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यूपी चुनाव 2017: क्या मायावती अपनी जमीन बचा पाएंगी...

मायावती ने यूपी के भीतर दलित-मुस्लिम गठबंधन बनाने की इस बार पूरी कोशिश की है

Amitesh

पिछले लोकसभा चुनाव में अपना खाता तक नहीं खोल सकने वाली बीएसपी के लिए इस बार का विधानसभा चुनाव काफी अहम माना जा रहा है. एक और हार बीएसपी के लिए भारी पड़ सकता है. जहां से फिर से पार्टी को खड़ा करना काफी मुश्किल होगा.

2012 में विधानसभा चुनाव की हार के बाद 2017 विधानसभा चुनाव की हार बीएसपी को इस कदर तोड़ देगी जहां से पार्टी को एकजुट कर आगे की तरफ कदम बढ़ाना काफी मुश्किल होगा.


बीएसपी सुप्रीमो मायावती अभी यूपी के भीतर दलित समुदाय की एकछत्र नेता हैं लेकिन, इस बार की हार यूपी के भीतर दलित समुदाय की एकमात्र चहेती नेता वाली उनकी छवि को ठेस पहुंचा सकती है.

लेकिन, इस बार विधानसभा चुनाव में मायावती की जीत उन्हें एक राष्ट्रीय स्तर पर भी बड़ी ताकत के रूप में फिर से स्थापित कर देगी. 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले यूपी और यूपी के बाहर भी मायावती की ताकत को नजरअंदाज करना मुश्किल होगा.

क्या रंग लाएगी दलित-मुस्लिम गठजोड़?

विधानसभा की मिली जीत उन सभी चुनाव विश्लेषकों के उपर भी सवाल खड़े करेगी जो अबतक इस चुनाव में मायावती को कमतर आंक रहे थे. मायावती ये साबित करने में सफल हो जाएंगी कि उन्हें चुनाव जीतने के लिए न ही चुनाव विश्लेषकों की और न ही किसी मीडिया के लोगों की जरूरत है.

बीएसपी के समर्थक पहले से ही इस बात को कहते रहे हैं कि उनका वोटर साइलेंट रहता है लिहाजा उनका आकलन करना मुश्किल होता है.

गौरतलब है कि मायावती की तरफ से इस बार चुनाव में अपनी तरफ से हर वो कदम उठाने की कोशिश हुई है जिससे यूपी की सत्ता उनके हाथों में आ सके.

मायावती ने यूपी के भीतर दलित-मुस्लिम गठबंधन बनाने की इस बार पूरी कोशिश की है. इसके पहले माना यही जाता रहा है कि मुस्लिम यूपी के भीतर समाजवादी पार्टी के ही साथ खड़े रहते हैं. लेकिन, मायावती ने इस बार विधानसभा चुनाव के वक्त 99 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देकर यादव-मुस्लिम गठजोड़ को तोड़ने की पूरी कोशिश की है.

यूपी के भीतर 38 जिलों और 27 लोकसभा की सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की तादाद ज्यादा है. जबकि 200 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम आबादी प्रभावी भूमिका है. इन सीटों पर 10 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं. इसके अलावा यूपी की करीब 125 विधानसभा सीटों पर 20 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं.

इस बार अगर मायावती चुनाव जीतती हैं तो उनकी दलित-मुस्लिम गठजोड़ की कोशिश रंग लाती नजर आएगी.