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चावल मिल के क्लर्क से 3 बार CM तक का सफर, दिलचस्प है येदियुरप्पा की कहानी

येदियुरप्पा पर आरोप लगा था कि उन्होंने बेंगलुरु में प्रमुख जगहों पर अपने बेटों को भूमि आवंटित करने के लिए अपने पद का दुरुपयोग किया

FP Staff

कर्नाटक की राजनीति में 75 साल के बुकंकरे सिद्दालिंगप्पा येदियुरप्पा वो नाम हैं, जिनकी बदौलत बीजेपी साल 2008 में दक्षिण में पहली बार कमल खिलाने में कामयाब रही थी. येदियुरप्पा इतना मजबूत नाम है कि अनंत हेगड़े और प्रताप सिम्हा के 'हिंदुत्व' को नजरंदाज कर पार्टी ने विधानसभा चुनावों से पहले ही सीएम कैंडिडेट के लिए उनके नाम की घोषणा कर दी थी.

चावल मिल के क्लर्क से जमीनी किसान नेता और फिलहाल कर्नाटक में लिंगायतों के सबसे बड़े नेता येदियुरप्पा कई मुश्किलों से गुजर कर यहां तक पहुंचे हैं. कभी बीजेपी से अलग होकर 'कर्नाटक जनता पक्ष' नाम की पार्टी तक बनाने वाले येदियुरप्पा 2014 में फिर बीजेपी में लौटे और अब तीसरी बार मुख्यमंत्री बनाए गए हैं.


जमीनी नेता रहे हैं येदियुरप्पा

सिर्फ लिंगायत नेता कहकर येदियुरप्पा को खारिज करना आसान नहीं है. कर्नाटक के मांड्या जिले के बुकानाकेरे में सिद्धलिंगप्पा और पुत्तथयम्मा के घर 27 फरवरी 1943 को जन्मे येदियुरप्पा ने चार साल की उम्र में अपनी मां को खो दिया था. उन्होंने अपने पॉलिटिकल करियर की शुरुआत साल 1972 में शिकारीपुरा तालुका के जनसंघ अध्यक्ष के रूप में की थी. इमरजेंसी के दौरान वे बेल्लारी और शिमोगा की जेल में भी रहे. यहां से उन्हें इलाके के किसान नेता के रूप में जाना जाने लगा था. साल 1977 में जनता पार्टी के सचिव पद पर काबिज होने के साथ ही राजनीति में उनका कद और बढ़ गया.

कर्नाटक की राजनीति में उन्हें नजरंदाज करना इसलिए नामुमकिन हो जाता है क्योंकि 1988 में ही उन्हें पहली बार बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया था. येदियुरप्पा 1983 में पहली बार शिकारपुर से विधायक चुने गए और फिर छह बार यहां से जीत हासिल की. 1994 के विधानसभा चुनावों में हार के बाद येदियुरप्पा को असेंबली में विपक्ष का नेता बना दिया गया.

1999 में जब वो चुनाव हार गए तो बीजेपी ने उन्हें MLC बना दिया. जिन दो महत्वपूर्ण जातियों के हाथों में राजनीति का भविष्य रहा है, वो हैं लिंगायत और वोक्कालिगा. कर्नाटक में मुख्यमंत्री अमूमन इसी समुदाय से रहे हैं. पिछले विधानसभा चुनावों में हार के बाद बीजेपी को समझ आ गया कि बिना येदियुरप्पा के कर्नाटक में कमल खिलाना काफी मुश्किल होगा.

जाति के खेल में भी सबसे आगे

एक वक्त ऐसा भी था जब येदियुरप्पा कर्नाटक की राजनीति में सबसे दागदार नाम हो गया था. जगदीश शेट्टर के जरिए बीजेपी ने भी लिंगायत वोटों को नई राह दिखाने की खूब कोशिश की लेकिन येदियुरप्पा ने अपनी पकड़ ढीली नहीं होने दी. कर्नाटक की सबसे मजबूत जाति लिंगायत के हिस्से 21 प्रतिशत वोट है. कहा जाता है कि इसका बड़ा हिस्सा आज भी येदियुरप्पा के इशारों पर वोट करता है. जानकारों का मानना है कि एक अरसे तक येदियुरप्पा की छवि लिंगायत नेता से ज्यादा किसान नेता की थी, लेकिन कांग्रेस ने ही उन्हें वक्त के साथ लिंगायतों का नेता बना दिया.

विवादों से भी रहा है नाता

बता दें कि साल 2004 में उनकी पत्नी का निधन रहस्यमयी परिस्थिति में एक कुएं में गिरने से हो गया था. येदियुरप्पा पर जमीन घोटाले और अवैध खनन घोटाले के भी आरोप लगे थे. नवंबर 2010 में येदियुरप्पा पर आरोप लगा कि उन्होंने बेंगलुरु में प्रमुख जगहों पर अपने बेटों को भूमि आवंटित करने के लिए अपने पद का दुरुपयोग किया. जिससे वह विवादों के एक और घेरे में आ गए. पांच फरवरी 2011 को उन्होंने अपनी संपत्ति सार्वजनिक की और और कांग्रेस को चेतावनी दी कि वह उनके पास 'काले धन' की बात साबित करके दिखाए.

मई 2008 में उन्होंने बहुमत से कम के आंकड़े के साथ शासन की शुरुआत की लेकिन विपक्षी और निर्दलीय विधायकों को अपने पाले में कर उन्होंने जबर्दस्त बहुमत जुटा लिया. उन्होंने अपने अभियान को 'ऑपरेशन लोटस' नाम दिया और 224 सदस्यीय विधानसभा में बीजेपी बहुमत हासिल करने में सफल रही.

लेकिन खनन क्षेत्र से जुड़े प्रभावशाली रेड्डी बंधु जनार्दन और करुणाकर उनके लिए परेशानी का सबब बने रहे. बाद में बीजेपी के ही 11 बागी विधायकों और पांच निर्दलीय विधायकों ने येदियुरप्पा सरकार से समर्थन वापस लेकर उन्हें संकट में डाल दिया. वह बच गए और दो बार विश्वास मत में जीत हासिल की. पहला ध्वनि मत से जीता. जिसे राज्यपाल एच आर भारद्वाज ने असंवैधानिक करार दिया. उसके बाद उन्हें एक और शक्ति परीक्षण करना पड़ा जिसमें वह 100 के मुकाबले 106 मतों से जीत गए.

भारद्वाज के साथ अकसर मतभेद रखने वाले येदियुरप्पा भारतीय विधायिका के इतिहास में पहले ऐसे मुख्यमंत्री साबित हुए, जिन्होंने एक ही सप्ताह में दो बार विश्वास मत जीता. बगावत करने वाले 11 विधायकों को उच्च न्यायालय द्वारा अयोग्य करार दिये जाने के फैसले से संकट टलता देख रहे येदियुरप्पा के सामने फिर से कठिनाई का दौरा शुरू हुआ जब जेडीएस ने उन पर तथा उनके परिवार पर भूमि घोटालों के अनेक आरोप लगाए.

गौरतलब है कि कांग्रेस की धरम सिंह नीत गठबंधन सरकार को हटाने में जेडीएस नेता कुमारस्वामी की मदद करके येदियुरप्पा ऊंचाई पर पहुंचे थे. कुमारस्वामी ने बीजेपी की मदद से सरकार बनाई. जेडीएस और बीजेपी के बीच समझौता हुआ, जिसके मुताबिक कुमारस्वामी पहले 20 माह तक मुख्यमंत्री रहेंगे, जिसके बाद 20 महीनों के बाकी कार्यकाल में इस पद पर येदियुरप्पा काबिज होंगे.

कुमारस्वामी की सरकार में येदियुरप्पा को उप मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री मनोनीत किया गया. बहरहाल अक्तूबर, 2007 में जब येदियुरप्पा के मुख्यमंत्री बनने की बारी आई तो कुमारस्वामी ने अपने पद से इस्तीफा देने से इनकार कर दिया. इसके बाद येदियुरप्पा व उनकी पार्टी के सभी मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया और पांच अक्टूबर को राज्यपाल से मिलकर सरकार से बीजेपी का औपचारिक समर्थन वापस ले लिया.

कभी बीजेपी का था जेडीएस से गठबंधन

कर्नाटक में राष्ट्रपति शासन लगाया गया, जिसे सात नवंबर को हटा दिया गया. राष्ट्रपति शासन की अवधि के दौरान जेडीएस और बीजेपी ने अपने मतभेद दूर करने का फैसला किया और येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बने. उन्होंने 12 नवंबर 2007 में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.

जेडीएस ने मंत्रालयों के प्रभार को लेकर उनकी सरकार को समर्थन देने से इनकार कर दिया, जिसके बाद 19 नवंबर, 2007 को उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. घोटाले के आरोपों के बाद पार्टी से निकाल दिए गए 75 साल येदियुरप्पा ने 2011 में अपना अलग संगठन बनाया था लेकिन 2013 में इसका प्रदर्शन काफी खराब रहा था लेकिन वह बीजेपी के वोटबैंक का एक हिस्सा काटने में सफल रहे थे. इस वजह से बीजेपी को कर्नाटक में हार का मुंह देखना पड़ा था और 2014 में बीजेपी से उनका फिर से समझौता हो गया. और अब तीसरी बार वो कर्नाटक के मुख्यमंत्री बन गए.

(साभार- न्यूज18)