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उमा भारती भीष्म की प्रतिज्ञा टूटी: गंगा सफाई मंत्रालय छिनने पर नहीं लिया राजनीति से संन्यास

उमा भारती से विभाग लिए जाने से गंगा से जुड़ी सफाई की बात फिर एक मंत्री के कार्यकाल में अधूरी ही रह गई

Kinshuk Praval

पुराण कहते हैं कि धरती पर गंगा को भगीरथ उतार कर लाए थे. वर्तमान में गंगा की बदहाली को देखने के बाद उम्मीद जगी थी कि एक संन्यासिन गंगा को मोक्ष दिला सकेगी. लेकिन गंगा की निर्मलता पर लगे सदियों पुराने ताले भी ये साध्वी नहीं तोड़ सकी. जिस वजह से गंगा की स्वच्छता की जिम्मेदारी अब दूसरे भगीरथ को सौंप दी गई है.

केंद्रीय जल संसाधन और गंगा सफाई मामलों की मंत्री रहीं उमा भारती भारती ने गंगा की स्वच्छता को लेकर कभी भीष्म प्रतिज्ञा की थी लेकिन अब वो नमामि गंगा प्रोजेक्ट से हटा दी गई हैं. उमा अब केवल पेयजल और सैनिटेशन मंत्रालय देखेंगीं.


सवाल ये है कि आखिर इस संन्यासिन की भीष्म प्रतिज्ञा का क्या होगा? उन्होंने कसम खाई थी कि 'गंगा साफ नहीं करवा पाई तो प्राण त्‍याग दूंगी.'

जाहिर तौर पर गंगा के प्रति उमा के जज्बे को देखने के बाद ही पीएम मोदी ने उन्हें गंगा का प्रोजेक्ट सौंपा था.

गंगा की सफाई को लेकर प्रधानमंत्री मोदी बेहद गंभीर हैं. बनारस में जब वो चुनाव प्रचार की शुरुआत करने सबसे पहले आए थे तब उन्होंने कहा था कि ‘मां गंगे ने बुलाया है’. मोदी गंगा की स्वच्छता मिशन को लेकर भावुक हुए थे. नमामि गंगा प्रोजेक्ट से उनकी भावनाएं भी जुड़ी हुई हैं. उन्हें लगा कि एक संन्यासिन गंगा के मोक्ष के लिये सारी बाधाओं के बावजूद प्रयास करेगी. लेकिन मंत्रियों के रिपोर्ट कार्ड का फीडबैक उमा के खिलाफ ही गया. जिसकी वजह से मोदी मंत्रिमंडल के तीसरे विस्तार से पहले जब मंत्रियों के इस्तीफे की छड़ी लगी तो उसमें एक बड़ा नाम उमा का भी था. लेकिन उमा भारती से जब इस्तीफे पर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि ‘न तो उन्होंने कुछ सुना है और न ही उन्हें इस बारे में कुछ कहना है.’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है वाराणसी (फोटो: फेसबुक से साभार)

उमा भारती इस्तीफा मांगने की वजह से नाराज थीं

हालांकि इस्तीफे के पीछे उमा भारती के स्वास्थ्य कारणों को एक वजह बताया जा रहा था. लेकिन अगर ऐसा होता तो उमा भारती के इस्तीफे की खबर अचानक से बदल नहीं जाती. शपथ ग्रहण समारोह में उमा भारती का शामिल न होना इशारा करता है कि उमा भारती इस्तीफा मांगने की वजह से नाराज थीं. हालांकि शपथ ग्रहण समारोह में अपनी गैर-मौजूदगी को उन्होने खुद के निर्वाचन क्षेत्र में होने की मजबूरी बताया.

लेकिन अगर वाकई उमा के खराब स्वास्थ्य की वजह से उनसे गंगा से जुड़ा मंत्रालय लिया गया तो उन्हें फिर पेयजल-सैनिटेशन मंत्रालय देने के पीछे मोदी सरकार की क्या मजबूरी रही? माना जा रहा है कि दो दिन में उमा भारती ने अपने ऊपर आए इस्तीफे के दबाव को मोदी सरकार पर ही वापस डाल दिया. नतीजतन उनके इस्तीफे की खबरों के बावजूद वो कैबिनेट में बनी रहीं और उनके विभाग को बदल दिया गया.

ये तो हुई सियासी बात लेकिन गंगा से जुड़ी सफाई की बात फिर एक मंत्री के कार्यकाल में अधूरी ही रह गई.

उमा ने कहा था कि ‘मां गंगा के साथ करोड़ों भारतीयों के साथ मेरी भी आस्था जुड़ी है. मोदी सरकार आने के बाद मां गंगा का निर्मलीकरण युद्ध स्‍तर पर किया जा रहा है. गंगा के पानी को निर्मल बनाना मेरे जीवन का लक्ष्य है. यदि मेरे कार्यकाल में गंगा का पानी निर्मल नहीं हुआ तो मैं राजनीति से संन्यास ले लूंगी.'

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार अपने मंत्रिमंडल का विस्तार और फेरबदल किया है (फोटो: पीटीआई)

जाहिर तौर पर उमा भारती ने ये बयान मंत्रालय के पांच साल के पूर्ण कार्यकाल को सोच कर दिया होगा. लेकिन तीन साल में नमामि गंगे प्रोजेक्ट की रफ्तार ही उमा भारती का फीडबैक सकारात्मक नहीं दे सका. इस वजह से पार्टी ने उन्हें दो साल पहले ही नमामि प्रोजेक्ट से हटा दिया. साध्वी ने राजनीति से संन्यास तो नहीं लिया लेकिन अब नई जिम्मेदारी उनके ऊपर है.

मोदी सरकार को एक दूसरे भगीरथ की तलाश है

वहीं, अविरल और निर्मल कहलाने वाली गंगा आज भी गंदगी के आगोश में बहने को मजबूर है. अब मोदी सरकार को एक दूसरे भगीरथ की तलाश है जो नमामि गंगे के प्रोजेक्ट को पूरा कर सके ताकि मोदी फिर कह सकें कि ‘मां गंगे ने बुलाया है’. इस बार नितिन गडकरी को नमामि प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी मिली है.

गडकरी अपने काम को पूरा करने की रफ्तार के लिए जाने जाते हैं. अब गडकरी के सामने वो प्रोजेक्ट है जो अब तक कई सरकारों, प्रधानमंत्रियों और मंत्रियों के दौर को देख चुका है. वो गंगा है जिसमें आस्था और कचरा एक साथ बहता है. गडकरी को उसी गंगा को स्वच्छ कर आस्था को गहरा करना है.