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मोदी विरोधी 'दुरंतो' पर सवार ममता...स्टेशन 2019

मां, माटी, मानुष से राजनीति की मुख्यधारा में अवतरित होने वाली ममता बनर्जी अब मैं, मोदी और कैश की धारा में बह रही हैं.

Kinshuk Praval

मां, माटी, मानुष से राजनीति की मुख्यधारा में अवतरित होने वाली ममता बनर्जी अब मैं, मोदी और कैश की धारा में बह रही हैं. नोटबंदी के ऐलान के बाद जब तक बाकी विपक्षी दल रिएक्शन के बारे में सोचते, उससे पहले ही दीदी ने हावड़ा एक्सप्रेस पकड़ ली. हालांकि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने सेल्फी विद एटीएम का ट्रेलर जरूर दिया, लेकिन दीदी की दुरंतो के आगे सब फेल.

नोटबंदी के फैसले से ममता गुस्से में हैं और उनका गुस्सा पीएम मोदी से गुजरता हुआ अब सेना तक जा पहुंचा है.


पश्चिम बंगाल में टोल प्लाजा पर सेना की तैनाती की गई थी. रक्षा मंत्री का कहना है कि ये रूटीन एक्सरसाइज है और नॉर्थ ईस्ट के राज्यों में किया जा रहा है. लेकिन ममता की सेना ने संसद में संग्राम छेड़ दिया. उधर ममता ने गुस्से में खुद को अपने ही ऑफिस में बंद कर लिया. ममता की जिद थी कि जब तक सेना पश्चिम बंगाल से नहीं हटेगी वो दफ्तर से नहीं निकलेंगी. ममता ने दो कदम और आगे मार्च कर ये तक कह डाला कि केंद्र सरकार ने उनके खिलाफ तख्ता पलट की साजिश है.

क्या है ममता स्टाइल ऑफ पॉलिटिक्स

सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या देश में कोई भी केंद्र सरकार किसी राज्य में सैन्य तख्तापलट कर सियासी खुदकुशी कर सकती है? हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने दो अलग-अलग मामलों में केंद्र सरकार को आईना दिखाया है. उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश में सुप्रीम कोर्ट का फैसला न्यायिक प्रक्रिया की मिसाल बना.

फोटो: पीटीआई

ऐसे में जब देश में संसद और सुप्रीम कोर्ट के रूप में इतनी बड़ी संवैधानिक संस्था मौजूद है तो फिर ममता बनर्जी के आरोप मजाकिया लग सकते हैं. लेकिन सिर्फ इस वजह से ममता की गंभीरता को नजरअंदाज करना भी नादानी होगी क्योंकि ममता बनर्जी की यही स्टाइल ऑफ पॉलिटिक्स है.

सूती साड़ी, पैरों में रबर की चप्पल और खपरैल वाला मकान उनकी अलग कहानी कहता है. ममता बनर्जी के राजनीतिक इतिहास में कई ऐसे अध्याय दर्ज हैं जो उन्हें बंगाल की लौह महिला साबित करते हैं.

पश्चिम बंगाल में वामदलों के 34 साल पुराने किले को ममता ने अपने ही बूते ढहाया है. ‘पोरिबर्तन’ की आंधी में उन्होंने साढ़े तीन दशक से सीना ताने कम्युनिस्टों के तंबू उखाड़ दिए.

सार्वजनिक रैलियां और धरने उनकी राजनीतिक निडरता का परिचय देते हैं. ये उनका राजनीतिक दुस्साहस ही था कि उन्होंने स्पेशल इकोनॉमिक जोन के लिये अधिगृहित की गई जमीन के खिलाफ मोर्चा खोला.

उनके आंदोलन की आंधी में टाटा को सिंगूर छोड़ना पड़ गया. सिंगूर में टाटा अपनी महत्वाकांक्षी लखटकिया नैनो लांच करने की पूरी तैयारी में था, लेकिन ममता बनर्जी ने सिंगूर की सियासत से वाम दलों को सत्ता से उखाड़ फेंका. ममता के आंदोलन को बुद्धिजीवियों का भारी समर्थन मिला. SEZ के खिलाफ नंदीग्राम और सिंगूर के आंदोलन ने ममता को नई पहचान दी.

लेकिन सिंगूर से टाटा की वापसी ने राजनीति में एक नई सियासी तलवार भी खींच दी.

नैनो के लिए जमीन की तलाश में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने जमीन का न्यौता दे डाला. जिसके बाद नैनो कार गुजरात के साणंद में बनना शुरू हो गई.

पीएम मोदी को लेकर ममता का विरोध क्या सिंगूर से टाटा की वापसी की पटकथा से शुरू होता है? नहीं. दरअसल पीएम बनने से पहले पीएम उम्मीदवार रहे नरेंद्र मोदी ने ममता के गढ़ में ममता को ललकारा था.

लेफ्ट नहीं बीजेपी से खतरा

नरेंद्र मोदी ने पश्चिम बंगाल में अपनी रैलियों में सीधा सवाल उठाया था कि बंगाल को किसने बर्बाद किया? पश्चिम बंगाल में बांग्लादेशियों की घुसपैठ के लिये सीधे तौर पर ममता बनर्जी को जिम्मेदार ठहराया था. साथ ही शारदा चिटफंड के घोटालेबाजों को बचाने के आरोप में ममता को घेरा था. मोदी ने इशारों ही इशारों में साफ कर दिया था कि शारदा चिटफंड वालों ने ही बंगाल को लूटा है और ममता उन्हीं को जेल जाने से बचा रही हैं.

फोटो: पीटीआई

इसके अलावा एक दूसरी वजह भी नजर आती है. बंगाल में जिस तरह से ममता ने वाम दलों का सफाया किया, उसने दूसरे विपक्षी दलों को खड़ा होने का मौका भी दे दिया. भले ही अभी किसी भी विपक्षी दल के लिये ममता को हरा पाना मुमकिन नहीं है. लेकिन बंगाल में तेजी से बढ़ता सांप्रदायिक ध्रुवीकरण आने वाले समय में ममता को चुनौती दे सकता है.

ममता ने बंगाली हिंदुत्व राष्ट्रवाद का सहारा लिया और अब यही केसरिया ध्रुवीकरण बंगाल में बीजेपी के लिये कमल खिला सकता है. ‘पोरिबोर्तन' के खिलाफ बदलाव का नया नारा बुलंद कर बीजेपी पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के विकल्प के तौर पर उभरना चाहती है. हालांकि पश्चिम बंगाल में हिंदू-मुसलमान के नाम पर वोटों का ध्रुवीकरण आसान नहीं है. लेकिन बीजेपी अब तृणमूल मुक्त बंगाल की रणनीति पर काम कर रही है.

ममता बनर्जी बीजेपी की इस चाल से वाकिफ हैं. बीजेपी नरम हिंदुत्व के साथ आगे बढ़ रही है और ममता सरकार को सुशासन के नाम पर घेरने में जुटी हुई है.

मालदा के दंगों ने देश को झकझोर दिया था. लेकिन उस दौरान ममता बनर्जी पाकिस्तानी गजल गायक गुलाम अली के कार्यक्रम के आयोजन में जुटी हुई थीं. मालदा के दंगों को ममता ने मामूली करार दिया था.

पश्चिम बंगाल में महिला तस्करी, स्त्री उत्पीड़न, तेजाब कांड, दहेज उत्पीड़न, रेप और हत्या के मामले देश में सबसे ज्यादा हैं. सिर्फ एक तापसी मलिक की कहानी ही नहीं इतिहास के पन्ने में दर्ज है, बल्कि कई तापसी मलिक मारी गई हैं. तापसी मलिक सिंगूर आंदोलन की वेदी चढ़ गई थी. सिंगूर में हुई गोलीबारी में लापता हुए दो सौ किसानों का कुछ पता नहीं चला और न ही उन्हें जमीन वापस दी गई. दीदी उन लापता किसानों को भूल चुकी हैं.

खाली मैदान मारने की चाहत

फोटो: पीटीआई

पश्चिम बंगाल की राजनीति के बाद अब दिल्ली की सियासत में खुद को चमकाने के लिये ममता बनर्जी नोटबंदी पर गोलबंदी में जुटी हुई हैं. ममता बनर्जी अब खुद को मोदी विरोध का एकमात्र चेहरा साबित करने में जुटी हुई हैं.

भले ही राहुल गांधी मोदी विरोध की कमान संभाले हुए हैं, लेकिन ममता जानती हैं कि ये मैदान अभी खाली है जिस पर ममता के साथ-साथ अरविंद केजरीवाल की भी नजर है. ममता ने खुद को दौड़ में आगे रखने के लिए पीएम मोदी को राजनीति से हटाने की भीष्म प्रतिज्ञा उठाई है. नोटबंदी पर ममता की जिद और भड़काऊ जुबान के चलते चुटकी लेने वाले कह सकते हैं कि दीदी को कैश पसंद है...