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ताजमहल पर चांदनी का जादू चला, लेकिन ASI पर नहीं

चांदनी रात में ताज को देखना एक रोमांचक अनुभव है लेकिन इसे बढ़ावा देने के लिए एएसआई कुछ नहीं कर रहा है

Pallavi Rebbapragada

ताजमहल उन दिनों में कैसा लगता है जब शुक्रवार नहीं होता. यहां देश विदेश से सैलानी आते हैं. उनके रंग, कपड़ों पर लगे ब्रांडेड लोगो और उनकी घबराहट...ये सब नजर आता है जब ये सैलानी हाथों में कैमरे लिए बेंच पर खड़े होकर ताज के गुंबद को उंगलियों के बीच फिट करने की कोशिश करते हैं. इस अद्भुत मिनार की तस्वीर क्लिक करके वे इसे अपनी यादों में संजो लेते हैं. इन्हें क्लिक करने वाले लोग यहां जीवन की तलाश कर रहे हैं.

अगर आप आसपास नजर दौड़ाएंगे तो आपको कैमरे की पट्टियां, पार्क और फव्वारों की देखभाल करने वाले बच्चे नजर आएंगे. मानवता का शोर और खुशियों के बीच जरूरी ये है कि ताज का गौरव बरकरार रहे. इसके सफेद संगमरमर से होकर सूर्य की रोशनी पीले और नारंगी रंग के तिकोने आकार बनाती है. अगर आप गौर से देखेंगे तो यह आपको भी नजर आएगा.


क्या है किताबों का कहना?

यह किताबी जानकारी है कि मुगल सम्राट शाहजहां ने 1631 में ताज का निर्माण शुरू कराया. रानी मुमताज महल की याद में बड़ी राशि खर्च कर इस इमारत को बनवाया गया. इसका निर्माण कार्य 1648 में पूरा हुआ. माना जाता है कि शहंशाह ने आगरा में फर्जी अकाल घोषित कर दिया था ताकि अनाज को उस शहर तक पहुंचाया जा सके जहां पत्थर तराशने वाले, खनन करने वाले, सुलेखक इस वास्तुकला के मुख्य वास्तुकार उस्ताद अहमद लाहोरी के नेतृत्व में काम कर रहे थे.

यह सामान्य ज्ञान भी है कि शाहजहां को आखिरकार उनके बेटे औरंगजेब ने ही आगरा के किले में बंदी बना लिया था. यह भी कहा जाता है कि अपने कमरे की तिरछी दीवार से वह रात में ताज को निहारा करते थे. उन्होंने शायद चांदनी की वजह से मीनारों की छायाएं देखी होंगी और नीले-सफेद रंग में चमकते हुए बड़े गुंबद को भी देखा होगा. रात में ताज का दीदार बहुत निजी हो जाता है. वहां अंधेरा होता है, स्मारक के चारों ओर ख़ामोश सन्नाटा होता है जहां दो प्यार करने वालों की कब्र हैं. जो किसी इंसान की जिंदगी से पुराना और उसके मरने के बाद भी जिंदा रहने वाला है.

मजबूर क्यों है ASI

हालांकि भारतीय पुरातत्व विभाग के पास एक हज़ार अन्य लोगों के साथ उस धूल भरे गर्म आगरा को महसूस करने का अनुभव है. यहां तापमान गर्मी में 40 डिग्री तक चला जाता है. बहुत कम लोग जानते हैं कि पूर्णिमा के दिन ताज दर्शन के लिए खुला होता है. प्रबंधन अक्सर देर रात में वहां लोगों को उमड़ने से रोकता है.

चांदनी रात में ताजमहल का सफर

आगरा में मॉल रोड पर एएसआई के दफ्तर से टिकट लेने के साथ सफर शुरू होता है. इसलिए आपको कम से कम आगरा में दो रात रुकना पड़ेगा. अगर आप सोच रहे हैं कि आप आसानी से एक्सप्रेस-वे से ताज देखने पहुंच जाएंगे और उसी रात दीदार के बाद लौट आएंगे, तो यह मुमकिन नहीं हैं. पूरब गेट के शिल्पग्राम से प्रवेश दिया जाता है. बाकी प्रवेश द्वार बंद होते हैं लेकिन यह बात आगन्तुकों को बताई नहीं जाती. यह टिकट पर लिखा हुआ नहीं होता है. दोनों गेटों के बीच काफी दूरी है. साइन बोर्ड मिट चुके लगते हैं. यहां तक कि स्थानीय लोग यह बात नहीं जानते कि स्मारक रात के वक्त खुला हो सकता है.

अगर आपकी तैयारी पूरी हो चुकी हो तो एक घंटा पहले ही ताजमहल पहुंच जाएं. दो जगहों पर तलाशी ली जाती है. एक शिल्पग्राम में और दूसरा ताज के करीब जहां मिनी बस पर सवार होकर जाया जाता है. रात साढ़े 8 बजे से लेकर आधी रात बाद आधे घंटे तक अधिकतम 50 लोगों के 8 दस्ते पूर्णिमा की रोशनी में ताज देख पाते हैं.

मुख्य प्रवेश द्वार के लाल पत्थर वाले प्लेटफॉर्म पर मेहराब से दिन और रात दोनों समय में ताज का पहला दीदार होता है. हरेक दस्ते के लिए निर्धारित समय 30 मिनट का होता है. फोन ले जाने की अनुमति नहीं होती. लेकिन हाथ वाले कैमरे (फ्लैश या बिना फ्लैश वाले) ले जाने की अनुमति रहती है.

आपकी पहुंच से दूर होगा ताज!

मीडिया की खबरों के मुताबिक जल्द ही एएसआई ताज के स्पर्श पर पाबंदी लगाने जा रहा है. प्रदूषण के बढ़ते स्तर के कारण जल्द ही वहां इस्पात के बैरिकेड लगेंगे जो नरम सफेद मार्बल से सैलानियों को एक मीटर दूर रखेंगे.

इसी तर्क के आधार पर रात में सैलानियों को एक तय दूरी के साथ ताज तक ले जाया जा सकता है. क्यों नहीं रात में दीदार को लोकप्रिय बनाया जाता? पर्यटन विभाग के मुताबिक भारत में विदेशी पर्यटकों की संख्या ने नया कीर्तिमान बनाया है. दिसंबर 2016 में यह तादाद 10 लाख 37 हज़ार पहुंच गई.

लेकिन, 2013 में पेरिस शहर में 1 करोड़ 56 लाख अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों का स्वागत हुआ था. एफिल टावर की यह कहानी नहीं है कि ‘जब तक मौत हमें अलग नहीं कर देती’ इसके नीचे दबे रहें. लेकिन ताज हर रात अपने गिर्द ऐसी कहानी बना रही है.

यह महसूस करते हुए कैसा लगता है? रात में ताजमहल का नज़ारा आपके दिलों के टुकड़े-टुकड़े कर देता है और फिर पलों में जोड़ देता है. पहली नज़र में हम इसकी आभा से परिचित होते हैं जो सदियों तक रहेगी. इसकी मौजूदगी हमेशा याद दिलाती रहती है कि हर भावना का एक दिन अंत होता है. और जैसे ही आप लौटते हैं, इसका प्रभाव घटता चला जाता है. आपने जो दुख हाल में महसूस किया है, आप महसूस करते हैं कि उसका दर्द कम हो रहा है. जन्नत भारत में ही है और दुनिया को इसे जानना चाहिए.