view all

मोदी से सीखिए कोई नेता इतना पॉपुलर कैसे हो सकता है

एक तरफ पीएम मोदी लगातार मजबूत हो रहे हैं तो दूसरी तरफ विपक्ष कमजोर होता दिख रहा है

Sanjay Singh

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के तीन साल पूरे हो गए हैं. इसके साथ ही लोकसभा चुनावों के वक्त ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा भी बदलकर अब ‘साथ है, विश्वास है, हो रहा विकास है’ हो गया है.

उत्तर-पूर्व के विकास पर फोकस


तीन साल पूरे होने के मौके पर यह सुनिश्चित करने के लिए कि बीजेपी सरकार का फोकस अभी भी विकास पर ही है, नरेंद्र मोदी ने असम जाकर 9.3 किमी लंबे ढोला और सदिया घाट पर बने भूपेन हजारिका ब्रिज को देश को समर्पित किया.

यह देश का सबसे लंबा ब्रिज है जो कि ब्रह्मपुत्र नदी पर बना है. इस ब्रिज के जरिए असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच की दूरी 165 किमी कम हो जाएगी और इन दोनों राज्यों के बीच यात्रा का समय भी पांच घंटे कम हो जाएगा. इस इलाके के लोगों को सुविधाजनक कनेक्टिविटी मुहैया कराने के अलावा चीन से लगते इलाकों में सुरक्षाबलों के लिए यह ब्रिज एक रणनीतिक अहमियत रखता है.

साफ संदेशः केवल दिल्ली तक सीमित नहीं है सरकार

मोदी का इस मौके पर असम पहुंचना एक और चीज साबित करता है कि उनकी सरकार केवल दिल्ली तक ही सीमित नहीं है, बल्कि देश की व्यापक विविधता, इसके क्षेत्रीय केंद्रों को भी पर्याप्त महत्व दिया जाना चाहिए.

चाहे विदेशी अतिथियों का गोवा में स्वागत करना हो या गांधीनगर में, या अपनी सरकार की तीसरी वर्षगांठ गुवाहाटी में मनाना हो. उत्तर-पूर्व के लिए कई तरह के प्रोजेक्ट्स का उद्घाटन करना या उनकी नींव रखना हो, इन सबके जरिए मोदी सरकार देश भर में पहुंच रही है.

मोदी सरकार के जहां तीन साल पूरे हुए हैं, वहीं असम में सर्बानंद सोनोवाल के नेतृत्व में बनी बीजेपी की पहली सरकार ने एक साल का समय पूरा किया है. इस मौके पर मोदी की मौजूदगी से इस इलाके के लिए लोगों के लिए यह दिन यादगार बन गया.

नॉर्थ-ईस्ट के लोगों के लिए यादगार रहेगा मोदी का दौरा

मोदी भूपेन हजारिका ब्रिज पर कार से पहुंचे, ब्रिज पर कुछ दूर तक टहले और नदी से आती ठंडी हवाओं का आनंद लिया. इस इलाके में इन चीजों की लंबे वक्त तक चर्चा की जाएगी.

मोदी और उनके पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह के बीच इससे बड़ा अंतर कोई नहीं हो सकता. मनमोहन सिंह असम से 10 साल तक राज्यसभा सदस्य रहे, लेकिन उन्होंने शायद ही कभी असम और बाकी के उत्तर-पूर्व क्षेत्र के विकास पर कभी फोकस किया हो.

इसके उलट मोदी ने इस इलाके के विकास के लिए बेहद सक्रियता और ऊर्जा के साथ काम किया है. यह इलाका लंबे वक्त तक उपेक्षा का शिकार रहा है. मोदी सरकार का नया नारा ‘साथ है, विश्वास है, हो रहा विकास है’ इस लिहाज से काफी अर्थ रखता है.

यह जरूरी है कि बीजेपी नेता इस नए नारे को आत्मसात करें क्योंकि अब पार्टी अपने बूते पर 14 राज्यों में सरकार चला रही है. सहयोगियों के साथ मिलकर वह 17 राज्यों में सत्ता में है.

दिलचस्प बात यह है कि मोदी ने असम में एक पब्लिक रैली शाम में तकरीबन उसी वक्त शुरू किया जब तीन साल पहले उन्होंने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी. रैली में उन्होंने यह चीज लोगों को याद भी दिलाई. मोदी ने अपनी पूर्ण बहुमत की सरकार और सरकार की उपलब्धियों का जिक्र भी किया.

विपक्ष की फ्लॉप लंच पार्टी

मोदी जहां उत्तर-पूर्व में लोगों के साथ जुड़ रहे थे और विकास के नए प्रोजेक्ट्स का ऐलान कर रहे थे, वहीं उनके राजनीतिक विरोधी इस मौके पर सोनिया गांधी के साथ लंच कर रहे थे.

विपक्षी एकता को दिखाने के लिए आयोजित किए गए इस लंच की हवा तब निकल गई जब विपक्ष के एक बड़े नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसमें शरीक होने से इनकार कर दिया.

चूंकि नीतीश विपक्ष का सबसे भरोसेमंद चेहरा हैं, ऐसे में उनकी गैरमौजूदगी इस लंच के आयोजन से कहीं ज्यादा बड़ी खबर बन गई. सोनिया के लंच के लिए इकट्ठा हुए नेताओं का फोटो फ्रेम काफी दिलचस्प है.

कांग्रेस, आरजेडी, टीएमसी, बीएसपी, एसपी, टीएमसी, डीएमके, एनसीपी के नेता इसमें दिखाई दे रहे हैं. ये नेता या इनकी संबंधित पार्टियों के दूसरे नेता भ्रष्टाचार के और संदेहास्पद शेल कंपनियों के जरिए लेनदेन के मामलों में कई तरह की जांच के राडार पर हैं.

हालांकि, नीतीश ने अपने प्रतिनिधि के तौर पर शरद यादव को लंच में भेजा था, लेकिन राजनीति का कोई भी छात्र बता देगा कि शरद यादव का पार्टी पर कोई प्रभाव नहीं है. शरद यादव का अधिकार संसद में भाषण देने तक सीमित है, वह जेडीयू की नीतियां और रणनीति बनाने में ज्यादा अहमियत नहीं रखते हैं.

मोदी के सामने टिकने की काबिलियत वाला कोई नेता विपक्ष में नहीं

तथाकथित संयुक्त विपक्षी बैठक दो मकसद से आयोजित हुई थी. पहला, एक महागठबंधन, यूपीए3 बनाने की कोशिशें ताकि 2019 के चुनावों में नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी को चुनौती दी जा सके.

दूसरा, राष्ट्रपति चुनाव के लिए एक संयुक्त विपक्षी उम्मीदवार के नाम पर सहमति बनाई जा सके. इन्हें उम्मीद है कि ऐसा करके ये बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए के उम्मीदवार को हरा पाएंगे.

सरकार बनाने के तीन साल बाद मोदी और ज्यादा लोकप्रिय होते दिखाई दे रहे हैं. आज विपक्ष में कोई ऐसा नेता नहीं है जो कि लोकप्रियता और लोगों तक पहुंच के मामले में उनके आसपास भी कहीं टिक सके.

राहुल गांधी हालांकि 47 साल के हो गए हैं, राजनीतिक मानकों के हिसाब से वह अभी युवा हैं, लेकिन वह अभी से रिटायर्ड नेता जैसे दिखाई देते हैं. उनकी नाकामियों का सिलसिला लंबा है. यहां तक कि उनकी पार्टी के नेताओं को भी उनमें कोई उम्मीद नजर नहीं आती.

सोनिया गांधी के यहां लंच में मौजूद हुए नेताओं की लिस्ट देखिए- सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मनमोहन सिंह, लालू यादव, मायावती, अखिलेश यादव, ममता बनर्जी, शरद पवार, सीताराम येचुरी, कनिमोड़ी और अन्य. इनमें से किसी में भी क्या नरेंद्र मोदी को वास्तविक चुनौती देने की काबिलियत है?

लेकिन, सोनिया गांधी और बाकी के नेताओं के लंच का मजा उस वक्त किरकिरा हो गया होगा जब यह न्यूज ब्रेक उन्हें पता चला होगा कि अगले दिन ही नीतीश कुमार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करेंगे और मॉरिशस के प्रधानमंत्री प्रविंद जगन्नाथ के सम्मान में आयोजित लंच में शिरकत करेंगे.