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नॉर्थ ईस्ट में कांग्रेस के सामने बीजेपी को रोकने की चुनौती

त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय में बीफ एक समान मुद्दा है. जो कांग्रेस के पक्ष में जा सकता है. तीनों राज्यों में कांग्रेस के नेताओं को लग रहा है कि ये मुददा बीजेपी पर भारी पड़ सकता है

Syed Mojiz Imam

पूर्वोत्तर कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है. लेकिन अब ऐसा नहीं है. असम, अरूणाचल प्रदेश, मणिपुर में बीजेपी की सरकार है. नागालैंड में बीजेपी समर्थित नागा पीपुल्स फ्रंट की सरकार चल रही है. फरवरी में त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय में चुनाव होने वाले है. इन तीन राज्यों में सिर्फ मेघालय में कांग्रेस की सरकार है. मुकुल संगमा मुख्यमंत्री है. त्रिपुरा में सीपीएम की सरकार है. नागालैंड में बीजेपी समर्थित एनपीएफ सरकार में है.

कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि ‘कांग्रेस के वर्कर उत्साहित है, कांग्रेस जनता के मुद्दों पर चुनाव लड़ेगी और दावा किया कि तीनों राज्यो में कांग्रेस की सरकार बनेगी.’ हालांकि इन तीन राज्यों में बीफ को लेकर एक समान मुद्दा है. जो कांग्रेस के पक्ष में जा सकता है. तीनों राज्यों में कांग्रेस के नेताओं को लग रहा है कि ये मुददा बीजेपी पर भारी पड़ सकता है. हालांकि बीफ का मुद्दा कितना फायदा पहुंचाएगा, ये कांग्रेस के लिए भी बताना मुश्किल है.


कांग्रेस के सचिव के. जयकुमार कहते है कि ‘बीजेपी की दोहरी नीति है. नॉर्थ ईस्ट में चुनाव जीतने के लिए बीफ का समर्थन करते हैं तो मेनलैंड में विरोध.’ हालाकिं बीजेपी ने सारा ध्यान मेघालय में लगा रखा है. जहां कांग्रेस की वर्तमान में सरकार है. मेघालय में कांग्रेस को छोडकर कई विधायक बीजेपी में शामिल हुए. तो कई विधायको ने नेशनल पीपुल्स पार्टी में का दामन थाम लिया है. जिसके मुखिया कॉनराड संगमा हैं.

हालांकि एनपीपी बीजेपी के साथ एनडीए में है और बीजेपी की अगुवाई वाली नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (नीडा) का हिस्सा है. लेकिन मेघालय में दोनो पार्टियों के बीच अभी समझौता नहीं हुआ है. वहीं कांग्रेस मेघालय में अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है.

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मेघालय में कांग्रेस एकला चलो

मेघालय में कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ने जा रही है. कांग्रेस के सामने किला बचाने की चुनौती है. मेघालय में कांग्रेस के विधायक पार्टी छोड रहे है. प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री डी. डी. लंपाग ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है. हालांकि उम्र का हवाला देकर लपांग नें चुनाव में न जाने का मन बनाया है. लेकिन माहौल कांग्रेस के खिलाफ लग रहा है.

कांग्रेस ने तय किया है कि वर्तमान मुख्यमंत्री मुकुल संगमा की अगुवाई में ही चुनाव लड़ा जाएगा. कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री विंसेंट पाला ने कहा कि ‘ऐसा नहीं है कि लोग सिर्फ कांग्रेस छोड़कर जा रहे हैं बल्कि कांग्रेस में आने वालों की कमी नहीं है. कांग्रेस में लोगों के आने की लाइन लगी हुई है.’

लेकिन एनपीपी का बीजेपी के साथ अन्दरूनी तौर पर रणनीतिक  समझौता हो सकता है. जिसकी काट कांग्रेस को तलाश करनी पड़ सकती है. इसके अलावा  यूडीपी एचएसपीडीपी और गारो नेशनल कांउसिल के बीच समझौते का नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ सकता है. क्योकि ये तीनों दल कांग्रेस के क्रिश्चियन वोट में सेंधमारी कर सकते है.

नागालैंड में नागा फ्रेमवर्क एग्रीमेंट पर होगा सवाल

नागालैंड में कांग्रेस के सामने रास्ता आसान नही हैं. बीजेपी ने यहां तरीके से पार्टी को खड़ा कर दिया है. एनपीएफ की सरकार को बीजेपी का समर्थन है. बीजेपी मजबूत स्थिति में है. कांग्रेस यहां पर करप्शन को मुद्दा बनाएगी. कांग्रेस नागा फ्रेमवर्क एग्रीमेंट पर जनता के सामने जाएगी. पार्टी बीजेपी से सवाल खड़ा करेगी कि आखिर इसको लेकर बीजेपी क्यों खामोश है.

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केंद्र सरकार और एनएससीएन आईएम के बीच दो दशकों के बातचीत के बाद तीन अगस्त 2015 में इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे. जिसमें नागालैंड को भारत के संविधान के तहत ऑटोनॉमी की बात है. हालांकि इस एग्रीमेंट को लेकर अभी भी पसोपेश बना हुआ है. क्योंकि न ही सरकार की तरफ से न ही एनएससीएन आईएम की तरफ से कोई बात सार्वजनिक की गई है.

त्रिपुरा में पिछले 35 साल से सीपीएम की सरकार है (फोटो: फेसबुक से साभार)

ये बात साफ है कि दोनो पक्ष बातचीत के लिए तैयार है. लेकिन तस्वीर साफ नहीं है. कांग्रेस इस एग्रीमेंट को लोकर सत्ताधारी दल और बीजेपी को कटघरे में खड़ा करने की योजना बना रही है. कांग्रेस के नागालैंड के प्रभारी सचिव के. जयकुमार का कहना है कि ‘ये बातचीत की शुरूआत राजीव गांधी के वक्त हुई थी. जो भी केंद्र सरकार को हासिल हुआ है वो उसका नतीजा है. लेकिन सरकार इसको सार्वजनिक क्यो नहीं कर रही है.’

त्रिपुरा में कांग्रेस के सामने लेफ्ट

त्रिपुरा में 1993 से सीपीएम की सरकार है. मानिक सरकार मुख्यमंत्री है. बताया जाता है कि सीएम जनता के बीच काफी लोकप्रिय हैं. इसलिए उनको हटाना कांग्रेस के लिए मुश्किल काम है. पिछली विधानसभा में कांग्रेस के 10 विधायक थे. जिसमें बाद में छह विधायक टीएमसी में चले गए. लेकिन मुकुल रॉय के बीजेपी में शामिल होने से बीजेपी के भी छह विधायक हो गए. जबकि 2013 के चुनाव में बीजेपी के पास एक भी विधायक नहीं था. लेकिन त्रिपुरा में आईपीएफटी (इंडीजीनिस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा) ने अलग टिपरालैंड की मांग की है. जिसको पहले बीजेपी सीपीएम और कांग्रेस ने नकार दिया था.

आईपीएफटी ने जुलाई में 10 दिन तक एनएच 8 को जाम कर दिया था. बीजेपी के साथ इस दल की बातचीत चल रही है. बीजेपी अगर इसमें कामयाब हो गई तो त्रिपुरा में सीपीएम के मुकाबले में बीजेपी आ जाएगी. कांग्रेस को इस राज्य में नया गठजोड़ बनाना होगा. हालांकि अभी गठबंधन को लेकर कांग्रेस की तरफ से कोई फैसला नहीं लिया गया है. लेकिन पूर्वोत्तर के प्रभारी महासचिव सी. पी. जोशी कोई प्लान लेकर कांग्रेस के अध्यक्ष से बात कर सकते है.