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आज बीजेपी को तेलंगाना में सत्ता चाहिए लेकिन कभी आडवाणी ने राज्य की मांग कर दी थी खारिज

पीएम मोदी और उनकी पार्टी के लोग भले ही आज तेलंगाना की सत्ता पाने के लिए जोरशोर से लगे हुए हों लेकिन एक समय में बीजेपी ने ही इस राज्य की खिलाफत की थी और आंध्र प्रेदश से अलग राज्य बनाने पर समर्थन नहीं दिया था

FP Staff

आंध्र प्रेदश से अलग होने के बाद पहली बार तेलंगाना की जनता अपनी सरकार चुनने जा रही है. राज्य में 7 दिसंबर को विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होना है. वर्तमान में राज्य की सत्ता तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के पास है और इसके मुखिया के चंद्रशेखर राव (केसीआर) राज्य के मुख्यमंत्री हैं.

चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद से ही सभी दल अपनी-अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए पूरा दमखम लगा रहे हैं. बीजेपी के लिए प्रधानमंत्री मोदी से लेकर पार्टी के तमाम नेता प्रचार प्रसार में लगे हैं. हाल ही में पीएम मोदी ने निजामाबाद में जनसभा को संबोधित करते हुए केसीआर पर हमला बोला था और कहा था कि वे कांग्रेस के रास्ते पर चल रहे हैं. उन्हें लगता है कि कांग्रेस ने बिना कुछ किए 50 साल राज कर लिया तो मैं भी कर लूंगा.


प्रधानमंत्री मोदी और उनकी पार्टी के लोग भले ही आज तेलंगाना की सत्ता पाने के लिए जोरशोर से लगे हुए हों लेकिन एक समय में बीजेपी ने ही इस राज्य की खिलाफत की थी और आंध्र प्रेदश से अलग राज्य बनाने पर समर्थन नहीं दिया था. हालांकि 1997 में बीजेपी की आंध्र यूनिट ने अलग तेलंगाना की मांग को लेकर प्रस्ताव भी पास किया था.

आडवाणी ने अलग तेलंगाना की मांग को कर दिया था खारिज

भारत के तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने टीआरएस की अलग तेलंगाना की मांग को 2001 में खारिज कर दिया था. टीआरएस ने तब की एनडीए सरकार को अलग तेलंगाना की मांग को लेकर प्रस्ताव भेजा था. इस मांग को आडवाणी ने यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि छोटे राज्य न तो व्यवहारिक हैं और न ही देश की एकता के लिए ठीक हैं.

अप्रैल, 2002 में अलग तेलंगाना की मांग को खारिज करते हुए आडवाणी ने सांसद ए नरेंद्र को पत्र लिखा. इस पत्र में उन्होंने लिखा था कि उपलब्ध संसाधनों के उपयोग के माध्यम से आर्थिक विकास में क्षेत्रीय असमानताओं का सामना किया जा सकता है. इसलिए सरकार तेलंगाना को अलग राज्य बनाने के खिलाफ है. हालांकि बाद में आडवाणी अपने स्टैंड से पलट गए थे और उस घटना के लगभग 10 साल बाद, 2012 में उन्होंने कहा था कि अगर टीडीपी ने साथ दिया होता तो एनडीए के समय ही तेलंगाना का निर्माण हो जाता.

इसके बाद, 2004 में हुए लोकसभा और विधानसभा चुनाव के समय भी एलके आडवाणी ने अलग तेलंगाना राज्य की मांग को एनडीए की एजेंडा में शामिल करने से इनकार कर दिया था. उन्होंने कहा था कि जबतक आम सहमति नहीं बन जाती तबतक इस मुद्दे को एजेंडे में शामिल नहीं किया जाएगा.

2 जून, 2014 को तेलंगाना बना नया राज्य

इस घटना के बाद से अलग तेलंगाना का मुद्दा काफी समय तक लटका रहा. हालांकि अलग राज्य की मांग कभी थमी नहीं. अंततः, 2014 में कांग्रेस की अगुआई वाली यूपीए सरकार ने आंध्र प्रदेश से अलग तेलंगाना राज्य को मंजूरी दे दी और 2 जून 2014 को भारत के 29वें राज्य के रूप में तेलंगाना मानचित्र पर आया.

राज्य के मुख्यमंत्री केसीआर ने समय पूर्व ही विधानसभा को भंग कर दिया, जिसके बाद तेलंगाना में चुनाव की नौबत आन पड़ी. 7 दिसंबर को राज्य में विधानसभा चुनाव होना है. 11 दिसंबर को राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम के साथ तेलंगाना के नतीजे भी आएंगे.