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दिल्ली में आज BJP संसदीय बोर्ड की बैठक, त्रिपुरा के उम्मीदवारों का ऐलान संभव

सीट शेयरिंग की जहां तक बात है तो त्रिपुरा की कुल 60 सीटों में 51 पर बीजेपी चुनाव लड़ेगी और 9 सीटों पर आईपीएफटी.

FP Staff

त्रिपुरा चुनाव को लेकर बीजेपी ने तैयारियां शुरू कर दी हैं. इस बाबत शनिवार को दिल्ली में संसदीय बोर्ड की मीटिंग है. इसमें बीजेपी उम्मीदवारों के नाम फाइनल किए जाने की संभावना है. इसके बाद 28 जनवरी को बीजेपी और आईपीएफटी (इंडिजीनस पिपल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा) अपने साझा घोषणा पत्र का ऐलान करेंगी. घोषणा पत्र में बताया जाएगा कि दोनों पार्टियां किन मुद्दों पर एक साथ चुनाव लड़ रही हैं. आईपीएफटी ने इस गठबंधन के लिए अपनी अलग त्रिपुरा लैंड की मांग को छोड़ दिया है.

गुरुवार को बीजेपी ने आईपीएफटी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने की घोषणा की. सीट शेयरिंग की जहां तक बात है तो यहां की कुल 60 सीटों में बीजेपी 51 पर चुनाव लड़ेगी और 9 सीटों पर आईपीएफटी. त्रिपुरा में 18 फरवरी को वोटिंग है. बीजेपी और आईपीएफटी की पूरी योजना यहां 1993 से जमे लेफ्ट फ्रंट को सत्ता से बेदखल करने का है.

पूरी तैयारी में है बीजेपी

आईपीएफटी सुप्रीमो एनसी देबबर्मा ने अभी हाल में कहा कि कोरबोक विधानसभा क्षेत्र में एक साझा उम्मीदवार खड़ा करने की बात चल रही है. उन्होंने कहा, यह स्पष्ट है कि बीजेपी यहां पूरी तैयारी के साथ चुनाव लड़ने जा रही है, इसलिए हमारा सीट शेयर घटकर 9 पर आ गया है. आईपीएफटी को जो 9 सीटें दी गई हैं, उनमें सिमना, मंडई, टकरजाला, अंपी नागरा, मानू (साउथ), राइमा वैली, रामचंद्रघाट, आश्रमबाड़ी और कंचनपुर हैं. ये सभी सीटें एसटी के अंतर्गत आरक्षित हैं और आदिवासी स्वायत्त क्षेत्र में आती हैं. इस इलाके में कुल 20 सीटें हैं. कुल आरक्षित सीटों में बीजेपी के पास 11 हैं जबकि बाकी के इलाकों में उसे 40 सीटें दी गई हैं.

बीजेपी की खास रणनीति

त्रिपुरा की राजनीति में भाषाई विवाद काफी मायने रखता है. चुनावों में असली जंग बंगाली भाषी लोगों और स्थानीय 31 फीसद लोगों के बीच अक्सर देखा जाता रहा है. इसी विवाद ने 1997 में हिंसक रूप ले लिया जब यहां सेना बुलानी पड़ी. गंभीर हालात को देखते हुए तब से यहां अफ्सपा (आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पॉवर एक्ट) लगा हुआ है.

यहां के दो अलगाववादी संगठन-नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (एनएलएफटी) और ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स (एटीटीएफ) का झुकाव हमेशा से उग्रवाद की ओर रहा है. ये दोनों गुट भारत से अलग होने की मांग उठाते रहे हैं. लेकिन हालात धीरे-धीरे सुधरने लगे और 2015 के बाद यहां के अलग-अलग संगठन अब प्रदेश से अफ्सपा हटाने की मांग पर एकजुट हो रहे हैं. यहां की राजनीति और नेता हालांकि गाहे-बगाहे इन कमियों का फायदा उठाते रहे हैं.

नाराज कांग्रेस नेताओं को लुभा रही बीजेपी

त्रिपुरा में बीजेपी की पैठ शहरी लोगों के बीच है, खासकर बंगाली लोगों में. इसके बावजूद बीजेपी ने त्रिपुरा की मुख्य आदिवासी पार्टी के साथ गठबंधन करने की रणनीति बनाई है. इसी को देखते हुए इंडिजीनस पिपल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा को 9 सीटें दी गई हैं.

पूरे नॉर्थ-ईस्ट में बीजेपी जातिगत राजनीति को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ रही है. इसके अलावा स्थानीय प्रतिभाओं को साथ लेकर कांग्रेस के नाराज नेता, उसके कार्यकर्ताओं का दामन थामते हुए बीजेपी ने चुनाव जीतने का मन बनाया है. उदाहरण के तौर पर असम को ले सकते हैं जहां बीजेपी ने कांग्रेस नेता हिमंत बिस्वसर्मा को अपने पाले में लिया जिनकी असम की राजनीति पर अच्छी पकड़ है. आदिवासियों को लुभाने के लिए बोडो पिपल्स फ्रंट और असोम गण परिषद से बीजेपी ने गठबंधन कर प्रदेश में अपनी सरकार बनाई.

मणिपुर में भी ऐसा ही है जहां बीजेपी एकतरह से पूर्व कांग्रेस नेताओं की बदौलत ही खड़ी हुई है. यहां भी एपीपी और एनपीएफ जैसी स्थानीय पार्टियों के साथ बीजेपी ने गठबंधन साधा है. अरुणाचल में कांग्रेस का पूरा कुनबा उठकर बीजेपी के पाले में चला गया. नतीजा यह हुआ कि सत्ता संभालने वाली टीम तो वही रही लेकिन पार्टी रातोंरात बदल गई.