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क्यों खत्म हो रहा है ‘कुमार’ का आम आदमी पार्टी से ‘विश्वास’

कुमार विश्वास के साथ इतने विधायक हैं जो केजरीवाल का भी गणित खराब कर सकते हैं.

Amitesh

मान मनौव्वल होता रहा, मनुहार की कोशिश मनीष सिसौदिया तक ने की, इस विश्वास के साथ कि कुमार मान जाएंगे. पीएसी की बैठक में शिरकत जरूर करेंगे. लेकिन, कोमल कवि हृदय कुमार विश्वास इतने कठोर हो जाएंगे इसका एहसास शायद केजरीवाल को भी नहीं रहा होगा.

यूं तो पार्टी के भीतर कुमार और केजरीवाल की कशमकश पहले से ही चल रही है. लेकिन, अब लगता है बवाल ज्यादा बड़ा हो गया है. वरना न कुमार विश्वास पीएसी की बैठक का बहिष्कार करते और न ही केजरीवाल कुमार को मनाने के लिए अमानतुल्लाह की बलि चढाने से चूकते.


काफी उहापोह के बाद जब आम आदमी पार्टी की पीएसी की बैठक खत्म हुई तो दो बातें निकलकर सामने आईं. पहली ये कि कुमार विश्वास पर बीजेपी-आरएसएस से मिलकर पार्टी तोड़ने का आरोप लगाने वाले अमानतुल्लाह का पीएसी से इस्तीफा हो गया, लेकिन, पार्टी से बाहर निकालने की मांग को पीएसी ने फिलहाल मानने से इनकार कर दिया.

पीएसी की बैठक से दूसरा संदेश साफ था कुमार विश्वास के पार्टी फोरम से बाहर बयान देने और सोशल मीडिया के जरिए वीडियो में अपनी बात रखने को भी लेकर नाराजगी जताई गई. बैठक के बाद दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया ने भी साफ कहा कि पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पार्टी फोरम के बाहर बयान देने से काफी आहत हैं.

मतलब साफ है कि कुमार विश्वास और उनके समर्थक विधायक जिस तरीके से एमसीडी चुनाव में हार के बाद से ही ऐसी बातें कह रहे हैं वो आप आलाकमान की आंखों में चुभने वाली हैं.

लेकिन, आप के भीतर अचानक इस कदर बवाल नहीं मचा है, बल्कि, यह पहले से ही था. अंदर-अंदर ही चिंगारी सुलग रही थी जो अब जाकर खुलकर सामने आ गई है.

लोकसभा चुनाव के वक्त ही कुमार विश्वास और केजरीवाल के बीच तनातनी दिख रही थी. राहुल गांधी के खिलाफ अमेठी जाकर कुमार विश्वास ने मोर्चा खोला था. लेकिन अमेठी की हार के बाद केजरीवाल और विश्वास के बीच सबकुछ ठीक नहीं रहा. शायद कुमार विश्वास को इस बात का एहसास होता रहा कि पार्टी के भीतर उनको वो अहमियत नहीं मिल रही है जिसके वो हकदार हैं.

विधानसभा चुनाव के वक्त अरविंद केजरीवाल की अगुआई में दिल्ली के भीतर आप को अप्रत्याशित सफलता मिली. उसके बाद केजरीवाल का कद आप के भीतर और बड़ा हो गया. लेकिन, केजरीवाल ने यहीं पर गलती कर दी. केजरीवाल अपनी कोर टीम के लोगों के बीच उलझकर रह गए.

70 में से 67 सीटें जीतने वाली पार्टी के अधिकांश विधायक पार्टी के भीतर हाशिए पर चले गए. उपेक्षित महसूस कर रहे पार्टी के इन सभी विधायकों को इस बीच कुमार विश्वास का सहारा मिला. केजरीवाल सत्ता  के नशे में चूर कभी एलजी से तो कभी केंद्र सरकार से टकराते रहे. उधर, पार्टी के भीतर के असंतुष्ट और नाराज विधायक और नेता-कार्यकर्ता सभी कुमार विश्वास के करीब होते चले गए.

योगेंद्र यादव के फेसबुक वाल से

योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण सरीखे पार्टी के कोर टीम के लोगों को बाहर करने के बाद आप के असंतुष्ट खेमा पूरी तरह से कुमार विश्वास के साथ जुड़ता चला गया. इस तरह कुमार विश्वास आप के भीतर मजबूत भी होते चले गए और पार्टी के भीतर उनके समर्थकों की तादाद भी बढ़ती चली गई.

लेकिन, इन सबसे बेपरवाह अरविंद केजरीवाल को लग रहा था कि 70 में से 67 सीटें जीतने के बाद न उनकी सरकार पर कोई खतरा है और न ही पार्टी के भीतर से उनको किसी तरह की कोई चुनौती  मिल सकती है. अगर मिलेगी तो उनका भी हश्र वही होगा जो योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण सरीखे नेताओं का होगा.

इस दौर में अरविंद केजरीवाल दिल्ली के बजाए पंजाब और गोवा में ज्यादा दिखते नजर आए. दिल्ली के बाहर आप को खड़ा करने की कोशिश में लगे अरविंद केजरीवाल को इस बात की उम्मीद थी कि पंजाब में उनकी सरकार बनेगी. इस दौरान पूरे चुनाव कैंपेन से आप के स्टार प्रचारक कुमार विश्वास गायब रहे.

पंजाब में विपक्ष में बैठना पड़ा और गोवा में केजरीवाल का खाता तक नहीं खुला. रही-सही कसर एसीडी चुनाव ने पूरी कर दी. दिल्ली में इतने बड़े बहुमत से सरकार चला रही आप को दिल्ली की जनता ने नकार दिया, तो आप के भीतर की आग सामने आ गई.

कुमार विश्वास के भीतर का गुब्बार सामने आ गया और पार्टी के भीतर के वे सभी नाखुश लोग भी सामने आ गए जो अबतक कुछ बोलने की हिमाकत नहीं कर पा रहे थे. कुमार विश्वास की नसीहत और उनके सवाल से पार्टी के भीतर बवाल बढ़ा जिसका नतीजा सामने है.

कुमार विश्वास और उनके समर्थक विधायक अभी भी कुमार पर आरोप लगाने वाले आप विधायक अमानतुल्लाह को पार्टी से बाहर करने की मांग पर अड़े हैं. ऐसे में पार्टी के भीतर की चिंगारी शांत होती नहीं दिख रही है.

लेकिन, मजे की बात ये है कि योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण सरीखे पार्टी के बड़े नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाने वाले अरविंद केजरीवाल कुमार विश्वास के खिलाफ ऐसा करने की हिमाकत नहीं कर पा रहे हैं और ऐसा कर पाना आसान भी नहीं होगा. क्योंकि, कुमार विश्वास के साथ इतने विधायक हैं जो केजरीवाल का भी गणित खराब कर सकते हैं.