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जंतर-मंतर से बजी चुनाव की रणभेरी, मोदी को मात देने के लिए कांग्रेस का 'मास्टर प्लान' तैयार

कांग्रेस ने स्पष्ट कर दिया कि पार्टी गठबंधन को लेकर बेहद गंभीर है. लिहाजा आगामी आम चुनाव में वो गठबंधन के फॉर्मूले के तहत ही मैदान में उतरेगी

Debobrat Ghose

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए 4 अगस्त का दिन खासा व्यस्त रहा. दिन में राहुल ने जहां कांग्रेस के कोर सदस्यों यानी कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्लूसी) को संबोधित किया, वहीं शनिवार शाम को वो जंतर-मंतर जा पहुंचे. यहां उन्होंने विपक्ष के नेताओं के साथ मंच साझा किया और मोमबत्ती जलाकर विपक्षी एकता और एकजुटता को प्रतीकात्मक रूप से रौशन किया.

संकेत स्पष्ट थे- 2019 के आम चुनाव के लिए रणभेरी बज चुकी है. कांग्रेस ने बीजेपी के विजयी रथ को रोकने के लिए कमर कस ली है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टक्कर देने के लिए कांग्रेस खास रणनीति के साथ मैदान में उतरने के लिए तैयार है. विपक्षी एकता के आधार पर कांग्रेस देश में अपने लिए माहौल बनाने में जुट गई है.


2019 का आम चुनाव कांग्रेस गठबंधन के फॉर्मूले के तहत लड़ेगी

कांग्रेस ने अपनी कार्य समिति की बैठक में स्पष्ट कर दिया कि पार्टी गठबंधन को लेकर बेहद गंभीर है. लिहाजा आगामी आम चुनाव में कांग्रेस गठबंधन के फॉर्मूले के तहत ही मैदान में उतरेगी. ऐसे में विपक्षी गठबंधन को सही रूप और अटूट बल देने के लिए कांग्रेस ने जमीनी स्तर पर काम करना शुरू कर दिया है.

कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर पदभार संभालने के तुरंत बाद राहुल गांधी ने 22 दिसंबर, 2017 को अपनी पहली सीडब्लूसी बैठक की थी. हालांकि तब सीडब्लूसी का पुनर्गठन नहीं हुआ था. उस बैठक की अध्यक्षता करते हुए राहुल ने पार्टी संगठन के पुनर्गठन पर जोर दिया था. राहुल ने पार्टी की राज्य इकाइयों (प्रदेश कांग्रेस समितियों) में सुधार, नई टीमों के गठन, पार्टी में नए चेहरों की एंट्री, पार्टी कैडर के बीच अनुशासन और हर 2 महीने में एक बार सीडब्लूसी की बैठक आयोजित करने की वकालत की थी. राहुल का मानना था कि पार्टी की रणनीति और संगठन में बदलाव करके ही प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी को प्रभावी ढंग से टक्कर दी जा सकती है.

कांग्रेस की नवगठित वर्किंग कमेटी बैठक में मोदी सरकार को मात देने के लिए गठबंधन पर जोर दिया गया है (फोटो: पीटीआई)

22 दिसंबर, 2017 को सीडब्लूसी की अपनी पहली बैठक में राहुल ने कहा था कि, 'मैं चाहता हूं, कांग्रेस कार्य समिति की बैठक को संस्थागत बनाया जाए. मेरे ख्याल में सीडब्लूसी की बैठक हर 2 महीने में एक बार होना चाहिए, जिसकी तारीख हमें तय कर लेना चाहिए. हर 2 महीने में स्वभाविक रूप से, कार्यकारी समिति के सदस्यों को मुलाकात करना चाहिए, ताकि हमें पता चल सके कि आप क्या कहना चाहते हैं और देश क्या महसूस कर रहा है.'

लेकिन इस साल के आखिर में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में होने वाले विधानसभा चुनावों और 2019 के लोकसभा चुनाव की गंभीरता के मद्देनजर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने शनिवार को एक बार फिर से दोहराया कि सीडब्लूसी के सदस्यों को नियमित आधार पर मिलना चाहिए. उन्होंने सीडब्लूसी की बैठकों के अतीत के रूप से निकलने पर जोर दिया. राहुल ने कहा कि, सीडब्लूसी की बैठक हर एक या डेढ़ महीने में जरूर हो. बैठक में देश के महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए. उनसे पार्टी को जरूरी राजनीतिक फैसले लेने में मदद मिलेगी. बाद में उन चुनिंदा मुद्दों और फैसलों को पार्टी आगे ले जाने का काम करेगी.

सीडब्लूसी की हुई दूसरी बैठक का मुख्य एजेंडा गठबंधन था 

शनिवार को हुई कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में वैसे तो राफेल डील में कथित भ्रष्टाचार, बैंकिंग घोटाला और देश में बढ़ती बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई. लेकिन बैठक का मुख्य एजेंडा गठबंधन था. बैठक के दौरान खास तौर पर इस बात पर मंथन हुआ कि, बीजेपी विरोधी और हम ख्याल (समान विचारधारा वाले) राजनीतिक दलों के साथ मजबूत और विश्वसनीय गठजोड़ कैसे किया जाए.

शुक्रवार को कांग्रेस पार्टी के एक शीर्ष सूत्र ने जोर देकर कहा था कि, 'कांग्रेस अगर गठबंधन का गेम सही तरीके से खेल जाए, तो नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने का दूसरा मौका मिलना मुश्किल हो जाएगा.'

कांग्रेस के सूत्रों ने यह भी कहा था कि, बीजेपी-आरएसएस से मुकाबला करने के लिए पार्टी ने खास रणनीति बनाई है. जिसके तहत कांग्रेस सभी विपक्षी दलों को साझा मंच प्रदान करेगी. इसके अलावा पार्टी बीजेपी-आरएसएस के गठजोड़ के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने की भूमिका भी निभाएगी.

मुजफ्फरपुर शेल्टर होम रेप कांड के विरोध में जंतर-मंतर पर विपक्षी पार्टियों के नेताओं का जमावड़ा लगा

बीजेपी के विजय अभियान को रोकने की कांग्रेस की रणनीति का खुलासा राहुल ने शनिवार शाम को दिल्ली के जंतर-मंतर पर कर दिया. राहुल वहां राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) नेता तेजस्वी यादव के धरने में शामिल होने पहुंचे थे. तेजस्वी का यह धरना बिहार के मुजफ्फरपुर शेल्टर होम रेप कांड के विरोध में था. तेजस्वी के इस धरने में राहुल के अलावा सीपीआई और सीपीएम समेत विपक्षी दलों के कई नेताओं ने शिरकत की. यानी मुजफ्फरपुर कांड के बहाने विपक्ष ने जंतर-मंतर पर एकजुटता दिखाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी.

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने बताया, 'बिहार में आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव के साथ कांग्रेस का प्राकृतिक गठबंधन (नेचुरल अलायंस) है. जंतर-मंतर पर तेजस्वी यादव समेत अन्य विपक्षी नेताओं के साथ खड़े होकर कांग्रेस ने अपनी भूमिका स्पष्ट कर दी है. गठबंधन के सभी सहयोगी एक साथ मिलकर एनडीए सरकार के खिलाफ मुकाबले को तैयार हैं.'

विपक्षी गठबंधन किसके नेतृत्व में मैदान में उतरेगा इस पर मतभेद बरकरार 

बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन को चुनौती देने के लिए विपक्षी दलों ने ताल जरूर ठोक दी है, लेकिन विपक्षी गठबंधन किसके नेतृत्व में मैदान में उतरेगा इस मुद्दे पर मतभेद बना हुआ है. लिहाजा एक मजबूत और विशाल विपक्षी गठबंधन को मूर्त रूप देने के लिए कांग्रेस ने पेशकदमी शुरू कर दी है. कांग्रेस अब विपक्षी गठबंधन के नेतृत्व के मुद्दे जैसे विवाद के संभावित कारकों पर ध्यान दे रही है. ताकि गठबंधन को वैचारिक दरारों से बचाया जा सके और उसे लेकर सही दिशा में आगे बढ़ा जा सके.

तकरीबन एक हफ्ते पहले कांग्रेस पार्टी ने आगामी 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के लिए मायावती या ममता बनर्जी या किसी अन्य उम्मीदवार का समर्थन करने की इच्छा व्यक्त की थी. कांग्रेस का कहना था कि, पार्टी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर ऐसे किसी भी उम्मीदवार का साथ देने को तैयार है, जिसकी छवि स्वच्छ है और जो आरएसएस या बीजेपी द्वारा समर्थित नहीं है.

नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी को हराने के लिए कांग्रेस ने रणनीति बनाकर काम करना शुरू कर दिया है

हालांकि इससे पहले कांग्रेस ने घोषणा की थी कि, पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी उसके प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे. लेकिन फिलहाल मौके की नजाकत भांपते हुए कांग्रेस ने नया राग अलापना शुरू कर दिया है. ताकि नेतृत्व के मसले पर विपक्षी गठबंधन पर कोई आंच न आ जाए.

ऐसा लगता है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अब सियासी तौर पर चौकन्ने हो गए हैं. वह अब अतीत की तरह कोई मौका खोना नहीं चाहते. क्योंकि तब लगातार अवसर गंवाने की वजह से राहुल की पहचान एक 'गैर-हाजिर नेता' के रूप में स्थापित हो गई थी.

पार्टी के सूत्रों के मुताबिक, दो हफ्तों के भीतर हुईं सीडब्लूसी की 2 बैठकों में कई अहम नीतियां बनी हैं. शनिवार को हुई बैठक में राहुल ने रणनीतिक मोर्चे के लिए एक रोडमैप पेश किया. जिसके जरिए कांग्रेस नेताओं को यह समझाया जाएगा कि उन्हें जनता के बीच किन मुद्दों के साथ जाना है. राहुल के रणनीतिक रोडमैप में इस बात का भी फार्मूला है कि विपक्षी गठबंधन के बाकी दलों के साथ कांग्रेस को कैसी नीति अपनानी है.

'मोदी सरकार के खिलाफ फिजा बनाने की नीति निर्धारित की गई'

सीडब्लूसी की बैठक में मौजूद एक सदस्य ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया, 'बैठक में यह फैसला लिया गया है कि, भ्रष्टाचार के मुद्दों जैसे- राफेल डील और बैंकिंग घोटाले लेकर आने वाले दिनों में मोदी सरकार के खिलाफ फिजा कैसे बनाई जाए. इनके अलावा युवाओं की बेरोजगारी, कृषि संकट, मॉब लिन्चिंग की बढ़ती घटनाओं, दलितों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ अत्याचार जैसे मुद्दों पर भी सरकार को घेरने की नीति निर्धारित की गई.'

कांग्रेस पार्टी गिरती अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी और किसानों की समस्याओं जैसे मुद्दों पर संसद के अंदर और बाहर बड़े पैमाने पर आंदोलन करना चाहती है. लिहाजा सरकार विरोधी आंदोलन खड़ा करने के लिए पार्टी के वरिष्ठ नेता बाकायदा एक खाका तैयार करेंगे. आंदोलन के इस ब्लूप्रिंट को बनाने में पार्टी के महासचिव, राज्य और जिला इकाइयों के सदस्य वरिष्ठ नेताओं की मदद करेंगे.

2019 में बीजेपी और एनडीए को हराने के लिए विपक्षी दल गठबंधन की एकता की बात कर रहे हैं

कांग्रेस के मीडिया प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा है कि, 'कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी चाहते हैं कि, हमारी पार्टी के कार्यकर्ता और नेता संसद के बाहर सभी स्तरों पर इन मुद्दों को उठाएं, जबकि हमारे सांसद उन मुद्दों पर संसद में अपनी आवाज बुलंद करेंगे. हम सरकार को जवाब देने के लिए मजबूर कर देंगे.'