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बदले-बदले से तेजस्वी यादव क्या बिहार के नए 'चंद्रगुप्त' हैं?

अपने भाषण से तेजस्वी यादव ने एहसास कराया कि चाचा नीतीश कुमार के खिलाफ राजनीतिक संग्राम लड़ने में वो पिता से विरासत में मिले हथियार का प्रयोग नहीं करेंगे

Kanhaiya Bhelari

'कसम पैदा करने वाले की हमने सपने में भी नहीं सोचा था कि नटखट लालू प्रसाद का बेटा तेजस्वी यादव इतना बेहतरीन भाषण भी दे सकता है. दिल जीत लिया. भगवान से निवेदन है कि बिहार के राजनीतिक पटल पर उभरते इस अनमोल रत्न को बुराइयों से बचाकर रखे.'

तारीफ के ये लच्छेदार शब्द किसी आरजेडी नेता के नहीं बल्कि एक खांटी समाजवादी के हैं जो कभी नीतीश कुमार की सरकार में मंत्री हुआ करते थे लेकिन वर्तमान में भगवा पार्टी में कसरत कर रहे हैं. कभी-कभार विधानपरिषद की लॉबी में तशरीफ रखते हैं और अपने अच्छे-बुरे पुराने दिनों को परमानेंट बैठकबाजों के साथ शेयर करते हैं.


28 जुलाई को उन्होंने यहीं बैठकर टीवी पर एकाग्रता से तेजस्वी यादव को विश्वास प्रस्ताव के विरोध में नॉन-स्टॉप 43 मिनट बोलते देखा और सुना. फिर मेरी ओर मुखातिब होकर गंभीर वाणी में फोरकास्ट किया, ‘बिहार को तीसरा चंद्रगुप्त मिल गया.' इस बुजर्ग लोहियावादी नेता की नजर में सीएम नीतीश कुमार दूसरे चंद्रगुप्त हैं.

कई और राजनेता और राजनीतिक विश्लेषक भी इनकी भविष्यवाणी से इत्तेफाक रखते हैं. ऐसे में साफ है कि राज्य के राजनीतिक बैटलफील्ड पर आगे आने वालों दिनों में जो जंग लड़ी जाएगी वो ‘चंद्रगुप्त इन पावर और चंद्रगुप्त इन मेकिंग’ के बीच होगी. अपने भाषण के माध्यम से तेजस्वी यादव ने एहसास कराया कि चाचा नीतीश कुमार के खिलाफ राजनीतिक संग्राम लड़ने में वो पिता से विरासत में मिले हथियार का प्रयोग नहीं करेंगे. ‘नीतीश जी आप मेरे चाचा थे, हैं और रहेंगे. हम आपके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी रहेंगे और जिस प्रकार से आपने 2015 के मैंडेट को धोखा दिया है उसका बदला जनता की मदद से लेंगे.'

बदले-बदले से नजर आए तेजस्वी

आशा के विपरीत 28 वर्षीय तेजस्वी के चेहरे से तनाव गायब था. बोलते समय चेहरा बिल्कुल नूरानी था जो सीएम नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी को भी संभवतः अनहोनी लग रहा होगा. कयास लगाया जा रहा था कि विश्वासमत के दौरान विधानसभा में भयंकर महाभारत होगा. एक पुलिस ऑफिसर ने सुझाव दिया था- 10 बजे से पहले विधानसभा परिसर में प्रवेश कर लेना. माहौल गरम है. कुछ भी हो सकता है.

सबकुछ शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हो गया. कयास अफवाह निकली. इसका श्रेय किसी को जाता है तो वो विधानसभा में विरोधी दल के नेता तेजस्वी यादव ही रहे.

आरजेडी के अधिकतर विधायकों का सुझाव था कि विधानसभा की कार्यवाही को ठप कर दिया जाए. हाउस के अंदर इतना उत्पात मचाया जाए कि राष्ट्रपति शासन लग जाए. लेकिन तेजस्वी ने अपनी पिता की अनुपस्थिति में सबको समझाया कि ‘हमलोग कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाऐंगे जिससे बिहार बदनाम हो. दुश्मन को उसी के औजार से काटेंगें.' आरजेडी सुप्रीमो चारा घोटाला से संबंधित केस के सिलसिले में रांची में कैंप कर रहे हैं. पुष्ट खबर है कि लालू प्रसाद की भी हार्दिक इच्छा थी कि हाउस में उठापटक हो.

आज की तारीख में तेजस्वी यादव के सियासी दुश्मन नंबर एक हैं सीएम नीतीश कुमार. सर्वविदित है कि नीतीश कुमार का प्रभावकारी औजार है शालीनता, चुप्पी और सब्र जिसके बल पर वो विरोधियों को चित करते हैं. तेजस्वी यादव ने फोन पर इस मुद्दे पर अपने पिता से भी बात की और आग्रह किया कि 'आप मुझे डील करने के लिए फ्री-हैंड दे.' कहते हैं लालू प्रसाद ने ओके कर दिया. फिर तेजस्वी यादव ने विश्वास प्रस्ताव पर बोलने से पहले आरजेडी के उपलब्ध 79 विधायकों के साथ दो बार बैठक किया. समझने वालों को प्रेम से समझाया और गरम दिमाग वालों को हड़काया कि ‘हाउस के अंदर बदतमीजी की तो पार्टी से तत्काल बाहर कर देंगे.'

डीपीएस आरकेपुरम दिल्ली के ड्रॉपआउट तेजस्वी यादव के बारे में कहा जाता है कि वे भव्य जिंदगी जीने में यकीन रखते हैं. महंगे जूते, स्टाइलिश कपड़े उनके शौक हैं. पढ़ाई-लिखाई में भी औसत छात्र रहे हैं. उनका लगाव बचपन से ही क्रिकेट के प्रति रहा है. अपने पिता की तरह तेजस्वी यादव भी नॉन-वेज खाना ज्यादा पसंद करते हैं.

चंद्रगुप्त को मिला चाणक्य

तुनकमिजाजी राजनीति करनेवालों के लिए अलाभकारी होती है. तेजस्वी यादव के छोटे से राजनीतिक कार्यकाल में ये देखने को मिल रहा है कि वो तुनकमिजाज स्वभाव के युवक हैं. पिछले दिनों ऐसा कई बार हुआ कि वो मीडियाकर्मियों से उलझ गए.

बहरहाल, जगदानंद सिंह के रूप में तेजस्वी यादव को एक चाणक्य मिल गए हैं जो उन्हें एक कुशल राजनीतिज्ञ बनने का पाठ पढ़ा रहे हैं. सूत्र बताते हैं कि पूर्व मंत्री जगदानंद सिंह के सुझाव पर ही तेजस्वी यादव ने अपने क्रोध पर कंट्रोल रखने का अभ्यास शुरू कर दिया है. 1977 से लेकर 1994 तक नीतीश कुमार और जगदानंद सिंह परम मित्र हुआ करते थे. दोनों 1985 में पहली बार एमएलए बने. विधायक क्लब में आजू-बाजू के घर में रहते थे और 5 वर्षों तक लगातार एक ही रिक्शा पर सवार होकर विधानसभा आते-जाते थे. दो हंसों का जोड़ा 1994 में नीतीश कुमार के लालू प्रसाद से अलग होने के बाद बिखर गया. उसके बाद कई कारणों से मित्रता राजनीतिक दुश्मनी में तब्दील हो गई.

कहते हैं कि पिछले कई दिनों से 12-12 बजे रात तक जगदानंद सिंह 10 सर्कुलर रोड में रुककर तेजस्वी यादव को राजनीति का दाव-पेंच सिखाते हैं. उनको पता है कि पुराने मित्र नीतीश कुमार को किस विधा में महारथ हासिल है और वो कौन-कौन हथियारों की बदौलत जंग जीतते रहें हैं. 28 जुलाई को दिए तेजस्वी के भाषण से जगदानंद सिंह गदगद हैं. उनकी त्वरित प्रतिक्रिया थी 'जंग-ए-मैदान में मेरा असली चंद्रगुप्त 12 वर्षों से राज कर रहे नकली चंद्रगुप्त को शिकस्त देगा.'