी-रायबरेली की चार सीटों पर ही सपा और कांग्रेस की दोस्ताना (दोनों दलों के बड़े नेता आफ द रिकॉर्ड ऐसा कहते हैं) लड़ाई है. लेकिन बाकी छह सीटों पर हालात ऐसे ही हैं. अंतर सिर्फ इतना है कि कांग्रेस हिस्से में आई सीटों पर पार्टी सिम्बल के साथ मैदान में है, जबकि सपा समर्थित पार्टी के अंदरखाने से मिल रहे सहयोग की ताकत पर.

कांग्रेस के हाथ को दबाए रखने की कोशिश

परिवार में विघटन के कारण 'हाथ का साथ' पकड़ने की मजबूरी बयां कर चुके सपा मुखिया अखिलेश 2019 में ऐसी कोई मजबूरी ढोना नहीं चाहते. दोनों दलों के लोकसभा को लेकर संभावित गठजोड़ के मद्देनजर सपा मुखिया गांधी परिवार की इन सीटों पर अपना प्रभुत्व बनाये रखना चाहते हैं.

यही, कारण था कि कानून व्यवस्था को लेकर घिरे अखिलेश, गायत्री प्रजापति के लिए वोट मांगने गए. जबकि, दो दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने प्रजापति के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज करने को कहा था.

अमेठी-रायबरेली में सपा ने अपनी पूरी ताकत अपने प्रत्याशियों के पीछे लगा दी है. ऐसे में समझौते में आई सीटों पर कांग्रेस की जीत पर सवाल तो है ही, साथ ही बीजेपी की बढ़त को लेकर भी कांग्रेस के रणनीतिकार चिंता में हैं.

( लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं )